मस्जिद या पुल (कहानी) सुनीति कक्षा 5 हिन्दी

मस्जिद या पुल

दीन-ए-इलाही, गरीब नवाज़ शहंशाह-ए-आलम, महान बादशाह अकबर की अगवानी में जौनपुर के सूबेदार मुबारक खान ने जमीन-आसमान एक कर दिया। यह उसकी बरसों पुरानी साध थी। बरसों से वह लगातार बादशाह को जौनपुर आने के लिए न्यौते पर न्यौता देता चला आ रहा था, मगर बादशाह की जान को बड़े झमेले थे। उस दिन भी बड़ी मुश्किल से उन्हें उधर जाने का मौका मिल पाया था।

बादशाह के पास समय बहुत कम था। हाथी की पीठ से उतरकर उन्होंने अभी दो घड़ी आराम भी न किया था कि सूबेदार मुबारक खान बादशाह को गोमती के किनारे दूर-दूर तक फैले उस लंबे-चौड़े मैदान में ले गया, जहाँ मस्जिद बनाने की योजना थी। वहाँ जाकर उसने बादशाह को मस्जिद का नक्शा दिखाया। इस नक्शे को दिखाने के लिए वह बरसों से बेकरार था।

बादशाह ने नक्शे को बड़े ध्यान से देखा । उसे देखकर बादशाह की बाँछें खिल गईं। उन्होंने कहा, “बेशक, नक्शा बहुत खूबसूरत है मुबारक खान! आसमान को चूमने वाली इसकी ऊँची-ऊँची मीनारें, निराले गुंबद खुला तालाब, सब-के-सब बेमिसाल हैं। हमारा खयाल है कि खुदा के लाखों बंदे इसमें बैठकर अल्लाहताला से दुआ करेंगे और सुकून पाएँगे । “

“जी आलमपनाह, यह खूबसूरत और बेमिसाल मस्जिद दुनिया भर में हुजूर की दीनदारी और गरीबपरस्ती का डंका पीट देगी”, मुबारक खान ने झुककर आदाब बजाते हुए कहा । अकबर खुश होकर वहाँ से लौटे। अकबर महान थे। हमेशा अपनी प्रजा के दुख-सुख का ख्याल रखते थे। वेश बदलकर प्रजा के अंदरूनी हालात का पता लगाते रहते थे। उस दिन भी वे शाम होते ही वेश बदलकर गोमती के किनारे घूमने निकले।घूमते-घूमते एक जगह अकबर को किसी औरत के रोने की आवाज सुनाई दी। अकबर आवाज की ओर चलते हुए गोमती के किनारे नाव के पास आ पहुँचे। उन्होंने देखा कि नाव के पास एक अस्सी – नब्बे साल की काली और छोटे कद की बुढ़िया अपनी गठरी थामे पार जाने के लिए खड़ी है और कह रही है, “इस अल्लाह के मारे दुष्ट मुंशी को तो देखो; अभी अच्छी तरह दिन भी नहीं छिपा है कि दफ्तर बंद करके यहाँ से भाग गया। जब मुंशी ही नहीं है तो मल्लाह यहाँ क्यों ठहरेगा ? ये किस समय आते हैं और कब जाते हैं, कोई देखने वाला है? सूबेदार मुबारक खान को तो कर वसूलने से ही फुर्सत नहीं है। रिआया मरे या जिंदा रहे, इससे उसे क्या ? खूबसूरत, शानदार मस्जिद बनाकर उसे तो बादशाह को खुश करने से मतलब है कि उसका ओहदा और बढ़े।” बुढ़िया चुप होकर फिर बोलने लगी, “मुंशी से शिकायत करो तो कहता है तुम रोज-रोज पार जाती ही क्यों हो? अरे, पार नहीं जाएँगे तो खाएँगे क्या? हमारा कुम्हार का धंधा कैसे चलेगा? गाँव में ग्राहक ही कहाँ मिलेगा भला? फिर क्या खुद खाएँगे और क्या बच्चों को खिलाएँगे? अरे, मेरी तो बहू भी नहीं है, जो बच्चों को सँभाल लेती। नन्हें पोते-पोती भूख से बिलख रहे होंगे। हाय अल्लाह! मैं क्या करूँ?” बुढ़िया धाड़ मारकर जोर-जोर से रोने लगी ।

अकबर द्रवित हो गए। वे आगे बढ़कर बोले, “रोओ नहीं माई! मैं तुम्हें उस पार पहुँचाए देता हूँ।” बुढ़िया ने रोना बंद किया और गठरी लेकर खड़ी हो गई। “चल भाई ! तू ही मुझे पार ले चल । ” अकबर ने इससे पहले कभी नाव नहीं खेई थी। बुढ़िया बादशाह के चप्पू पकड़ने के ढंग

को देखकर बोली, “अरे, तुझे तो चप्पू भी ठीक से पकड़ना नहीं आता। तू पार क्या ले जाएगा?”

