भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी शासन की स्थापना कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान भाग 1 इतिहास
भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी शासन की स्थापना कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान भाग 1 इतिहास
यूरोप से भारत पहुँचने के लिए समुद्री मार्ग की खोज वास्कोडिगामा ने सन् 1498ई. में की थी। इसके बाद पुर्तगाल के व्यापारी व्यापार और ईसाई धर्म के प्रचार के उद्देश्य से भारत आए। उन्होंने इस क्षेत्र पर अपना प्रभाव बढ़ाने बीजापुर, कर्नाटक के राजा से गोवा को अधिकृत कर अपनी राजधानी बनाया। अब समुद्री क्षेत्र में उनका प्रभाव बढ़ने के कारण वे वहीं से गुजरने वाले समुद्री जहाजों से टैक्स वसूलने लगे जो भी विदेशी जहाज उन्हें टैक्स नहीं देते थे उनके जहाज वे डुबो देते थे।
उस समय यूरोप के कई देशों के व्यापारी भारत व्यापार करने आते थे और यहाँ से मसाले, कपड़े और नील आदि वस्तुएँ बहुत कम दामों में खरीदकर यूरोप में ऊँची कीमतों में बेचते थे। उन दिनों यूरोप में मसालों की बहुत माँग थी क्योंकि यूरोपीय प्रायः मांसाहारी थे। खाद्य पदार्थों को खराब होने से बचाने के लिए मसालों की जरूरत होती थी; जो वहाँ पैदा नहीं होते थे। एशिया महाद्वीप में मसालों की पैदावार भारत, इण्डोनेशिया, मलाया, श्रीलंका आदि देशों में होती थी। इन देशों से समुद्री मार्ग से व्यापार करना आसान था ताकि कम-से-कम लागत में वे सामान ले जाकर अधिक-से-अधिक दामों में बेच सकें। यूरोपीय मसालों के बदले भारत को सोना और चाँदी देते थे। यूरोप में मसालों की खपत ज्यादा थी अतः लम्बे समय तक सोना, चाँदी देकर मसाले नहीं खरीदे जा सकते थे। इसलिए उन्हें उपनिवेशों से ही धन प्राप्त करने और उससे वहीं व्यापार करने की आवश्यकता महसूस हुई। इसके लिए वे यहाँ साम्राज्य स्थापित कर व्यापार में करों से छूट और धन प्राप्त करना चाहते थे पुर्तगालियों को लाभ कमाते देखकर हालैंड (डच), फ्रांस और इंग्लैंड की व्यापारिक कम्पनियाँ भारत आई। व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के कारण इनके आपस में भी संघर्ष होने लगे
उस समय सूरत भारत का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र था। अतः पुर्तगालियों ने गोवा, दमन एवं दीव में अपने कारखाने खोले इसी तरह डचों ने सूरत खंभात, पटना तथा मछलीपट्टनम में कारखाने खोले । फ्रांसिस मार्टिन ने पांडिचेरी शहर की स्थापना की थी। जो मद्रास के निकट समुद्र के किनारे स्थित है; जहाँ आज भी फ्रांसीसी सभ्यता की झलक दिखाई देती है। फ्रांसीसियों ने इसे अपनी राजधानी बनाया और यहाँ से तथा चन्द्रनगर से अपनी व्यापारिक गतिविधियाँ शुरू कीं । इसी तरह इंग्लैंड के व्यापारियों ने बम्बई, मद्रास और कोलकत्ता से व्यापार किया। अँग्रेजों ने मद्रास के सेंट फोर्ट जार्ज किले में अपना कारखाना स्थापित किया। इसी तरह डचों, फ्रांसीसियों और अंग्रेजों ने अपने व्यापारिक कारखाने स्थापित किए।
इस काल में ब्रिटिश कारखाने कोठी कहलाते थे।
कोठी- ऐसा किलेबंद क्षेत्र जिसमें कंपनी का गोदाम, दफ्तर तथा कंपनी के कर्मचारियों के रहने के लिए घर होते थे। यहीं पर सैनिक टुकड़ियाँ भी रखी जाती थी।
भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना
