महापुरुषों का बचपन (प्रेरक-प्रसंग) कक्षा 5 हिन्दी

महापुरुषों का बचपन (प्रेरक-प्रसंग)

पहला प्रसंग

शाहजी अपने आश्रयदाता, बीजापुर के सुल्तान के दरबार में जाने की तैयारी कर रहे थे। उनके मन में विचार आया, क्यों न शिवा को भी आज अपने साथ ले चलूँ? आखिर उसे भी तो एक न एक दिन इसी दरबार में नौकरी करनी है। दरबार के नियम-कायदों का ज्ञान भी उसे होगा । उन्होंने आवाज लगाई- “शिवा ! तुझे भी आज मेरे साथ दरबार में चलना है। जल्दी तैयार हो जा।” पिता के आज्ञाकारी पुत्र ने आदेश सुना। वह तुरंत तैयार हो गया। पिता-पुत्र दोनों दरबार में पहुँचे। शाहजी ने सुल्तान के सामने झुककर तीन बार कोर्निश की। फिर वे अपने पुत्र की ओर मुड़कर बोले, “बेटे ! ये सुल्तान हैं, हमारे अन्नदाता हैं, इन्हें प्रणाम करो।” लेकिन निडर बालक ने कहा, “पिता जी ! मेरी पूजनीय तो मेरी माँ भवानी हैं। मैं तो उन्हीं को प्रणाम करता हूँ।”

पिता ने पुत्र की ओर आँखें तरेरकर देखा, फिर सुल्तान को संबोधित करते हुए बहुत विनम्र स्वर में कहा, “हुजूर! यह अभी बच्चा है। दरबार के तौर-तरीके नहीं जानता। इसे माफ कर दीजिए।”घर लौटकर जब पिता ने अपने पुत्र को उसके व्यवहार के लिए डाँटा तो उसने फिर कहा,“पिता जी, माता-पिता, गुरु और माँ भवानी के अलावा यह सिर और किसी के आगे नहीं झुक सकता ” निडर बालक की बात सुनकर पिता जी सन्न रह गए।

दूसरा प्रसंग

स्कूल में कक्षाएँ लग रही थीं। निरीक्षण के लिए शिक्षा विभाग के निरीक्षक आनेवाले थे।

नियत समय पर वे आए। एक कक्षा में विद्यार्थियों को उन्होंने पाँच शब्द लिखने को दिए। उनमें से एक शब्द था ‘कैटल’ (Kettle ) मोहन ने यह शब्द गलत लिखा । अध्यापक ने अपने बूट से ठोकर देकर इशारा किया कि आगे बैठे लड़के की स्लेट देखकर शब्द ठीक कर ले। मोहन ने नकल नहीं की। वह तो सोचता था कि परीक्षा में अध्यापक इसलिए होते हैं कि कोई लड़का नकल न कर सके। मोहन को छोड़कर सब लड़कों के पाँचों शब्द सही निकले। उस पर अध्यापक भी नाराज हुए लेकिन उसने दूसरों की नकल करना कभी न सीखा।

तीसरा प्रसंग

विद्यालय लगा था, लेकिन एक कक्षा में कोई शिक्षक नहीं थे। उस कक्षा के कुछ विद्यार्थी बाहर टहल रहे थे, कुछ कक्षा में बैठे मूँगफली खा रहे थे। वे मूँगफली के छिलके वहीं कक्षा में फेंक रहे थे। शिक्षक कक्षा में आए और कक्षा में मूँगफली के छिलके बिखरे देखकर बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने पूछा, “कक्षा में मूँगफली के छिलके किसने फैलाए हैं?” किसी विद्यार्थी ने कोई जवाब नहीं दिया। शिक्षक ने दोबारा वही प्रश्न कठोरता से किया, किन्तु फिर भी किसी छात्र ने कोई उत्तर नहीं दिया। अब की बार शिक्षक ने हाथ में बेंत लेकर कहा, “अगर सच सच नहीं बताया तो सबको मार पड़ेगी।” वे एक छात्र के पास पहुँचे और उससे बोले, “ मूँगफली के छिलके किसने फेंके हैं?”

