गुंडाधूर ( जीवन चरित) कक्षा 5 हिन्दी

गुंडाधूर (जीवन चरित)

छत्तीसगढ़ का दक्षिणी भाग बस्तर प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है। यहाँ की कल-कल करती नदियाँ, झर-झर बहते झरने, मनोरम पर्वत मालाएँ तथा सुमधुर स्वर में चहकते वन-पक्षियों की आवाजें आगंतुकों को मंत्रमुग्ध कर देने के लिए पर्याप्त हैं। बस्तर को अपने भोले-भाले आदिवासियों की निश्छल मुस्कान के लिए भी जाना जाता है। ये बड़े ही सरल, निष्कपट और ईमानदार होते हैं। ये शांतिप्रिय और धैर्यवान भी होते हैं। अपनी सरलता और भोलेपन के कारण ये अक्सर शोषण का शिकार होते रहे हैं। सामान्यतः शांत रहनेवाले ये लोग कभी-कभी उकसाए जाने पर शत्रु को करारा जवाब भी देते हैं। हम तुम्हें एक प्रसंग तब का बता रहे हैं, जब बस्तर के लोगों ने तत्कालीन शासन व्यवस्था के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह कर दिया था।

1909-1910 की घटना है। उस समय ‘बस्तर में रुद्रप्रताप देव राज करते थे। यद्यपि 1903 में ही वे बालिग हो गए थे, पर ब्रिटिश शासन ने 1908 में उन्हें शासक घोषित किया और वहाँ अपना एक दीवान नियुक्त कर दिया। यह दीवान था बैजनाथ पंडा, जो अंग्रेजों का पिट्ठू था। वह अपने बेतुके आदेशों से प्रजाजन की मुश्किलें बढ़ा देता, उनका मनमाना शोषण करता और उन पर अत्याचार करता था। राज परिवार के लोगों में से राजा के चाचा लाल कालेंद्र सिंह और राजा की सौतेली माँ, सुवर्ण कुँवर, जनता में काफी लोकप्रिय थे। वे भी अंग्रेजों के शोषण और दीवान बैजनाथ पंडा की कुटिल नीतियों से त्रस्त थे।

गुंडाधूर ( जीवन चरित) कक्षा 5 हिन्दी

बस्तर के अधिकांश निवासियों की आजीविका वन पर ही आधारित थी। वन से प्राप्त वस्तुओं से ही वे जीवन यापन करते थे। वन पर उनका ही एकाधिकार था, पर दीवान बैजनाथ पंडा ने ऐसी नीति अपनाई जिसके कारण वन पर उनका अधिकार सीमित हो गया। वे अपनी आवश्यकता की छोटी-छोटी वस्तुओं के लिए भी तरसने लगे। जंगल से दातौन और पंक्तियाँ तक तोड़ने के लिए उन्हें सरकारी अनुमति लेनी पड़ती। इधर रियासत के अधिकारी और कर्मचारी प्रजाजन से दुर्व्यवहार करते थे और उन्हें राजा से मिलने नहीं देते थे। व्यापारी, सूदखोर और शराब ठेकेदार लोगों का बहुत शोषण करते थे। यह सब दीवान बैजनाथ पंडा की नीतियों और आदिवासियों के भोलेपन के कारण हो रहा था।

धीरे-धीरे जनता में असंतोष पनपने लगा। 1909 में जनता ने लाल कालेंद्र सिंह और रानी सुवर्ण कुँवर के साथ एक सम्मेलन किया। वे हजारों की संख्या में इंद्रावती नदी के तट पर एकत्र हुए। उनके हाथों में धनुष-बाण, भाले एवं फरसे थे। सभी ने इस सम्मेलन में यह संकल्प लिया कि वे दीवान बैजनाथ पंडा और अँग्रेजों के दमन और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करेंगे और उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकोगे। इस सम्मेलन में सर्वसम्मति से एक उत्साही युवक, ‘गुंडाधुर को विद्रोह का नेता चुना गया। गुंडाधूर नेतानार गाँव का रहने वाला था। वह निडर, साहसी और सत्यवादी था। आदिवासियों के स्वाभिमान की रक्षा के लिए किसी से भी टकरा जाने का साहस उसमें था।