दक्षिण भारत के पूर्वी तट पर स्थित मद्रास अँग्रेजों का प्रमुख व्यापारिक केंद्र था। उसके समीप ही पांडिचेरी फ्रांसीसियों का केंद्र था। यह क्षेत्र उस समय कर्नाटक राज्य के नवाब के अधीन था अतः दोनों देशों का उद्देश्य वहाँ के नवाब से अपने-अपने व्यापारिक लाभ के लिए ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाना था। इसी समय कर्नाटक राज्य में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष शुरू हो गया। इससे फ्रांसीसी एवं अँग्रेजों को कर्नाटक की राजनीति में शामिल होने का अवसर मिल गया। ऐसे समय में फ्रांसीसियों ने एक पक्ष का और अँग्रेजों ने दूसरे का पक्ष लिया।
व्यापारिक सुविधा एवं युद्ध –
इस समय बंगाल भी एक सम्पन्न और स्वतंत्र राज्य था जिसमें उस समय बिहार और उड़ीसा भी शामिल थे। यहाँ से बड़े पैमाने पर विदेशी व्यापार होता था। ढाका, पटना और मुर्शिदाबाद यहाँ के प्रमुख व्यापारिक केंद्र थे । इस काल में यहाँ कृषि – व्यापार और उद्योगों का विकास हुआ और राजस्व आय में वृद्धि हुई। 1756 में बंगाल के नवाब अली वर्दी खाँ की मृत्यु के बाद सिराजुद्दौला नवाब बना अँग्रेज और फ्रांसीसी दोनों उन्हें मिली व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग कर किलेबंदी करने लगे। सिराजुद्दौला ने उन्हें रोकने का प्रयास किया तो अँग्रेज नहीं माने, उल्टे उन्होंने नवाब के सेनापति मीर जाफर को अपनी ओर मिला लिया और कूटनीति से वे 23 जून 1757 को प्लासी का युद्ध जीत गए।
चुंगी कर एक राज्य से दूसरे राज्य में व्यापारिक माल लाने ले जाने पर वहाँ के राजा को जो कर देना पड़ता था, उसे चुंगी कर कहते थे।
प्लासी के युद्ध से अँग्रेजों को लाभ
प्लासी के युद्ध से अंग्रेजों को बहुत आर्थिक लाभ हुआ। अँग्रेजों ने मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाकर उससे अपार धन वसूल किया और व्यापारिक सुविधाएँ प्राप्त कीं
लेकिन नवाब मीर जाफर अँग्रेजों के बढ़ते हस्तक्षेप और आर्थिक माँगों के बोझ को ज्यादा दिनों तक नहीं उठा सका। अंततः अंग्रेजों ने विश्वासघात से उसे भी सत्ता से बाहर कर दिया। अँग्रेजों ने उसके बदले मीर कासिम को बंगाल का नवाब बनाकर उससे चटगाँव, वर्द्धमान और मिदनापुर जिलों में राजस्व वसूल करने के अधिकार स्थायी रूप से प्राप्त कर लिए साथ ही बहुत-सा पैसा भी उन्हें प्राप्त हुआ। मीर कासिम भी ज्यादा दिनों तक इन आर्थिक पाबंदियों को नहीं उठा सका। नवाब मीर कासिम ने परेशान होकर बंगाल में व्यापार पर से सभी कर हटा दिए और कंपनी के कर्मचारियों को चुंगी कर देने के लिए विवश कर दिया। इससे अँग्रेजों को मिलनेवाली सुविधाएँ बंद हो गई। अब नवाब और अंग्रेजों के बीच तनाव बढ़ गया।
बंगाल में अँग्रेजों की गतिविधियों को रोकने के लिए नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय इन तीनों की संयुक्त सेना और अँग्रेजों के बीच 1764 में बिहार के बक्सर नामक स्थान पर युद्ध हुआ। इस युद्ध में भी अँग्रेज विजयी हुए। युद्ध का अंत इलाहाबाद की संधि से हुआ। इस तरह प्लासी युद्ध के अधूरे कार्य को बक्सर युद्ध ने पूर्ण कर दिया।
1. अँग्रेजों ने शुजाउद्दौला को पुनः अवध का नवाब बना दिया और उसके बदले अवध में मुफ्त व्यापार करने की छूट प्राप्त की ।
2. यह तय हुआ कि जरूरत पड़ने पर अवध की सेना अँग्रेजों की सहायता करेगी, लेकिन उसका खर्च नवाब ही उठाएगा।
3. अँग्रेजों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी (कर वसूलने का अधिकार ) प्राप्त हो गया। इस प्रकार अँग्रेजों का बंगाल में एकाधिकार तो हो गया लेकिन उन्होंने शासन की बागडोर नहीं सँभाली। वहाँ अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों का शासन था। इसे ही बंगाल में द्वैध शासन या दोहरा शासन कहा जाता है।
