नई उषा [Nayi Usha] – श्री सत्यनारायण लाल कक्षा 8 हिंदी

नई उषा [Nayi Usha]- श्री सत्यनारायण लाल

नई उषा [Nayi Usha] का विडिओ

उठो, नई किरण लिए जगा रही नई उषा उठो,

उठो नए संदेश दे रही दिशा-दिशा ।

सन्दर्भ-

प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती’ के पाठ ‘नई उषा’ से लिया गया है। इसके कवि श्री सत्यनारायण लाल जी हैं।

प्रसंग-

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने देश के नवयुवकों को जागरण का संदेश दिया है।

व्याख्या-

कवि देश के नवयुवकों से कह रहे हैं कि अब सोने का वक्त नहीं है। परतन्त्रता रूपी रात्रि बीत चुकी है। स्वतन्त्रता का नया प्रभात द्वार पर दस्तक दे रहा है। चारों ओर उजाला फैल गया है। ऐसे में प्रत्येक दिशा यह सन्देश दे रही है कि अब उठो और कर्म में जुट जाओ।

खिले कमल अरुण, तरुण प्रभात मुस्करा रहा,

गगन विकास का नवीन साज है सजा रहा।

उठो, चलो, बढ़ो, समीर शंख है बजा रहा,

भविष्य सामने खड़ा प्रशस्त पथ बना रहा।

प्रसंग –

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्रकृति के विविध उपकरणों के माध्यम से नवयुवकों को जागने एवं प्रगति पथ पर आगे बढ़ने का सन्देश दिया है।

व्याख्या –

कवि कहते हैं कि आजादी की नयी सुबह मुस्करा रही है। चारों ओर खुशियों की लालिमा फैल रही है। उम्मीदों के कमल खिल गये हैं। आकाश जैसे विकास के नये गीत गाने के लिए विभिन्न साजों को सजा रहा है। हवाएं जैसे शंख की मंगल-ध्वनि कर रही हैं। अतः हे नवयुवकों! उठो और आगे बढ़ो। तुम्हारे सामने तुम्हारा भविष्य खड़ा हुआ है, जो स्वयं तुम्हारा रास्ता बना रहा है।


उठो, कि सींच स्वेद से करो धरा को उर्वरा,

कि शस्य श्यामला सदा बनी रहे वसुंधरा ।

अभय चरण बढ़ें समान फूल और शूल पर

कि हो समान स्नेह, स्वर्ण, राशि और धूल पर।

प्रसंग –

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने नवयुवकों को कठोर परिश्रम करने हेतु प्रेरित किया है।

व्याख्या-

कवि कहते हैं कि हे नवयुवकों ! उठो, अपने पसीने से सींचकर इस धरती को उपजाऊ बना दो, ताकि यह धरती सदैव फसलों से हरी-भरी बनी रहे अर्थात् कठोर परिश्रम कर धरती की उत्पादन क्षमता को बढ़ा दो। तुम्हारे रास्ते में फूल आयें या कौंटे, तुम्हें निर्भीकता के साथ आगे बढ़ना है। ऐसे ही धन-सम्पत्ति के साथ-साथ धूल-मिट्टी से भी प्रेम करना सीखो, ताकि यह देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सके। तुच्छ एवं महत्वहीन वस्तुओं की भी उपेक्षा मत करो अर्थात् अमीरों एवं गरीबों के साथ समानता का व्यवहार करो।

सुकर्म, ज्ञान, ज्योति से स्वदेश जगमगा उठे,

कि स्वाश्रयी समाज हो कि प्राण-प्राण गा उठे ।

सुरभि मनुष्य मात्र में भरे विवेक ज्ञान की

सहानुभूति सख्य, सत्य, प्रेम, आत्मदान की।

प्रसंग –

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने कामना की है कि सत्कर्म, ज्ञान और विवेक के द्वारा देश स्वावलम्बी बने तथा मनुष्यों में प्रेम एवं मैत्री के भावों का संचार हो।

व्याख्या-

कवि कहते हैं कि सब लोग बुराइयों का परित्याग कर अच्छे कार्य करें। ज्ञान का प्रकाश चारों ओर फैलायें जिससे निरक्षरता का अन्धकार मिटे और ज्ञान की रोशनी से हमारा देश जगमगा उठे। कोई किसी दूसरे पर आश्रित न रहे। सभी स्वावलम्बी बनें। सभी के चेहरे खुशियों से खिल उठे और लोग प्रसन्नता के गीत गायें। लोगों को भले-बुरे का ज्ञान हो। सहानुभूति, मैत्री, सच्चाई, प्रेम और त्याग की सुगन्ध से मनुष्य मात्र का हृदय भर उठे अर्थात् आपसी कलह और द्वेषभाव को भूलकर प्रत्येक देशवासी एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति, प्रेम और त्याग की भावना का परिचय दे ।