“जी, मुझे नहीं मालूम”, छात्र ने उत्तर दिया। ‘सटाक्, सटाक्’, दो बेंत उसके हाथ में पड़े। छात्र तिलमिलाकर रह गया। शिक्षक दूसरे, तीसरे, चौथे छात्र के पास पहुँचे। सभी से वही प्रश्न किया, सभी का उत्तर था- “मुझे नहीं मालूम।” सबके हाथों पर ‘सटाक्, सटाक्’ की आवाज हुई। अब शिक्षक पाँचवें छात्र के पास पहुँचे। उससे भी वही प्रश्न किया। छात्र ने उत्तर दिया, “श्रीमान् जी! न मैंने मूँगफली खाई, न छिलके फेंके। मैं दूसरों की चुगली नहीं करता, इसलिए नाम भी नहीं बताऊँगा। मैंने कोई अपराध नहीं किया है, इसलिए मैं मार भी नहीं खाऊँगा । “शिक्षक छात्र को लेकर प्रधानाध्यापक के पास पहुँचे। प्रधानाध्यापक ने सारी बात सुनकर बालक को विद्यालय से निकाल दिया। बालक ने घर जाकर पूरी घटना अपने पिता जी को सुनाई। दूसरे दिन पिता जी बालक को लेकर विद्यालय में पहुँचे। तेजस्वी पिता ने प्रधानाध्यापक से कहा, “मेरा पुत्र असत्य नहीं बोलता । वह घर के अतिरिक्त बाजार की कोई चीज भी नहीं खाता। उसका आचरण बहुत संयमित है। मैं अपने पुत्र को आपके विद्यालय से निकाल सकता हूँ किन्तु निरपराध होने पर उसे दंडित होते नहीं देख सकता।” प्रधानाध्यापक शांत हो गए। यही बालक आगे चलकर लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने नारा दिया था- “स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर ही रहूँगा । “

प्रश्न और अभ्यास

प्रश्न 1. शाहजी कहाँ जाने की तैयारी कर रहे थे?

उत्तर- शाहजी अपने आश्रयदाता, बीजापुर के सुल्तान के दरबार में जाने की तैयारी कर रहे थे ।

प्रश्न 2. बालक मोहन ने कौन-सा शब्द गलत लिखा था?

उत्तर- बालक मोहन ने कैटल शब्द गलत लिखा था।

प्रश्न 3. निडर बालक शिवा की बात सुनकर पिता पर क्या प्रभाव पड़ा होगा ?

उत्तर- निडर बालक शिवा की बात सुनकर पिता का सिर गर्व से ऊँचा हो गया।

प्रश्न 4. कक्षा के पाँचवें छात्र ने जवाब में क्या कहा?

उत्तर—कक्षा के पाँचवें छात्र ने जवाब में कहा। श्रीमान जी। न मैंने मूँगफल्ली खाई न मैंने छिलके फेंके। मैं दूसरों की चुगली नहीं करता। इसलिए नाम भी नहीं बताऊँगा।

प्रश्न 5. तेजस्वी पिता ने प्रधानाध्यापक से अपने पुत्र के संबंध में क्या कहा?

उत्तर – तेजस्वी पिता ने प्रधानाध्यापक से अपने पुत्र के संबंध में कहा कि मेरा पुत्र असत्य नहीं बोलता । वह घर के अतिरिक्त बाजार का कोई चीज नहीं खाता। उसका आचरण बहुत संयमित है।

प्रश्न 2. किसने किससे कब कहा-

(क) तुझे भी मेरे साथ दरबार में चलना है।

उत्तर- शाहजी ने अपने पुत्र शिवा से उस समय कहा जब वे दरबार जाने की तैयारी कर रहे थे।

(ख) मेरा पुत्र असत्य नहीं बोलता

उत्तर- यह कथन तेजस्वी पिता ने प्रधानाध्यापक से उस समय कहा जब उसे शाला से बाहर निकाल दिया गया था।

(ग) हुजूर यह अभी बच्चा है।

उत्तर – यह कथन शाहजी ने सुल्तान से उस समय कहा जब उसने सुल्तान को प्रणाम नहीं किया।

(घ) मैं दूसरों की चुगली नहीं करता।

उत्तर- यह कथन पाँचवें छात्र ने शिक्षक से कहा।

सोचो और लिखो

(क) शिवाजी अपने पिता का सम्मान करते थे पर उन्होंने दरबार में अपने पिता का आदेश नहीं माना। उन्होंने ऐसा क्यों किया ?

उत्तर – शिवाजी माता-पिता, गुरु और माँ भवानी के अलावा किसी और के आगे झुकना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपने पिता का आदेश नहीं माना।

(ख) बालक मोहन ने अध्यापक का इशारा पाकर भी नकल नहीं की। यदि तुम मोहन की जगह पर होते तो क्या करते ?

उत्तर- यदि हम मोहन की जगह होते तो नकल करवाने वाले अध्यापक की बात प्रधानाध्यापक तक पहुँचाते क्योंकि अध्यापक इसलिए होते हैं विद्यार्थी नकल न कर सकें।