पूर्ण संख्या/ Whole-Numbers

पूर्ण संख्या (Whole Number)

प्राकृतिक संख्याओं (1, 2, 3, 4, ……) में शून्य (0) को सम्मिलित करने पर जो संख्याएँ प्राप्त होती हैं, पूर्ण संख्याएँ कहलाती हैं। पूर्ण संख्याओं को W से प्रदर्शित करते हैं। या फिर इसे इस तरह से भी परिभाषित किया जा सकता हैं “शून्य ‘0’ से लेकर अनंत तक की संख्याओं को पूर्ण संख्याएँ कहते हैं।” उदाहरण: 0, 1, 2, 3, 4, ……। ∞ आदि

स्मरणीय बिंदु:

शून्य (0) सबसे छोटी एवं पहली पूर्ण संख्या है।

सभी प्राकृतिक संख्याएँ पूर्ण-संख्याएँ हैं।

चूंकि प्रत्येक पूर्ण संख्या से बड़ी पूर्ण संख्याएँ होती हैं अतः कोई भी पूर्ण संख्या सबसे बड़ी पूर्ण संख्या नहीं होती है।

पूर्ण संख्याओं में योग का गुण

योग का संवरक प्रगुण: 

जब किसी दो पूर्ण संख्याओं का आपस में जोड़ा जाता हैं तो प्राप्त योगफल सदैव पूर्ण संख्या होता है, यह पूर्ण संख्याओं के योग का संवरक प्रगुण है।

उदाहरणार्थ:-11 + 9 = 20 इन दोनों संख्याओं का योग 20 एक पूर्ण संख्या है।

योग का क्रम-विनिमेय गुण: 

जब किसी दो पूर्ण संख्याओं को जोड़ा जाता हैं तो उनके योगफल पर संख्याओं के क्रम का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, इसे ही योग का क्रम-विनिमेय प्रगुण है।

उदाहरणार्थ: 14 + 33 = 47
33 + 14 = 4

योग का तत्समक अवयव: 

किसी पूर्ण संख्या में यदि शून्य को जोड़ा जाता है तो योगफल वही संख्या प्राप्त होती है। इसी कारण शून्य को पूर्ण संख्याओं में योग का तत्समक अवयव कहते हैं।

शून्य को पूर्ण संख्याओं के लिए योज्य तत्समक भी कहते हैं।
उदाहरणार्थ: 3 + 0 = 0 + 3 = 3

योग का साहचर्य प्रगुण: 

तीन पूर्ण संख्याओं को क्रम में जोड़ते समय किन्हीं दो पूर्ण संख्याओं का समूह पहले बना लेने से योगफल में अंतर नहीं पड़ता है, यह योग संक्रिया का साहचर्य प्रगुण है।

उदाहरणार्थ: (11+33) +102 = 11+ (33+102) = 11+33+102