प्रवाह स्नेह का प्रत्येक प्राण में पला करे,

प्रदीप ज्ञान का प्रत्येक गेह में जला करे ।

उठो, कि बीत है चली प्रमाद की महानिशा,

उठो, नई किरण लिए जगा रही नई उषा ।

प्रसंग –

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने नवयुवकों को आलस्य का परित्याग करने तथा प्रत्येक व्यक्ति को एक दूसरे के हृदय में प्रेम का भाव जगाने और देश की उन्नति हेतु कर्म पथ पर आगे बढ़ने को प्रेरित किया है।

व्याख्या –

कवि कहते हैं कि प्रत्येक देशवासी के हृदय में दूसरे के प्रति स्नेह की भावना का संचार हो कोई किसी से घृणा न करे। शिक्षा T एवं ज्ञान का प्रकाश पर-घर में फैले अर्थात् कोई अशिक्षित न रहे। पराधीनता रूपी आलस्य की लम्बी रात्रि बीत चुकी है। आजादी की नई ‘सुबह, नई किरणों का प्रकाश लिए तुम्हें जगा रही है। अतः नवयुवकों। उठो और कर्मपथ पर तत्पर हो जाओ।


अभ्यास

पाठ से-

प्रश्न 1. नई उषा से कवि का क्या अभिप्राय है?

उत्तर- नई उषा से कवि का अभिप्राय स्वतन्त्रता की प्राप्ति से है। जिस प्रकार अंधेरी रात के पश्चात् उषा काल का आगमन होता है उसी प्रकार लम्बे समय की पराधीनता के पश्चात् देश को आजादी मिली है। अतः स्वतन्त्रता प्राप्ति को ही कवि ने इस कविता में नई उषा कहा है।

प्रश्न 2. सभी मनुष्यों में किन-किन गुणों का विकास होना चाहिए?

उत्तर- कवि के अनुसार सभी मनुष्यों में विवेक अर्थात् भले-बुरे का ज्ञान आपस में सहानुभूति, मैत्री, सत्य, प्रेम एवं त्याग आदि गुणों का विकास होना चाहिए।

प्रश्न 3. कविता में कवि के प्राण प्राण गा उठे कहने का क्या आशय है ?

उत्तर- कविता में कवि के प्राण प्राण गा उठे कहने का आशय यह है कि लोग बुराइयों का परित्याग कर अच्छे कार्य करें, ज्ञान का प्रकाश चारों ओर फैलायें जिससे निरक्षरता का अन्धकार मिटे और ज्ञान की रोशनी से हमारा देश जगमगा उठे कोई किसी दूसरे पर आश्रित न रहे। सभी के खुशियों से खिल उठे और प्रसन्नता के गीत गायें।

प्रश्न 4. समाज को स्वाश्रयी कैसे बनाया जा सकता है?

उत्तर- कवि चाहता है कि हमारा समाज स्वावलम्बी बने। इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को बुराइयों का त्यागकर सत्कर्म करना होगा। हाल का प्रकाश चारों ओर फैलाना होगा, तभी समाज को स्वाश्रयी चनाया जा सकता है।

प्रश्न 5. नई उषा शीर्षक कविता में कवि किन-किन परिवर्तनों की ओर संकेत करता है ?

उत्तर- नई उषा शीर्षक कविता में कवि ने इन परिवर्तनों की ओर संकेत करते कहा है कि समाज में सभी स्वाश्रयी बनें। बुराई को त्यागकर सत्कर्मी बने तथा लोग आपसी द्वेष मिटाकर परस्पर प्रेम भाव के मन जगाना होगा, अशिक्षा के अन्धकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश चारों और फैलाना होगा।

प्रश्न 6. कविता में वर्णित वसुन्धरा शस्य श्यामला सदा कैसे बनी रह सकती है ? स्पष्ट कीजिए।।

उत्तर- कविता में वर्णित वसुन्धरा को किसानों, नवयुवकों को पसीने से सींचकर उपजाऊ बनाने को कह रहे हैं। जिससे हमारी धरती माता सदा हरी-भरी बनी रहे।

प्रश्न 7. प्रमाद की महानिशा बीतने से कवि का क्या तात्पर्य है?

उत्तर- प्रमाद की महानिशा से कवि का तात्पर्य है कि पराधीनता रूपी आलस्य की लम्बी व घोर रात्रि बीत चुकी है।

प्रश्न 8. प्रस्तुत कविता नवयुवकों के मन में किन-किन भाषों का संचार कर रही है ?

उत्तर- प्रत्येक नवयुवकों के हृदय में दूसरे के प्रति स्नेह भावना का संचार कर रही है तथा घृणा आलस्य, द्वेष आदि को दूर कर प्रेम, परिश्रमी और कर्मपथ पर तत्पर होने का भाव संचार कर रही है।

प्रश्न 9. यह कविता नवयुवको को क्या सन्देश दे रही है?

उत्तर – यह कविता नवयुवकों को संदेश दे रही है कि देश की प्रगति के लिए उन्हें आगे आकर कठोर परिश्रम करना होगा। उन्हें उत्पादन बढ़ाना होगा तथा आपसी द्वेष मिटाकर परस्पर प्रेम भाव जगाना होगा।

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