संख्या पद्धति के सूत्र

संख्या पद्धति के सूत्र

संख्या पद्धति के सूत्र

प्राकृत संख्याएँ (Natural Number) :-

  • गिनती में उपयोग की जाने वाली सभी संख्याएँ प्राकृतिक संख्या कहलाती हैं।
  • Ex :- 1, 2, 3, 4, 5,………

सम संख्याएँ (Even Number) :-

  • ऐसी प्राकृतिक संख्या जो 2 से पूर्णतः विभाजित होती हैं, उन्हें सम संख्या कहा जाता हैं।
  • Ex :- 2, 4, 6, 8, 10,………

विषम संख्याएँ (Odd Numbers) :-

  • ऐसी प्राकृतिक संख्या जो 2 से पूर्णतः से विभाजित न हो उन्हें विषम संख्या कहते हैं।
  • Ex :- 1, 3, 5, 7, 9,………

पूर्णांक संख्याएँ :-

  • धनात्मक त्रणात्मक और जीरों से मिलकर बनी हुई संख्याएँ पूर्णांक संख्या होती हैं।
  • Ex :- -3, -2, -1, 0, 1, 2,………

पूर्णांक संख्याएँ तीन प्रकार की होती हैं।

धनात्मक संख्याएँ :- एक से लेकर अनंत तक की सभी धनात्मक संख्याएँ धनात्मक पूर्णांक हैं।
Ex : +1, +2, +3, +4, +5,………
त्रणात्मक संख्याएँ :- 1 से लेकर अनंत तक कि सभी त्रणात्मक संख्याएँ त्रणात्मक पूर्णांक हैं।
Ex : -1, -2, -3, -4, -5,………
उदासीन पूर्णांक :- ऐसा पूर्णांक जिस पर धनात्मक और त्रणात्मक चिन्ह का कोई प्रवाह ना पड़े। और यह जीरो होताा हैं।
Ex : -3, -2, -1, 0, 1, 2, 3,………

पूर्ण संख्याएँ (Whole Numbers) :-

  • प्राकृतिक संख्याएँ में 0 से सामिल कर लेने से पूर्ण संख्या बनती हैं।
  • Ex :- 0, 1, 2, 3, ………

भाज्य संख्या (Composite Numbers) :-

  • ऐसी प्राकृत संख्या जो स्वंय और 1 से विभाजित होने के अतिरिक्त कम से कम किसी एक अन्य संख्या से विभाजित हो उन्हें भाज्य संख्या कहते हैं।
  • Ex :- 4, 6, 8, 9, 10, 12, ………

अभाज्य संख्याएँ (Prime Numbers) :-

  • ऐसी प्राकृतिक संख्याएँ जो सिर्फ स्वंय से और 1 से विभाजित हो और किसी भी अन्य संख्या से विभाजित न हो उन्हें अभाज्य संख्याएँ कहेंगे।
  • Ex :- 2, 3, 5, 11, 13, 17, ………

सह अभाज्य संख्या (Co-Prime Numbers) :-

  • कम से कम 2 अभाज्य संख्याओ का ऐसा समूह जिसका (HCF) 1 हो सह अभाज्य संख्या कहलाती हैं।
  • Ex :- (5, 7), (2, 3)

परिमेय संख्याएँ (Rational Numbers) :-

  • ऐसी सभी संख्याएँ जिन्हें p/q के रूप में लिखा जा सकता हैं। उन्हें परिमेय संख्या कहते है (q हर का मान जीरो नहीं होना चाहिए)
  • Ex :- 5, 2/3, 11/4, √25

अपरिमेय संख्याएँ (Irrational Numbers) :-

  • ऐसी संख्याएँ जिन्हें p/q के रूप में नही लिखा जा सकता और मुख्यतः उन्हें (√) के अंदर लिखा जाता हैं और कभी भी उनका पूर्ण वर्गमूल नहीं निकलता अपरिमेय संख्या कहते हैं।
  • Ex :- √3, √105, √11, √17,
  • नोट : π एक अपरिमेय संख्या हैं।

वास्तविक संख्या (Real Numbers) :-

  • परिमेय और अपरिमेय संख्याओ को सम्मलित रूप से लिखने पर वास्तविक संख्या प्राप्त होती हैं।
  • Ex :- √3, 2/5, √15, 4/11,

अवास्तविक संख्या (Imaginary Numbers) :-

  • ऋणात्मक संख्याओं का वर्गमूल लेने पर जो संख्याएँ बनती हैं, उन्हें काल्पनिक संख्या या अवास्तविक संख्या कहते हैं।
  • जैसे :- √-2, √-5

लगातार प्राकृत संख्याओं के योग = n(n + 1)/2
लगातार सम संख्याओं के योग = n/2 (n/2 + 1)
लगातार विषम संख्याओं के योग = (n/2 + 1)²
दो क्रमागत पदों का अंतर समान हो तो योग = पदों की संख्या (पहला पद + अंतिम पद)/2
लगातार प्राकृत संख्याओं के वर्गों का योग = n(n + 1)(2n + 1)/6
लगातार प्राकृत संख्याओं के घनों का योग = [n(n + 1)/2]²
प्रथम से n तक कि सम संख्याओं का योग = n(n + 1)
प्रथम से n तक कि विषम संख्याओं का योग = n²
भागफल = भाज्य ÷ भाजक (पूर्ण विभाजन में)
भाज्य = भागफल × भाजक (पूर्ण विभाजन में)
भाजक = भाज्य ÷ भागफल (पूर्ण विभाजन में)
भागफल = (भाज्य – शेषफल) ÷ भाजक (अपूर्ण विभाजन में)
भाज्य = भागफल × भाजक + शेषफल (अपूर्ण विभाजन में)
भाजक = (भाज्य – शेषफल) ÷ भागफल (अपूर्ण विभाजन में)