द्वैध शासन का बंगाल पर प्रभाव
पहले यहाँ किसानों से राजस्व (लगान) की वसूली फसलों की उपज के आधार पर की जाती थी। अब अँग्रेज भूमि के नाप के आधार पर लगान वसूलने लगे। कम खर्च में लगान वसूलने एवं कंपनी के लिए सालाना एक निश्चित आय प्राप्त करने के उददेश्य से उन्होंने लगान को ठेके पर देना शुरू किया। अब जनता से ठेकेदार मनमाना लगान वसूलते थे और उसमें से एक निश्चित मात्रा अंग्रेजों को देते थे। इस प्रकार ठेकेदार और कंपनी के कर्मचारियों ने बंगाल के किसानों का बहुत शोषण किया। 1770 में बंगाल में अकाल पड़ गया; ठेकेदार किसानों से लगान वसूलते रहे। संसद ने 19 जून 1773 में रेग्युलेटिंग एक्ट पास किया और वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का गवर्नर जनरल बनाया गया। अब बंगाल में अँग्रेजों का सीधा शासन स्थापित हो गया और उन्होंने कलकत्ता को अपनी राजधानी बनाया।
वारेन हेस्टिंग्स के कार्य
हैस्टिंग्स ने अन्य भारतीय शासकों से भी लड़ाइयाँ शुरू कर दीं। उसने अवध, मैसूर, मराठों आदि देशी राज्यों के साथ समयानुसार दोस्ती, युद्ध एवं संधि की नीति अपनाई । अवध से मित्रता कर बंगाल में शासन को सुरक्षित और सुदृढ़ किया। वहीं मैसूर शासक हैदरअली से युद्ध कर संधि किया। प्रथम अँग्रेज मैसूर युद्ध ( 1767-69) मद्रास की संधि से समाप्त हुआ। संधि की प्रमुख शर्तों में बाह्य आक्रमण पर एक दूसरे को सहयोग देना प्रमुख था, किन्तु जब पेशवा ने मैसूर पर आक्रमण किया तो अँग्रेजों ने हैदरअली का साथ नहीं दिया, जिससे हैदरअली हार गया। परिणाम स्वरूप 1780 में अँग्रेजों और हैदरअली की सेना के बीच द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध हुआ जो अंततः 1784 में मैंगलोर की सधि से समाप्त हुआ।
युद्ध का परिणाम बराबरी पर रहा लेकिन अँग्रेजों की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। हैदरअली की मृत्यु के बाद उसका पुत्र टीपू सुल्तान 32 वर्ष की उम्र में मैसूर का शासक बन गया। वह विद्वान और बहादुर सैनिक था। उसे कई भाषाओं का ज्ञान था। उसकी फ्रांस और तुर्की देशों से अच्छी मित्रता थी जिससे अँग्रेज शंका करने लगे। जब टीपू ने त्रावणकोर पर आक्रमण किया तो अँग्रेज उसके विरुद्ध युद्ध में शामिल हुए। निजाम तथा मराठों ने भी अंग्रेजों का साथ दिया जिसके कारण टीपू हार गया और उसे सन् 1792 में अंग्रेजों से श्री रंगपट्टनम की संधि करनी पड़ी। इस संधि से अँग्रेजों को टीपू का आधा राज्य और तीन करोड़ रुपये युद्ध के हरजाने के रूप में मिले ।
1798 में जब लार्ड वेलेजली बंगाल का गर्वनर जनरल बनकर भारत आया तो उसने ब्रिटिश भारत के दूसरे चरण की शुरुआत की। इसके लिए उसने जो साम्राज्य विस्तार की नीति अपनाई वह भारतीय इतिहास में सहायक संधि के नाम से प्रसिद्ध है। इस संधि के दो उद्देश्य थे
(1) कंपनी द्वारा विजित क्षेत्रों की रक्षा करना
(2) कंपनी राज्य के चारों ओर विश्वसनीय देशी राज्यों की दीवार खड़ी करना
सहायक संधि की शर्ते
- सहायक संधि स्वीकार करनेवाले प्रत्येक राज्य को अपने पास अँग्रेज सेना रखनी पड़ती थी जिसका खर्च राज्य को उठाना पड़ता था।
- अपनी सेना से अँग्रेजों के अतिरिक्त सभी यूरोपीय लोगों को हटाना आवश्यक था।
- एक अँग्रेज रेजीडेंट (प्रतिनिधि) रखना आवश्यक था जिसकी सलाह से वे शासन कर सकते थे।
- अन्य देशों से कूटनीतिक संधि करने के पहले अंग्रेजों से अनुमति लेना जरूरी था ।
- कंपनी को वार्षिक कर देना पड़ता था
