मितानी – कक्षा 7 वीं हिन्दी

तरिया के निरमल पानी म खोखमा के सुग्घर-सुग्घर फूल फूले रहय। फूल म तितली अउ भौंरा मन लुर-लुर के गीत गावत रहय । तरिया के तीर बर पीपर, आमा, अमली के घन पेड़ रहय। ओ तरिया म एक ठन केछवा रहय ओही तरिया पार के पीपर पेड़ में एक ठन मंजूर घलो रहय। एहर तीर-तखार के खेत-खार म जा के चारा चरय अउ पीपर पेड़ म बसेरा करय। जब करिया करिया बादर उमडे-घुमड़े त मंजूर हर अपन पाँख ल छितराके झूम-झूमके नाचय । एती हवा ले पीपर पान झूम-झूमके गीत गावय अउ ताली बजावय। केछवा हर तरिया ले निकल के मंजूर के नाचा ल देख के मगन हो जाय।

केछवा हर मंजूर ल कथे- वा नाई मॅजूर, तँय तो बढ़िया नाचथस अउ तोर पाँख हर बहुत सुग्घर सजे हे लगथे। अगास के चंदा-चंदैनी हर पाँख में उतरे हैं। सुन के मंजूर हर मनेमन मुचमुचाइस। मंजूर हर रोज पीपर के रूख ले उतर के तरिया के पार म नाचय । केछवा हर ओला मन भर के देखय मंजूर हर तरिया के पानी पी के पीपर पेड़ म बइठ के अराम करय अइसन तरह ले मॅजूर अउ केछवा म दूनों के पोठ मितानी होगे ।

एक दिन मंजूर हर मगन होके नाचत रहिस त केछया हर किहिस- मितान ! लकठा म आके नाचव न! काबर के तुहर नचाई हर मोला नीक लागथे। मन के अघात ले देखे चाहत हँव।” मंजूर ह केछवा के मया के गोठ ल टारे नइ सकिस अउ तीर में आके नाचे लगिस अब अइसन रोज होवय मँजूर नाचे अउ केछवा हर देखे मितानी म मया के धार बोहाय लागिस ।

एक दिन संझा सिकारी आके उहाँ अपन फाँदा ल फैला दिस। एला केछवा अउ मंजूर नइ जानिन। बिहनिया ओमा मँजूर ह चँदगे। अब तो मंजूर के करलाई होगे। अपन मितान ल कथे- “मितान मोला बचावव, सिकारी आही, तहाँ मोला मार डारही तोर मितानी अउ मया में परान गँवा डारहूँ, तइसे लागथे। उबारे के कुछु उदिम करव।” केछवा बड़ चतुरा रहिस। ओहर हड़बड़ाइस नहीं। फाँदा म परे मितान ल कथे- “काहीं फिकर झन करव। धीरज बाँधे रहव तुहला फाँदा ले छोड़ा हूँ। संकट के बेरा मितान हर मितान के काम नइ आइस त ओहर मितान नोहय।” एती दूनो मितान के गोठ होते हे अउ ओती सिकारी आगे फाँदा म फँदे मंजूर ल धरके फाँदा ले निकाले लगिस त केछवा हर सिकारी ल कथेतय तो मोर मितान ल फाँदा म फोकट फँसाए सिकारी हर हाँसत कथे-फसातेंव नहीं त का करतेंव। एहर हस एला मार के का करबे ? अतका म मोर धंधा आय। एला मारँव नहीं, बजार में बेंच के रुपिया पाहू अउ दार- चाँउर बिसाहूँ ….।” केछवा कथे- “बस अतकेच छोड़ दे, मोर मितान ल जंगल के कोनो जीव ल मारे ले हत्या लगथे। एला छोड़बे त एकर बदला म तोला एक ठन बढ़िया चीज देहूँ, जेन ल बेंच के तोर परिवार बर दार- चाउर बिसा लेबे।” सिकारी कहिस- “तोर का बिसवास।” केछवा हर पानी मीतर बुडिस अउ

छिन भर में एक ठन मोती लान के कथे-“ले एहर मोती आय, बेचबे त खूब पइसा मिलही।” सिकारी हर मोती ल लेके खुश होगे। मंजूर ल छोड़ दिस अउ कुलकत घर आइस । सिकारी के दू झन बेटा रहँय- कोंदा अउ मंसा सिकारी हर अपन दूनो बेटा ल मोती ल देखाइस त ओला ले बर दुनो झन झगरा होय लगिन। ऊँकर मनके झगरा ल देख के सिकारी ह सोंचिस- मोती ह बड़ कीमती झगरा हे। सिकारी हर असमंजस में परगे ।