महत्वपूर्ण बिंदु

  • संख्या 1 न तो भाज्य है और न अभाज्य
  • ऐसी संख्या जो अभाज्य हो एवं सम संख्या हो केवल 2 है।
  • वे दो अभाज्य संख्याएँ जिनके बीच केवल एक सम संख्या होती है।
  • जिसमें अभाज्य जोड़ा जाए कहलाती है। जैसे : 5 व 7, 3 व 5, 11 व 13, 17 व 19, 29 व 31 आदि।
  • सभी प्राकृत संख्याएँ, पूर्ण, पूर्णाक, परिमेय एवं वास्तविक होती हैं।
  • सभी पूर्ण संख्याएँ, पूर्णांक, परिमेय एवं वास्तविक होती हैं।
  • सभी पूर्णाक, परिमेय एवं वास्तविक होते हैं।
  • सभी पूर्णांक, परिमेय एवं अपरिमेय संख्याएँ वास्तविक होती हैं।
  • अभाज्य (रूढ़) एवं यौगिक, सम तथा विषम संख्या होती हैं।
  • सभी पूर्णाक, परिमेय एवं अपरिमेय संख्याएँ ऋणात्मक एवं धनात्मक दोनों होती हैं।
  • प्राकृत ( अभाज्य, यौगिक, सम एवं विषम ) एवं पूर्ण संख्याएँ कभी भी ऋणात्मक नहीं होती हैं।
  • भिन्न संख्याएँ परिमेय होती हैं।
  • 2 के अतिरिक्त सभी अभाज्य (रूढ़) संख्याएँ विषम होती हैं।
  • 0 ऋणात्मक एवं धनात्मक नहीं है।
  • शून्य ( 0 ) में किसी भी संख्या का भाग देने पर शून्य आता है अतः 0/a = 0 (यहाँ पर a वास्तविक संख्या है)
  • किसी भी संख्या में शून्य का भाग देना परिभाषित नहीं है अर्थात् यदि किसी भी संख्या में शून्य का भाग देते हैं, तो भागफल अनन्त (Infinite या Non Defined) आता है, अतः a/0 = ∞ (Infinite)
  • किसी संख्या में किसी अंक का जो वास्तविक मान होता है, उसे जातीय मान कहते हैं, जैसे: 5283 में 2 का जातीय मान 2 है।
  • किसी संख्या में किसी अंक का स्थान के अनुसार जो मान होता है उसे उसका स्थानीय मान कहते हैं, जैसे – 5283 में 2 का स्थानीय मान 200 है।
  • दो परिमेय संख्याओं का योगफल अथवा गुणनफल सदैव एक परिमेय संख्या होती है।
  • दो अपरिमेय संख्याओं का योगफल अथवा गुणनफल कभी परिमेय संख्या तथा कभी अपरिमेय संख्या होता है।
  • एक परिमेय संख्या तथा एक अपरिमेय संख्या का गुणनफल अथवा योगफल सदैव एक अपरिमेय संख्या होता है।
  • π एक अपरिमेय संख्या है।
  • दो परिमेय संख्याओं या दो अपरिमेय संख्याओं के बीच अनन्त परिमेय संख्याएँ या अनन्त अपरिमेय संख्याएँ हो सकती हैं।
  • परिमेय संख्या को दशमलव निरूपण या तो सीमित होता है या असीमित आवर्ती होता है, जैसे:- 3/4 = 0.75 ( सीमित ) 11/3 = 3.666 (असीमित आवर्ती)
  • अपरिमेय संख्या का दशमलव निरूपण अनन्त व अनावर्ती होता है, जैसे:- √3, √2
  • प्रत्येक सम संख्या का वर्ग एक सम संख्या होती है तथा प्रत्येक विषम संख्या का वर्ग एक विषम संख्या होती है।
  • यदि दशमलव संख्याएँ 0.x तथा 0.xy के रूप में दी होती हैं , तो इन्हें परिमेय संख्या p/q के रूप में निम्नवत् बदलते हैं।
  • 0.x = x/10 तथा 0.xy = xy/100 अर्थात् दशमलव के बाद 1 अंक है , तो 10 का , दो अंक हैं, तो 100 का, तीन अंक हैं, तो 1000 का भाग देने पर दशमलव संख्या परिमेय (भिन्न) बन जाती है।
  • यदि अशान्त ( अनन्त ) आवर्ती दशमलव संख्याएँ 0.x तथा xy के रूप की हैं , तो इन्हें परिमेय संख्या p/q के रूप में निम्नवत् बदलते हैं।
  • 0.x̅ = x/9 तथा 0. x̅x̅ = xx/99 अर्थात् दशमलव के बाद 1 अंक बार सहित हो , तो 9 का , दो अंक बार सहित हों तो 99 का , तीन अंक हों तो 999 का भाग करके दशमलव संख्या परिमेय में बदल जाती है।
  • यदि अशान्त आवर्ती दशमलव संख्याएँ 0.xy तथा 0.xyz के रूप की हों , तो इन्हें परिमेय संख्या p/q के रूप में निम्नवत् बदलते हैं – 0.x̅y̅ (xy – x)/90 तथा 0.x̅y̅z̅ = (xyz – x)/990 (यहाँ x , y , z प्राकृतिक अंक हैं)
  • किसी भी पहाड़े का योग उस संख्या (पहाड़े) के 55 गुने के बराबर होता है। अर्थात् n के पहाड़े का योगफल = 55n