गुंडाधुर ने नेतृत्व सँभालते ही विद्रोह के कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई। इस विद्रोह को स्थानीय बोली में ‘भूमकाल’ कहा गया। इस विद्रोह का संदेश आम की टहनियों में मिर्च बाँधकर गाँव-गाँव में भेजा जाता था। स्थानीय लोग इसे ‘डारा-मिरी’ कहते थे। गाँव-गाँव में लोग इस ‘डारा-मिरी’ का बड़े उत्साह से स्वागत करते गुंडाधुर कीआंदोलन से जुड़ गए। गुंडाधूर ने अंग्रेजों शोषक व्यापारियों, सूदखोरों, सरकार के पिट्ट् अधिकारियों, कर्मचारियों को सबक सिखाने की रूपरेखा बनाई। गुंडाधुर की योजना के अंतर्गत अँग्रेजों के संचार साधनों को नष्ट करना, सड़कों पर बाधाएँ खड़ी करना, थानों एवं अन्य सरकारी कार्यालयों को लूटना और उनमें आग लगाना शामिल थे।

2 फरवरी 1910 को सबसे पहले बस्तर में इस ऐतिहासिक ‘भूमकाल’ की शुरुआत हुई। बस्तर का पुसवाल बाजार सबसे पहले लूटा गया। एक भूचाल सा आ गया। पुलिस थाने लूटे गए, शोषकों को मारा गया और जंगल विभाग के कार्यालय नष्ट कर दिए गए। इस विद्रोह की आग देखते-ही-देखते पूरे बस्तर में फैल गई। राजा ने इस विद्रोह की सूचना अंग्रेजों को दे दी। अँग्रेज सरकार ने इस विद्रोह को कुचलने के लिए मेजर जनरल गेयर तथा डीवे को 500 सशस्त्र सैनिकों के साथ बस्तर भेजा। क्रांतिकारियों ने अंग्रेज सैनिकों को घेर लिया। एक तरफ धनुष-बाण, भालों और फरसों से लैस भूमकालिए थे तो दूसरी ओर अँग्रेज और उनके बंदूकधारी सैनिक अँग्रेज सैनिकों ने गोलियाँ चर्लाई जिनसे पाँच क्रांतिकारी मारे गए, पर विद्रोह अन्य स्थानों पर भी फैल गया। गुंडाधूर और उसके सहयोगी लाल कालेंद्र सिंह, रानी सुवर्ण कुँवर, बाला प्रसाद, नरसिंह तथा दुलार सिंह विद्रोह की आग को हवा दे रहे थे। वे क्रांतिकारियों के प्रेरणा-स्रोत थे।

डोंगरगॉव, अलनार तथा अन्य कई स्थानों पर चली इसी तरह की मुठभेड़ों में लगभग पाँच सौ क्रांतिकारी मारे गए।

एक बार स्थिति यहाँ तक पहुँची कि सैकड़ों साथियों के साथ गुंडाधूर ने मेजर गेयर को घेर लिया। वह आत्मसमर्पण के लिए भी तैयार हो गया पर सोनू माँझी नाम के एक लालची व्यक्ति ने अपने ही भाइयों के साथ विश्वासघात किया। उसने सभी क्रांतिकारियों को विश्वास मंे लेकर उन्हें इतनी शराब पिला दी कि वे बेसुध हो गए। ‘अलनार के मैदान में राग-रंग में डूबे इन लोगों को अँग्रेजों की सेना ने घेर लिया और गोलियाँ चलाईं। सैकड़ों लोग मारे गए। पकड़े गए लोगों को जगदलपुर के गोल बाजार में इमली के पेड़ पर फाँसी दे दी गई; पर अँग्रेज गुंडाधूर की छाया भी न छू सके। वीर गुंडाधूर अपने विश्वासपात्र साथी ‘ढिबरीधूर’ के साथ सघ वन में गायब हो गया। फिर कभी उसका पता न लग सका।

