सिखावन – कक्षा 8 हिन्दी

का होगे के रात है, घपटे हे अँधियार । आसा अउ बिसवास के चल तैं दीया बार।

सन्दर्भ – प्रस्तुत हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती” के ‘सिखावन’ नामक पाठ से लिया गया है। प्रसंग – इस दोहे में कवि ने हमें सीख दी है कि कठिन क्षणों में भी हमें आशा और विश्वास का त्याग नहीं करना चाहिए।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि क्या हुआ जो रात है और चारों ओर घना अन्धकार छाया हुआ है। ऐसे कठिन समय में भी तुम्हें निराश नहीं होना चाहिए और आशा और विश्वास का दीपक जलाना चाहिए। अर्थात् अपने मन में कार्य पूर्ण होने की आशा और विश्वास बनाए रखना चाहिए।

एके अवगुन सौ गुन ल मिलखी मारत खाय ।

गुरतुर गुन वाला सुवा, लोभ करे फँद जाय ।

सन्दर्भ – प्रस्तुत हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती” के ‘सिखावन’ नामक पाठ से लिया गया है।

प्रसंग इस दोहे में कवि ने बताया है कि एक अवगुण सौ गुण को नष्ट कर देता है।

व्याख्या कवि कहते हैं कि एक अवगुण पलक झपकते ही सौ गुणों को नष्ट कर देता है। जैसे मीठी बोली बोलने वाला तोता लालच में आकर शिकारी के जाल में फँस जाता है। अतः हमें अवगुणों से दूर रहना चाहिए।

मीठ-लबारी बोल के लबरा पाये मान ।

पन सतवंता ह सत्त बर हाँसत तजे परान ।

सन्दर्भ – प्रस्तुत हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती” के ‘सिखावन’ नामक पाठ से लिया गया है।

प्रसंग – इस दोहे में कवि ने बताया है कि सत्यवादी मनुष्य ही सच्चा मान-सम्मान प्राप्त करता है।

व्याख्या – झूटा मनुष्य भले ही मीठा झूठ बोलकर सम्मान प्राप्त कर लेता है किन्तु सत्यवादी व्यक्ति तो सत्य की रक्षा के लिये हँसते हुए अपने प्राणों का त्याग कर देता है। वास्तव में वही सच्चे सम्मान का अधिकारी है।


घाम छाँव के खेल तो होवत रहिथे रोज –

एकर संसो छोड़ के रद्दा नावा तैं खोज।

सन्दर्भ – प्रस्तुत हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती” के ‘सिखावन’ नामक पाठ से लिया गया है।

प्रसंग – इस दोहे में कवि ने बताया है कि मनुष्य को सुख-दुःख के फेर में न पड़कर अपने लिए नए मार्ग की तलाश करनी चाहिए।

व्याख्या – कवि कहते हैं कि धूप और छाया तो रोज ही आती-जाती रहती है, परन्तु इनकी चिंता छोड़कर तुम्हें नए रास्ते की तलाश करनी चाहिए। तात्पर्य यह है कि जीवन में दुःख और सुख तो आते ही रहते हैं। पर मनुष्य को इनके फेर में न पड़कर आगे बढ़ने के लिए सदैव प्रयास करते रहना चाहिए।



लाखन लाखन रंग के, फुलथे फूल मितान ।

महर – महर जे नइ करे, फूल अबिरथा जान ।

सन्दर्भ – प्रस्तुत हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती” के ‘सिखावन’ नामक पाठ से लिया गया है।

प्रसंग – इस दोहे में कवि ने गुणहीन मनुष्य के जीवन को व्यर्थ बताया है।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि मित्रो, संसार में लाखों-लाख रंगों के फूल खिलते हैं किन्तु जो अपनी सुगन्धि नहीं बिखेरता उसे व्यर्थ ही जानो। भाव यह है कि गुणहीन व्यक्ति का जीवन व्यर्थ है।

सब ला देथे फूल – फर, सब ला देथे छाँव ।

अइसन दानी पेड़ के परो निहरके पाँव

सन्दर्भ – प्रस्तुत हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती” के ‘सिखावन’ नामक पाठ से लिया गया है।