हे, एला छोड़त नइ बने अउ छोड़त हॅव त घर म एक दिन ओही मेर फाँदा ल फेर फैलाइस …. मँजूर फॅदगे। एक पइँत परान बचे रहिस। अब का होही ? केछवा अउ मंजूर ल गुने ल परगे। मँजूर कथे- मितान! एक पइँत परान ल फेर बचावचः।” केछवा ल कुछू उपाय सुझत नइ रहय कथे- “हॉ, मितान तोला बचाए बर गुनत हॅब, ये पइँत जान बचगे त तोला ये ठउर ल छोड़के जंगल में जाए ल परही, जिंहा ये सिकारी झन जा सकय। ओहर बड़ लालची हे। मोती के लालच में घेरी-बेरी फाँदा ल खेलही।” केछवा के गोठ ल सुन के मंजूर दुःख लगिस फेर सोचिस, परान बचाय बर मितान के मया ल छोड़ के जंगल बीच जाएच ल परही। अतका म सिकारी आगे मॅजूर ल फाँदा म फँदे देख के कुलक गे। एती केछवा हर सिकारी ल कथे- “ये सिकारी नाई मोर मितान ल काबर फँसाए हस? तोला तो महीना भर के खरचा के पुरता मोती दे रहेंव अइसन लालच झन कर एहर अनियाव आय।” ल थोकिन

सिकारी कथे- “तैं तो बात बड़ नियाँव के कहत हस। एमा मोर कोती ले कोनो लालच नइये। मोती ल देखके मोर दूनो बेटा मन मोती ल ले बर झगरे लगिन, मारा-पीटा करे लगिन । ओ मन ल झगरा ले बचाय खातिर मोला फाँदा डारे बर परिस हे अब ओइसनेच मोती लान के अउ दे देवव त मैं ह ये मंजूर ल ढील देहूँ। मोती ह ओइसनेच होना चाही-न घटन बढ़।”

केछवा ल उपाय सूझगे ओ ह सिकारी ल कथे- सिकारी मइया ! ओइसनेच मोती लाने खातिर पहिली वाले मोती के नाप-जोख करे बर परही तउले बर परही मैं तोला ओइसनेच मोती दे बर तियार हँव। फेर पहिली वाले मोती ल लान के तैं मोला दे दे।” केछवा के बात ल सुन के सिकारी

के मन कुलक गे। मन में थोरिक लालच अमागे। ओहा केछवा के बात ल मान गे। फाँदा ले मँजूर ल ढील दिस, सिकारी मंजूर उडिया गे अउ मोती ल लाय बर घर कोती दउँड़गे। सिकारी ह मोती लान के केछवा ल दे दिस केछवा ह मोती ल पानी म फेंक दिस अउ सिकारी ल किहिस-“तँय एक मोती लेवस नहीं अउ मँय ह दू मोती देवेंव नहीं आज तय बेटा मन के खातिर फाँदा डारे हस। काली अपन घर-गोसइन के कहे म फाँदा डारबे। परनदिन अपन परोसी मन खातिर इही बूता करबे। तोर लालच ह बाढतेच जाही। तँ लालची भर नइ हस, बिसवासघाती घलो हस।” अइसे कहिके केछवा ह पानी भीतर डुबकी मार दिस। सिकारी ह हाथ रमजत रहिगे ।

पाठ से

प्रश्न 1. मँजूर हर अपन पाँख ल काबर छितराय हे ? (मोर ने अपने पंखों को क्यों फैलाया है ?)

उत्तर- मँजूर हर करिया करिया बादर ल देखके नाचे बर अपन पाँख ल छितराये हैं। (मोर ने काले-काले बादल को देखकर नाचने के लिए अपने पंख को फैलाया है।)

प्रश्न 2. केछ्या ह मँजूर ल पहिली बार देखके का कहिये ? (कछुआ मोर को पहली बार देखकर क्या कहता है ?)

उत्तर-केछवा हर मंजूर ल कहिथे वा भाई मंजूर तँय तो बढ़िया नाचयस अउ तोर पाँख हर बहुत सुग्घर सजे हे। लगये अगास के चंदा चंदैनी हर पाँख म उतरे हैं। (कछुआ मोर से कहता है कि वाह भाई तुम तो बढ़िया नाचते हो, तुम्हारे पंख बहुत सुन्दर सजे हैं, लगता है आकाश से चंदा और तारे पंख पर उतर आए हैं।)

प्रश्न 3. मँजूरह सिकारी के फाँदा मा कइसे फँदगे ? (मोर शिकारी के जाल में कैसे फँस गया ?)

उत्तर- एक दिन संझा सिकारी आके ऊँठा अपन फाँदा ल फैला दिस। एला कछुवा अउ मंजूर नइ जानिन । विहनिया ओमा मंजूर ह चँदगे। (एक दिन शाम को शिकारी ने वहाँ आकर जाल फैला दिया। इसे कछुआ और मोर नहीं जान पाए। सुबह उसमें मोर फँस गया ।)

प्रश्न 4. अपन मितान के छोड़े के खातिर कछुवा ह सिकारी ल का कहिये ? (अपने मित्र को छोड़ने के लिए कछुआ ने शिकारी से क्या कहा ?)