“मैं सँभालकर धीरे-धीरे चलाऊँगा माई, तू घबरा मत।” अकबर ने बुढ़िया को धीरज बँधाया । बुढ़िया के सामने और कोई दूसरा चारा भी नहीं था। ‘मरता क्या न करता बुढ़िया नाव में बैठ गई । बादशाह जी-जान से नाव खेने लगे। मगर नाव कभी इधर जाती तो कभी उधर । बुढ़िया का पारा ऊपर चढ़ने लगा। वह चिल्लाकर बोली, “अरे अनाड़ी! नाव उल्टी ले जा रहा है या सीधी। ऐसे चलकर तू हमें कल रात तक पार पहुँचाएगा। और यह भी पता नहीं कि नाव मझधार मंे ही डुबो दे। मेरे बच्चे इंतजार कर रहे होंगे और तू है कि नाव लेकर खिलवाड़ कर रहा है। “

“माई! सब्र तो कर,” बादशाह ने कहा। किन्तु बुढ़िया बोले जा रही थी, “असल में तो इन बातों का जवाबदेह बादशाह ही होता है। मगर बादशाह तो मुबारक खान की चिकनी-चुपड़ी बातों से ही खुश हो लेगा। उसे असलियत कौन बताएगा कि यहाँ मस्जिद की नहीं, एक पुल की जरूरत है। इस पुल के बिना, पारवाले लोगों को कितनी परेशानी होती है। अरे भाई, पुल न होने से उस पार कोई वैद्य या हकीम भी जाने को तैयार नहीं होता । “

बुढ़िया फिर चुप हो गई। थोड़ी देर बाद उसने फिर बड़बड़ाना शुरू कर दिया, “सूबेदार मुबारक खान हमारा हाकिम है, लेकिन उसे ये सब देखने की फुर्सत कहाँ है! उसे तो बस अपने कर वसूलने से मतलब है। लोग कह रहे हैं, यहाँ ऐसी मस्जिद बनेगी जो दुनियाभर में अपना सानी आप होगी । सुना है, आज अकबर यहाँ आया है। मगर कहीं वह मुझे मिल जाता तो मैं उसे बताती कि ओ दुनिया जहान के मालिक, अगर तू सचमुच ही लोगों का भला करना चाहता है तो पहले यहाँ पुल बनवा, मस्जिद नहीं।”बुढ़िया देर तक इसी तरह बड़बड़ाती रही। चारों ओर अँधेरा छा गया। आसमान में तारे छिटकने लगे । अंत में नाव किनारे पर पहुँच ही गई। नाव में से लड़खड़ाती हुई बुढ़िया किसी तरह किनारे पर उतरी । अकबर ने उसे सँभालते हुए कहा, “चलो माई ! अँधेरा हो गया है। कहीं तुम्हें ठोकर न लग जाए, मैं तुम्हें तुम्हारे घर पहुँचा देता हूँ।” यह कहकर अकबर ने बुढ़िया को उसकी गठरी समेत गोदी में उठा लिया। बुढ़िया घर पहुँची; उसके घर में कुहराम मचा था। बच्चे बिलख-बिलखकर रो रहे थे। उनका रोना देखकर बुढ़िया को मल्लाह पर बड़ा गुस्सा आया ।

उसने उतरते-उतरते उसके दोनों गालों को जोर से खरोंच दिया और बोली, “आज तूने मेरे बच्चों को भूखा मार डाला।” पहले तो बादशाह की आँखों में खून उतर आया, पर उन्होंने अपने को सँभाला और मन में सोचा, ‘मुझे तो इस बुढ़िया का अहसानमंद होना चाहिए कि इसने मुझे सच्चाई और असलियत का एक सबक सिखाया है।’ “शुक्रिया” कहकर बादशाह चुपचाप वहाँ से चले गए। अगले दिन शीशे में अपने खूबसूरत शाहीलिबास और रत्नजड़ित आभूषणों के साथ, अपने गालों पर खरोंच के निशान देखकर बादशाह मुस्करा दिए ।

उन्होंने जौनपुर में पहले पुल बनवाया, मस्जिद बहुत बाद में।

प्रश्न और अभ्यास

प्रश्न 1. बुढ़िया के घर में कोहराम क्यों मचा था?