प्रसंग – इस दोहे में कवि ने परोपकारी व्यक्ति को पूजनीय बताया है।

व्याख्या – कवि कहते हैं कि जो वृक्ष सभी को फूल और फल प्रदान करता है, सभी को छाया देता है, ऐसे दानी पेड़ को झुककर प्रणाम करना चाहिए। आशय यह है कि परोपकारी व्यक्ति का सदैव सम्मान करना चाहिए।



तैं किताब के संग बद, गंगाबारू, मीत ।

एकरे बल म दुनिया लपक्का लेबे जीत।

सन्दर्भ – प्रस्तुत हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती” के ‘सिखावन’ नामक पाठ से लिया गया है।

प्रसंग – इस दोहे में पुस्तकों का महत्व बताया गया है।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि तुम किताबों साथ मित्रता का सम्बन्ध जोड़ लो। इन किताबों में भरे ज्ञान के भण्डार के बल पर तुम एक दिन संसार पर विजय प्राप्त कर लोगे अर्थात् पुस्तकों को पढ़कर सफलता प्राप्त कर सकते हो।

ठाड़े ठाड़े नइ मिले, ठिहा ठिकाना – – सार।

समुँद कोत नँदिया चले, दउड़त पल्ला मार

सन्दर्भ – प्रस्तुत हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती” के ‘सिखावन’ नामक पाठ से लिया गया है।

प्रसंग -इस दोहे में कवि ने बताया है कि प्रयास करने पर ही मनुष्य को सफलता प्राप्त होती है।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि एक स्थान पर खड़े रहने पर मनुष्य को उसकी मंजिल प्राप्त नहीं होती। नदी भी अपनी मंजिल समुद्र तक पहुँचने के लिए तेज गति से दौड़ती है। आशय यह है कि मनुष्य को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिए।

हे उछाह मन म कहूँ, पाये बर कुछु ज्ञान ।

का मनखे ? चाँटी घलो पाही गुरु के मान

सन्दर्भ – प्रस्तुत हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती” के ‘सिखावन’ नामक पाठ से लिया गया है।

प्रसंग – इस दोहे में कवि ने बताया है कि ज्ञानी सदैव सम्मान प्राप्त करता है। साथ ही काम के प्रति उत्साह के होने को भी महत्वपूर्ण बताया है।

व्याख्या – कवि कहते हैं कि यदि सब में ज्ञान प्राप्त करने का उत्साह है तो मनुष्य ही क्या नन्हीं सी चीटी भी गुरु का सम्मान प्राप्त कर सकती है। आशय यह है कि ज्ञानी चाहे कोई भी हो, सभी उसका सम्मान करते हैं।

अभ्यास

पाठ से-

प्रश्न 1. हमन ला चोटी ले काका सिखावन मिलये ? ओरिया के लिखव (हमें चीटी से क्या-क्या सीख मिलती है ? विस्तार से लिखिए।)

उत्तर- हमन ला चाँटी ले दिन-रात मेहनत करे के सिखावन मिलये जब एक टन चाँटी ह दावा लेके दीवार मा चढ़ये त वोहर सौ बार फिसल के गिर जाये फेर हिम्मत न हास्य बरोबर अपने काम मा रहिये अउ आखिरी बेरा मा वोहर दाना लेके दीवार मा चदेवर सफल हो जाये चोटी ले हमन ला अठू सीखायन मिलने के जीवन मा 1 कभू हताश नड़ होना चाही। लोगों को चींटी से दिन-रात मेहनत करने की सीख मिलती है जब एक छोटी सी चींटी दाना लेकर दीवार पर चढ़ती है तो वह सौ बार फिसलती है लेकिन हिम्मत नहीं हारती है। अपने काम में बराबर लगी रहती है। और अंत में दाना लेकर दीवार पर चढ़ने में सफल हो जाती है। चीटी से हमें यह भी सीख मिलती कि जीवन में कभी भी निराश नहीं होना चाहिए।)