वेलेजली ने अपनी सहायक संधि का क्रियान्वयन सबसे पहले हैदराबाद के निजाम से, फिर अवध के नवाब से किया। जब उसने मैसूर को इसके लिए बाध्य करना चाहा तो टीपू ने संधि करने से इंकार कर दिया। अतः अँग्रेजों ने मैसूर पर आक्रमण कर दिया। सन् 1799 में चतुर्थ अँग्रेज मैसूर युद्ध में बहादुरीपूर्वक लड़ते हुए टीपू वीरगति को प्राप्त हुए । अँग्रेजों ने मैसूर राज्य पूर्व नाडियार शासकों को ही वापस कर दिया, जिन्हें हटाकर हैदरअली मैसूर का शासक बना था। उससे सहायक संधि कर अप्रत्यक्ष रूप से आधिपत्य स्थापित कर लिए। इसी तरह कर्नाटक, तंजौर और सूरत आदि राज्यों को भी अंततः ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया।
ब्रिटिश शासन के सामने अब मराठा शक्ति ही शेष बची थी। उनमें – पारिवारिक संघर्ष चल रहा था। वेलेजली ने उसका फायदा उठाकर संधि का प्रस्ताव रखा। 1802 को बेसिन की संधि द्वारा पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अँग्रेजों की शर्तें स्वीकार कर लीं। इधर अँग्रेजों का सिंधिया और भोंसले से भी युद्ध (1802-04 ) हुआ जिसमें अँग्रेज विजयी रहे। इसी प्रकार अँग्रेजों और होल्कर के बीच तृतीय अँग्रेज मराठा युद्ध (1804-05) हुआ जिसमें अँग्रेजों की हार हुई और उन्हें भारी नुकसान हुआ। इसी तरह अँग्रेजों ने सिंधिया और गायकवाड़ को भी संधि करने के लिए विवश कर दिया। इन अपमानजनक संधियों के कारण मराठों का स्वाभिमान पुनः जागने लगा। अब वे अंतिम और निर्णायक युद्ध लड़ने के लिए तत्पर हो गए । फलतः चतुर्थ आंग्ल मराठा युद्ध (1817 -1818) प्रारंभ हो गया। इस युद्ध में पेशवा, होल्कर और भोंसले की संयुक्त सेना को पराजय का सामना करना पड़ा और मराठा शक्ति का अंत हो गया।
इसके बाद क्रमशः फ्रांसिस रोडन हेस्टिंग्स और विलियम बैंटिंक बंगाल के गवर्नर जनरल बनकर भारत आए। उन्होंने युद्ध के सुधारवादी और आर्थिक विकास की नीति के साथ शासन प्रारंभ किया।
विलियम बैंटिंक
विलियम बैंटिंक की गणना सुधारक गवर्नर जनरल के रूप में की जाती है। वह युद्ध के बदले शान्ति का अनुयायी था । निरंतर युद्ध में रहने से कंपनी की आर्थिक स्थिति बिगड़ चुकी थी जिसे सुधारने में सर्वप्रथम विलियम बैंटिंग ने विशेष ध्यान दिया। उसने सैनिकों की संख्या एवं प्रशासनिक व्यय में कमी की। उसने उच्च पद पर भारतीय अधिकारियों की नियुक्ति की। राजस्व वसूली करने के लिए उसने टोडरमल की बंदोबस्त व्यवस्था को अपनाया और 30 वर्षों के लिए लगान निश्चित करवाया। उसने सामाजिक सुधार में विशेष ध्यान दिया और प्रमुख सामाजिक कुरीतियों जैसे सती प्रथा, बाल-विवाह, बाल-हत्या और नरबली प्रथा आदि पर रोक लगाने संबंधी कठोर कानून बनाए। उसने अँग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया। उसने कलकत्ता में एक मेडिकल कॉलेज की स्थापना की। उसने सन् 1831 में एक कानून पास करवाया जिससे भारतीयों की उच्च पदों पर नियुक्ति की जा सके। उसने राष्ट्रीय राजमार्गों की स्थापना की । सन् 1818 तक मराठों का पतन होने के साथ ही अँग्रेजों का अधिकार पंजाब और सिंध प्रांतों को छोड़कर लगभग सम्पूर्ण भारत पर हो गया था। अब तक भारत में कंपनी के सभी विरोधी समाप्त हो चुके थे। इसलिए कंपनी को प्रशासनिक सुधारों की ओर ध्यान देने का अवसर मिला। इन दिनों यूरोप में इंग्लैंड और रूस के बीच तनाव चल रहा था। अँग्रेजों को डर था कि रूस अफगानिस्तान के माध् यम से भारत पर आक्रमण कर सकता है। भारत का सिंध प्रांत अफगानिस्तान से लगा हुआ था। वहाँ के अमीर को सहायक संधि के लिए बाध्य किया गया और अंततः सिंध को अधिकार में कर लिया गया। इसी तरह पंजाब राज्य भी रणजीत सिंह के नेतृत्व में काफी शक्तिशाली था। उनकी मृत्यु के बाद अँग्रेजों ने पंजाब पर आक्रमण कर दिया और 1849 में पंजाब पर भी अधिकार कर लिया।