उत्तर- बुढ़िया के घर न आने से बच्चे भूख के मारे बिलख-बिलख कर रो रहे थे इसलिए कोहराम मचा था।

प्रश्न 2. शीशे में अपने गालों पर खरोंच के निशान देखकर बादशाह क्यों मुस्कुराए?

उत्तर- शीशे में अपने गालों पर खरोंच के निशान देखकर बादशाह इसलिए मुस्कुराए क्योंकि बुढ़िया ने उसे सच्चाई और असलियत का एक सबक सिखाया।

प्रश्न 3. सूबेदार मुबारक खान बादशाह को क्यों खुश ‘करना चाहता था?

उत्तर- सूबेदार मुबारक खान जौनपुर के गोमती नदी के किनारे दूर-दूर तक फैले उस लंबे चौड़े मैदान में मस्जिद बनाने की बरसों से ख्वाहिश थी। इसलिए वह बादशाह को ‘खुश करना चाहता था ताकि वह मस्जिद बनाने के लिए तैयार हो जाय।

प्रश्न 4. बुढ़िया का पारा क्यों ऊपर चढ़ने लगा ?

उत्तर- बादशाह अकबर को नाव चलाना नहीं आता था। वे जी जान से नाव खेने लगे। नाव कभी इधर जाती तो कभी उधर बुढ़िया को घर जाने की जल्दी थी। बादशाह के इस प्रकार नाथ चलाने से हो जायेगी इसलिए मुहिया का चारा ऊपर चढ़ने लगा।

प्रश्न 5. पुल न होने से लोगों को क्या परेशानी होती थी?

उत्तर- पुल न होने से लोगों को बड़ी परेशानी होती थी। सामान खरीदने बेचने के लिए लोगों को शहर आना पड़ता था पूल होने से उनका काम बंद हो जायेगा पुल न होने से उस पार कोई बैद या हकीम भी जाने को तैयार नहीं होता

प्रश्न 6. बादशाह ने बुड़िया को घर तक क्यों पहुंचाया?

उत्तर- अंधेरा हो गया था कहीं उसे ठोकर न लग जाए इसलिए बादशाह ने पुढ़िया को घर तक पहुँचाया।

प्रश्न 7. बुढ़िया को बादशाह पर गुस्सा क्यों आया?

उत्तर- बादशाह के धीरे-धीरे नाव पाने के कारण बुढ़िया को घर पहुँचने में देर हो गई घर में कोहराम मचा था। बच्चे बिलख-बिलख कर रो रहे थे इसलिए बुढ़िया को बादशाह पर गुस्सा आया।

प्रश्न 8. अगर बुड़िया बादशाह को पहचान लेती तो उसका उनके प्रति व्यवहार कैसा होता?

उत्तर– अगर बुढ़िया बादशाह को पहचान लेती तो यह नम्र भाव से कहो ओ दुनिया जहान के मालिक, अगर तू सचमुच लोगों का भरता करना चाहता है तो पहले यहाँ पुल बनवा मस्जिद नहीं राजा के सामने उसका व्यवहार प्रजा के समान होता।

प्रश्न 2. खाली जगह में क्या आएगा ? कहानी पढ़कर कोष्टक में से सही शब्द छाँटकर लिखो-

(क)……… के पास बहुत कम समय था। (बुढ़िया /मुबारक खान /बादशाह)

(ख) नक्शे को देखकर बादशाह की ……… खिल गई। (आँखें /बातें/ बाहें)

(प) अरे……..नाव उल्टी से जा रहा है या सीधी। (खिलाड़ी/ अनाड़ी/ खिलाड़ी)

(ग) मुबारक खान ….. आदाब बजाते हुए कहा। अकड़कर /झुककर / तनकर)

(ङ) यह भी पता नहीं कि नाव को …….में ही डुबा (नदी/ सागर /मझधार)

उत्तर- (क) बादशाह, (ख)बाछें, (ग) झुककर (घ) अनाड़ी, (ङ) मझधार