बस्तर के इतिहास का यह स्वातंत्र्य आंदोलन यद्यपि असफल हो गया, पर इस आंदोलन के जरिए गुंडाधूर ने आदिवासियों को उनके अधिकारों के लिए जागृत कर दिया। उनके भीतर अपनी मिट्टी, अपने जंगल के प्रति प्रेम भाव जागा और वे देशभक्त बने। उन्हें अपनी संस्कृति और स्वाभिमान की रक्षा के लिए तत्पर रहने की प्रेरणा मिली। इधर लोगों के बदले तेवर देखकर शोषकों के मन में भय उत्पन्न हुआ। शोषक, अत्याचारी अधिकारी, सूदखोर तथा आदिवासियों के भोलेपन का लाभ लेनेवाले अन्य लोग भयभीत हुए और शोषण में कमी आई। यह सब गुंडाधूर और उसके विद्रोह ‘भूमकाल’ के कारण हो सका। आज भी छत्तीसगढ़ में गुंडाधूर का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है। गुंडाधूर को बस्तर का स्वाभिमान कहा जाता है।

अभ्याश के प्रश्न

प्रश्न 1. आदिवासियों के विद्रोह का नाम क्या था ?

उत्तर- आदिवासियों के विद्रोह का नाम “भूमकाल”

प्रश्न 2. आदिवासियों का विद्रोह छत्तीसगढ़ में किस क्षेत्र में हुआ ?

उत्तर- आदिवासियों का विद्रोह छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में हुआ।

प्रश्न 3. बस्तर के आदिवासियों की विशेषताएँ लिखो।

उत्तर- बस्तर के आदिवासी भोले-भाले, शांतिप्रिय, धैर्यवान, सरल निष्कपट और निश्छल थे।

प्रश्न 4. बैजनाथ पण्डा कौन था लोग उससे असन्तुष्ट क्यों थे ?

उत्तर- बैजनाथ पण्डा अंग्रेजों का दीवान था वह अंग्रेजों, का पिट्टू था वह अपने बेतुके आदेशों से प्रजाजन की मुश्किलें बढ़ा देता था, उनका मनमाना शोषण करता था, उस पर अत्याचार करता था इसलिए लोग उससे असंतुष्ट थे।

प्रश्न 5. आदिवासियों के प्रेरणा स्रोत कौन-कौन थे?

उत्तर- आदिवासियों के प्रेरणा स्रोत लाल कालेन्द्र असिंह रानी सुवर्ण कुँवर, बाला प्रसाद, नरसिंह तथा दुलार सिंह

प्रश्न 6. भूमकाल आन्दोलन का क्या असर हुआ था?

उत्तर- भूमकाल आन्दोलन के अन्तर्गत बस्तर का पुसवाल बाजार लूटा गया इससे एक भूचाल सा आ गया। पुलिस थाने लूटे गये, शोषकों को मारा गया। इस विद्रोह की आग देखते ही देखते पूरे बस्तर में फैल गई सरिता

प्रश्न 7. अगर सोनू माँझी ने विश्वासघात नहीं किया होता तो क्या होता ?

उत्तर- अगर सोनू माँझी ने विश्वासघात नहीं किया होता तो मेजर गेयर ने आत्मसमर्पण कर दिया होता।

प्रश्न 8, आदिवासियों ने यदि तीर धनुष की जगह बंदूकों का प्रयोग किया होता तो क्या होता ?

उत्तर- आदिवासियों ने यदि तीर धनुष की जगह बंदूकों का प्रयोग किया होता तो निश्चित ही उनकी जीत होती.

प्रश्न 9. आदिवासी जंगल के आसपास रहते है, उन्हें जंगल से क्या-क्या चीजें मिलती है?

उत्तर- आदिवासियों को जंगल से लकड़ी जलाने एवं घरेलु उपयोग के लिए, औषधी, कंदमुल, फल एवं शिकार भोजन के लिए एवं आजीविका के अन्य उपयोगी वस्तुएँ भी उन्हें जंगल से प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 9. केवल नाम लिखो

(अ) बस्तर का दीवान – बैजनाथ पण्डा

(ब) राजा की सौतेली माँ – सुवर्ण कुँवर

(स) आम की टहनी और -डारा मिरी मिर्च का संदेश

(द) विश्वासघाती आदिवासी – सोनू माँझी

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