लार्ड डलहौजी
जब लार्ड डलहौजी भारत का गर्वनर जनरल बना। उसने अन्यायपूर्ण तरीके से देशी राज्यों को परेशान किया। उसने तीन अव्यावहारिक नीतियाँ बनाकर उनका पालन करने के लिए देशी राज्यों को बाध्य किया, जिसे भारतीय इतिहास में डलहौजी की हड़प नीति के नाम से जाना जाता है।
डलहौजी की हड़प नीति
- निःसंतान राजाओं के दत्तक ( गोद लिए ) पुत्रों के अधिकार को न मानते हुए उनके राज्यों को अँग्रेजी राज्य में मिलाना।
- कुशासन के आधार पर देशी राजाओं को हटाकर उनके राज्य पर अधिकार कर लेना
- युद्ध द्वारा देशी राज्यों को अधिकार में करना ।
डलहौजी ने अपनी पहली नीति के अनुसार सतारा, जैतपुर झाँसी, नागपुर, उदयपुर आदि राज्यों को अँग्रेजी सामाज्य में मिला लिया। इसी तरह उसने अपनी दूसरी नीति के अनुसार अवध को अपने अधिकार में कर लिया। उसने युद्ध के द्वारा पंजाब को भी अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया।
लार्ड डलहौजी के शासन काल में कुछ प्रशासनिक सुधार के कार्य भी हुए जिसमें डाक-तार की स्थापना, कमिश्नरी प्रणाली लागू करना, परिवहन एवं संचार के क्षेत्र में सुधार और शिक्षा आयोग का गठन प्रमुख हैं। भारत में पहली रेलगाड़ी 1853 में मुम्बई थाणे के बीच चली थी। यद्यपि इन सुधारों के पीछे अँग्रेजों का अपना स्वार्थ था। इससे उन्हें अपने विजित राज्यों में प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित करने में मदद मिली। इसके अतिरिक्त कच्चा माल इकटठा करने एवं तैयार माल भेजने में सुविधा होने लगी लेकिन इसके परिणाम स्वरूप भारत का भी विकास हुआ।
अभ्यास प्रश्न
1. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. यूरोप से भारत पहुँचने के समुद्री मार्ग की खोज ने की थी
2. यूरोपीय व्यापार से भारत को.. ..एवं.. प्राप्त होता था ।
3. अंग्रेजों ने मद्रास के किले में अपना कारखाना स्थापित किया
4. ……..ने पांडिचेरी नगर की स्थापना की
5. अँग्रेजों ने प्रारंभ में ………… को अपनी राजधानी बनाया।
2. उचित संबंध जोड़िए
1. पेरिस की संधि
बक्सर का युद्ध
2. इलाहाबाद की संधि कर्नाटक युद्ध
3. बेसिन की संधि मैसूर युद्ध
4. श्रीरंगपट्टनम की संधि
अंग्रेज मराठा युद्ध
3. सही क्रम दीजिए –
अँग्रेज गर्वनरों का भारत आगमन जिस क्रम में हुआ, उसी क्रम में इन नामों को व्यवस्थित करें –
1. वेलेजली
2. कार्नवालिस
3. लार्ड हेस्टिंग्स
5. डलहौजी
4. विलियम बैंटिंक
4. प्रश्नों के उत्तर दीजिए
1. भारत का प्रथम गवर्नर जनरल कौन था ?
2. हैदरअली कहाँ का शासक था ?
3. अँग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच कौन सा युद्ध हुआ था ?
4. बक्सर युद्ध के बाद अंग्रेजों के इलाके से भू-राजस्व वसूलने का अधिकार किसे प्राप्त हुआ था ?
5. प्लासी युद्ध से अँग्रेजों को क्या लाभ हुआ ?
6. द्वैध शासन को समझाइए
7. वेलेजली की सहायक संधि की शर्तों को बताइए ?
8. डलहौजी की हड़प नीति पर प्रकाश डालिए ?
9. बैंटिंक के प्रशासनिक सुधारों को लिखिए ?
10. अगर प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला जीत जाता तो क्या होता?
11. यदि यूरोपीय देशों के उपनिवेश नहीं होते तो उन देशों की आर्थिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ता?