गुरु और चेला (कविता) सोहन लाल द्विवेदी कक्षा 5 हिन्दी

गुरु और चेला (कविता) सोहन लाल द्विवेदी कक्षा 5 हिन्दी

गुरू एक थे और था एक चेला, 
चले घूमने पास में था न धेला 
चले चलते-चलते मिली एक नगरी,
चमाचम थी सड़कें चमाचम थी डगरी ।
मिली एक ग्वालिन धरे शीश गगरी,
गुरु ने कहा तेज ग्वालिन न भर री ।
बता कौन नगरी, बता कौन राजा,
कि जिसके सुयश का यहाँ बजता बाजा
कहा बढ़के ग्वालिन ने महाराज पंडित,
पधारे भले हो यहाँ आज पंडित ।
यह अंधेर नगरी है अनबूझ राजा,
टके सरे भाजी, टके सेर खाजा ।
गुरु ने कहा- जान देना नहीं है,
मुसीबत मुझे मोल लेना नहीं है।
न जाने की अंधेर हो कौन छन में?
यहाँ ठीक रहना समझता न मन में ।
गुरू ने कहा किंतु चेला न माना,
गुरू को विवश हो पड़ा लौट जाना ।
गुरूजी गए, रह गया किंतु चेला,
यही सोचता हूँगा मोटा अकेला ।
चला हाट को देखने आज चेला,
तो देखा वहाँ पर अजब रेल – पेला |
टके सेर हल्दी, टके सेर जीरा,
टके सेर ककड़ी टके सेर खीरा ।
टके सेर मिलती थी रबड़ी मलाई,
बहुत रोज उसने मलाई उडाई।
सुनो और आगे का फिर हाल ताजा ।
थी अंधेर नगरी, था अनबूझ राजा ।
बरसता था पानी, चमकती थी बिजली,
थी बरसात आई, दमकती थी बिजली |
गरजते थे बादल, झमकती थी बिजली,
थी बरसात गहरी, धमकती थी बिजली
गिरी राज्य की एक दीवार भारी,
जहाँ राजा पहुँचे तुरंत ले सवारी ।
झपट संतरी को डपट कर बुलाया,
गिरी क्यों यह दीवार, किसने गिराया ?
कहा संतरी ने – महाराज साहब,
न इसमें खता मेरी, ना मेरा करतब !
यह दीवार कमजोर पहले बनी थी,
इसी से गिरी, यह न मोटी घनी थी।
खता कारगीर की महाराज साहब,
न इसमें खता मेरी, या मेरा करतब !
बुलाया गया, कारीगर झट वहाँ पर,
बिठाया गया कारीगर झट वहाँ पर,
कहा राजा ने कारीगर को सजा दो,
खता इसकी है आज इसको सजा दो ।
कहा कारीगर ने, जरा की न देरी, महाराज!
इसमें खता कुछ न मेरी ।
यह भिश्ती की गलती यह उसकी शरारत,
किया गारा गीला उसी की यह गफलत ।
कहा राजा ने जल्द भिश्ती बुलाओं ।
पकड़ कर उसे जल्द फाँसी चढ़ाओ।
चला आया भिश्ती, हुई कुछ न देरी,
कहा उसने इसमें खता कुछ न मेरी ।
यह गलती है जिसने मशक को बनाया,
कि ज़्यादा ही जिसमें था पानी समाया ।
मशकवाला आया, हुई कुछ न देरी,
कहा उसने इसमें खता कुछ न मेरी ।
यह मंत्री की गलती है, मंत्री की गफलत,
उन्हीं की शरारत, उन्हीं की हिमाकत |
बड़े जानवर का था चमड़ा दिलाया,
चुराया न चमड़ा मशक को बनाया।
बड़ी है मशक खूब भरता है पानी,
ये गलती न मेरी, यह गलती बिरानी ।
है मंत्री की गलती तो मंत्री को लाओं,
हुआ हुक्म मंत्री को फाँसी चढ़ाओं।
चले मंत्री को लेके जल्लाद फौरन,
चढ़ाने को फाँसी उसी दम उसी क्षण |
मगर मंत्री था इतना दुबला दिखता,
न गर्दन में फाँसी का फंदा था आता ।
कहा राजा ने जिसकी मोटी हो गर्दन,
पकड़ कर उसे फाँसी दो तुम इसी क्षण।
चले संतरी ढूँढने मोटी गर्दन,
मिला चेला खाता था हलुआ दनादन ।
कहा संतरी ने चलें आप फौरन,
महाराज ने भेजा न्यौता इसी क्षण।
बहुत मन में खुश हो चला आज चेला,
कहा आज न्यौता छकूँगा अकेला ।।
मगर आके पहुँचा तो देखा झमेला,
वहाँ तो जुड़ा था अजब एक मेला ।
यह मोटी है गर्दन, इसे तुम बढ़ाओ,
कहा राजा ने इसको फाँसी चढ़ाओं!
कहा चेले ने कुछ खता तो बताओ,
कहा राजा ने-‘चुप’ न बकबक मचाओ।
मगर था न बुद्धू-था चालाक चेला,
मचाया बड़ा ही वहीं पर झमेला !!
कहा पहले गुरु जी के दर्शन कराओ,
मुझे बाद में चाहे फाँसी चढ़ाओ।
गुरूजी बुलाए गए झट वहाँ पर,
कि रोता था चेला खड़ा था जहाँ पर ।
गुरु जी ने चेले को आकर बुलाया,
तुरंत कान में मंत्र कुछ गुनगुनाया।
झगड़ने लगे फिर गुरू और चेला,
मचा उनमें धक्का बड़ा रेल-पेला ।
गुरु ने कहा- फाँसी पर मैं चढूँगा,
कहा चेले ने फाँसी पर मैं मरूँगा।
हटाए न हटते अड़े ऐसे दोनों,
छुटाए न छुटते लड़े ऐसे दोनों।
बढ़े राजा फौरन कहा बात क्या है?
गुरू ने बताया करामात क्या है।
चढ़ेगा जो फाँसी मूहरत है ऐसी,
न ऐसी मूहरत बनी बढ़िया जैसी ।
वह राजा नहीं, चक्रवर्ती बनेगा,
यह संसार का छत्र उस पर तनेगा ।
कहा राजा ने बात सच
गर यही गुरू का कथन,
झूठ होता नहीं है कहा राजा ने
फाँसी पर मैं चढूँगा .