प्रश्न 2. ‘ठाढ़े- ठाढ़े ठिहा-ठिकाना नई मिलय एमा कवि के भाव ल बने अरवा के लिखब। (खड़े-खड़े मंजिल / लक्ष्य नहीं मिलता- इसमें कवि के भाव को समझाकर लिखिए।)

उत्तर-ठादे-बढ़े विहा-ठिकाना नह मिलय मा कवि के भाव हे के खड़े-खड़े कोनो ल बिना मेहनत के ओखर मंजिल बड़ मिल जाय। अपन मंजिल ला पायेवर मनखे ला जी तोड़ मेहनत करे बर पहये। (खड़े-खड़े मंजिल नहीं मिलता- इसमें कवि का भाव यह है कि खड़े-खड़े किसी को भी बिना मेहनत के अपना मंजिला / लक्ष्य नहीं मिल पाता। अपने मंजिल को हासिल करने के लिए मनुष्य को कठिन परिश्रम करना पड़ता है।) (यहाँ कवि का भाव है कि एक स्थान पर खड़े रहकर मनुष्य अपने ठिकाने तक नहीं पहुँच सकता। अपनी मंजिल को नहीं प्राप्त कर सकता। अपनी मंजिल को प्राप्त करने के लिए उसे चलना पड़ता है )

प्रश्न 3. काकर बल म ये दुनिया ल जीते जा सकत है, अउ ‘दुनिया ल जीतना’ के का अर्थ है ? (किसके बल पर को जीता जा सकता है, और ‘दुनिया को जीतना’ का क्या अर्थ है ?)

उत्तर- किताब के बल में दुनिया ल जीते जा सकते हे। ‘दुनिया ल जीतना’ क अर्थ है-अपन ज्ञान के बल म दुनिया में सफलता पाना । (पुस्तक के बल पर दुनिया को जीता जा सकता है। ‘दुनिया ल जीतना’ का अर्थ है-अपने ज्ञान के बल पर संसार में सफलता प्राप्त करना)

प्रश्न 4. पेड़ ल दानी काबर कहे मे हवय ? (पेड़ को दानी क्यों कहा गया है ?)

उत्तर- पेड़ ह सब ल फूल अउ फर देवे, सब ल छइहाँ देवे, एखर, कारण पेड़ ल दानी कहे गे हवय। (पेड़ सभी को फूल और फल देता है, सभी को छाया देता है, इस कारण पेड़ को दानी कहा गया है।)

प्रश्न 5. ‘घाम-छाँव के खेल’ के अर्थ ल बने समझ के लिखय। (‘घाम-छाँव के खेल’ के अर्थ को ठीक से समझकर लिखिए।)

उत्तर- दुनिया में जइसे रोज घाम-छाँ आवत-जावत रहिये, कभू छौंव होये, ओइसने मनखे के जिनगी में दुख-सुख आवत-जात रहिये। (“संसार में जैसे रोज धूप और छाया आती-जाती रहती है, कभी धूप होती है, कभी छाया होती है, उसी तरह मनुष्य के जीवन में दुःख-सुख आते-जाते रहते हैं।”)

प्रश्न 6. ‘रात’ अउ ‘अँधियार’ के अर्थ कवि के अनुसार का हो सकत है ? (‘रात’ और ‘अधियार’ का अर्थ कवि के अनुसार क्या हो सकता है ?)

उत्तर- ‘रात’ अउ ‘अंधियार के अर्थ कवि के अनुसार ‘दुःख’ अउ ‘संकट’ हो सकत है। (‘रात’ और ‘अंधियार’ का कवि के अनुसार ‘दुःख’ और ‘संकट’ हो सकता है।)

प्रश्न 7. ‘आसा अउ बिसवास’ के दीया बारना के भाव लिखय। (‘आसा’ अउ ‘बिसवास’ के दीया चारना का भाव लिखिए।)

उत्तर- ‘आसा अउ बिसवास’ के दीया चारना के अर्थ हे मन म आसा अउ बिसवास के जगाए रखना, निराश नई होना। (‘आसा अउ बिसवास’ के दीया बारना का अर्थ है-मन में आशा और विश्वास की ज्योति जलाए रखना, निराश न होना )

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