उत्तर- अपन मितान के छोड़े खातिर कछुवा ह सिकारी ल कहिये- एला छोड्बे त एकर बदला म तोला एक टन बढ़िया चीज देहूँ जेन ल बेच के तोर परिवार बर दार चौउर बिसा लेबे । (अपने मित्र को छुड़ाने के लिए कछुआ शिकारी से कहता है कि इसे छोड़ने के बदले में एक बढ़िया चीज दूँगा जिसे बेचकर अपने परिवार के लिए दाल चावल ले लेना।)

प्रश्न 5. सिकारी ह मंजूर ल काबर छोड़ देथे ? (शिकारी मोर को क्यों छोड़ देता है ?)

उत्तर- सिकारी ह मंजूर ल ऐकर सेती छोड़ देथे क्योंकि केवा ह ओला एक ठन मोती दुहू कहिये। (शिकारी मोर को इसलिए छोड़ देता है क्योंकि कछुआ उसे एक मोती देने की बात कहता है )

प्रश्न 6. सिकारी के लालच बढ़े के का कारन रहिस ? (शिकारी को लालच बढ़ने का क्या कारण था ?)

उत्तर- सिकारी के लालच बढ़े के कारन कीमती मोती रहिस। (शिकारी का लालच बढ़ने का कारण कीमती मोती या ।)

प्रश्न 7. आखिर म केछवा ल का उपाय सूझिस अउ ओ हर का करिस ?) ( आखिर में कछुआ को क्या उपाय सुझा और उसने क्या किया ?)

उत्तर- आखिर में कछवाह सिकारी ले पहिली दे वाले मोती मंगवाइस अउ ओ मोती ल पानी म फेक दिस। (आखिर में कछुआ ने शिकारी से पहले दिया वाला मोती मँगवाकर और उस मोती को पानी में फेंक दिया।)

प्रश्न 8. सिकारी ह काबर पछतावत रहिगे ? (शिकारी क्यों पछताते रह गया ?)

उत्तर- सिकारी ह लालच मे पर के अउ दुबारा मोती ले बर जाये पर ओला एकोटन मोती नइ मिलिस एकर बर वोह पछतायत रहिगे। (शिकारी लालच में आकर दुबारा मोती लेने जाता है पर उसे एक भी मोती नही मिलता इसलिए वह पछताते रह गया।)

पाठ से आगे

प्रश्न 1. मंजूर सही कहूँ तुम्हर मितान कोनो मुसीबत में फस जाही त तुमन ओला उबारे बर का उदिम कर ? सोच के लिखव (मोर के समान कही तुम्हारा मित्र किसी मुसीबत में फँस जाता है? तो तुम उसे बचाने के लिए क्या उपाय करोगे ? सोचकर लिखिए।)

उत्तर- हमन अपन मितान ल उबारे बर कछुवा असन कुछ न कुछ उदिम जरूर करबो जेकर ले हमर मितान मुसीबत ले उबर जाही। हम अपने मित्र को बचाने के लिए कछुए के जैसे कुछ-न-कुछ उपाय जरूर करेंगे जिससे हमारा मित्र मुसीबत से बच जाए।)

प्रश्न 2. मँजूर के जगह म केछवा ल सिकारी फँसा लेतिस त केछवा ल बचाय बर मँजूर का सोचतिस ? साथी मन संग चर्चा करके लिखव । ( मोर की जगह में कछुआ को शिकारी फँसा लेता तो कछुआ को बचाने के लिए मोर क्या सोचता ? साथियों के साथ चर्चा करके लिखिए।)

उत्तर- अगर सिकारी ह मंजूर के जगह केछुवा ल फंसा लेतिस त मँजूर घलो ह केछुवा ल बचाय बर कुछ न कुछ उपाय सोचतिस अउ ओला बचातिस । ( अगर शिकारी मोर की जगह कछुवा को फँसा लेता तो मोर भी कछुए को बचाने के लिए कुछ न कुछ तो उपाय सोचता और उसे बचाता ।)

प्रश्न 3. मँजूर ल फांदा में फंसे देखके केछवा कहूँ भाग जातिस त दूनो के मितानी मा का परभाव पड़तीस ? सोच के लिखव । ( मोर को फंदे में फँसा देखकर कछुआ अगर भाग जाता तो दोनों की मित्रता में क्या प्रभाव पड़ता ? सोचकर लिखिए।)

उत्तर-त दूनो के मितानी टूट जातिस अउ दूनों कभू नइ मिलतिन । (तब दोनों की मित्रता टूट जाती और दोनों कभी नहीं मिल पाते ।)

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