इसी दम फाँसी पर मैं ही टँगूँगा ।
चढ़ा फाँसी राजा बजा खूब बाजा
प्रजा खुश हुई जब मरा मूर्ख राजा
बजा खूब घर-घर बधाई का बाजा ।
थी अंधेर नगरी, था अनबूझ राजा ।।

प्रश्न और अभ्यास

प्रश्न 1. स्वामी ने जतिन के पेट में दर्द होने का क्या कारण बताया?

उत्तर- स्वामी ने जतिन के पेट में पथरी होना बताया।

प्रश्न 2. स्वामी ने किस ढोंगी प्रक्रिया से जतिन के पेट का दर्द दूर किया ?

उत्तर- स्वामीजी ने सबसे पहले लड़के के पेट पर चुने का पानी मला, फिर हाथ में हल्दी का चूर्ण एवं कंकरी छिपाकर पेट में हाथ फरने लगे। चूने के पानी से हल्दी में रासायनिक क्रिया कर “लाल” रंग बना दिया जिसे सब लोगों ने खून समझ लिया और फिर हाथ में छिपी कंकरी को पचरी बता दिया।

प्रश्न 3. राहुल ने स्वामी जी के ढोंग की पोल कैसे खोली?

उत्तर- राहुल ने स्वामी जी के रखे नारियल को बदल दिया तथा शीशी में रखे द्रव पदार्थ को भी बदल दिया, जिसके परिणामस्वरूप स्वामी जी अपना चमत्कार दिखाने में असफल हो गये। इस प्रकार राहुल ने स्वामी जी के ढोंग की पोल खोली।

प्रश्न 4. नारियल से फूल कैसे निकले ?

उत्तर – नारियल के सिर पर तीन नेत्र होते हैं उसमें एक नेत्र पर छेद कर स्वामी जी ने मोंगरे के फूल की कलियाँ डाल दीं जो अंदर खिलकर फूल बन गई। इस प्रकार नारियल से फूल निकले।

प्रश्न 5. रोशन ने क्या-क्या चमत्कार दिखाये ?

उत्तर – रोशन ने अनेक चमत्कार दिखाये । जैसे- नारियल को फोड़कर उसके अंदर से मोंगरे के बहुत से फूल निकाले । कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों पर शोरों में रखा पदार्थ डाला और कागज जल उठा।

प्रश्न 6. भीड़ स्वामीजी जैसे लोगों के ढोंग से क्यों प्रभावित हो जाती है ?

उत्तर – भीड़ स्वामीजी जैसे लोगों के चमत्कारिक कारनामे देखकर प्रभावित हो जाती है।

प्रश्न 7. बीमार पड़ने पर हमें साधु के पास जाना चाहिए या डॉक्टर के पास? कारण सहित उत्तर लिखो?

उत्तर- बीमार पड़ने पर हमें डॉक्टर के पास जाना चाहिए क्योंकि डॉक्टर बीमारी के लक्षण के आधार पर उचित उपचार करता है।