ब्रज माधुरी कक्षा 8 हिन्दी

चितै चितै चारों ओर चौंकि चौंकि परेँ त्यों ही,

जहाँ-तहाँ जब-तब खटकत पात है।

भाजन सो चाहत, गँवार ग्वालिनी के कछु,

डरनि डराने से उठाने रोम गात हैं ।

कहैं ‘पदमाकर’ सुदेखि दसा मोहन की,

सेष हू महेस हू, सुरेस हू सिहात हैं।

एक पाँय भीत, एक पाँय मीत काँधे धरें,

एक हाथ छींको एक हाथ दधि खात हैं।। 1।।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक “छत्तीसगढ़ भारती” के ब्रज माधुरी नामक पाठ से लिया गया है। इसके कवि पद्माकर जी है।

प्रसंग – इस पद्यांश में कवि ने बालक कृष्ण द्वारा दही चुराने की घटना का सुन्दर चित्रण किया है।

व्याख्या – कृष्ण अपने बाल सखाओं के साथ किसी ग्वालिन के घर दही चुराने जाते हैं। वे वही सतर्कता के साथ आगे बढ़ते है, किन्तु जब भी कहीं कोई पत्ता भी खड़कता है, चौंककर चारों ओर देखने लगते हैं। इसी बीच गाँव की एक ग्यालिन उन्हें किसी चीज का भय बताकर डरा देती है। इससे उनका पूरा शरीर रोमांचित हो उठता है और वे भाग जाना चाहते हैं।

कवि पद्माकर कहते हैं कृष्ण की यह दशा देखकर शेषनाग, शंकर एवं देवराज इन्द्र को उनसे ईर्ष्या होने लगती है। ग्वालिन के घर पहुँचकर सीके तक पहुँचने के लिए बालकृष्ण अपना एक पैर दीवार पर और दूसरा पैर मित्र के कंधे पर रखते हैं। फिर वे एक हाथ से सीके को पकड़कर दूसरे हाथ से दही निकाल निकालकर खाने लगते हैं।

पंकज कोस में भृंग फस्यौ, करती अपने मन यो मनसूबा ।
होइगो प्रात आँगे दिवाकर जाऊँगो धाम पराग लै खुबा

बेनी सो बीच ही और भई, नहि काल को ध्यान न जान अजूबा

आय गयंद चाय लियो, रहिगो मन-ही-मन यो मनसूबा ॥

सन्दर्भ – प्रस्तुत पर्याश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती’ के ‘ब्रज-माधुरी’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके कवि बेनीजी है।

प्रसंग– इस पर्याश में कवि ने कमल कोश में फँसे और के माध्यम से जीवन की नश्वरता को बताया है।

व्याख्या – सूर्यास्त होने पर कमल दल के संकुचित हो जाने पर एक भौरा उसके कोश में फँस गया। वह मन-ही-मन इस प्रकार सोचने लगा कि कल प्रातः जब सूर्योदय होगा और कमल पुनः विकसित हो जायेगा तो मैं बहुत-सा पराग लेकर अपने घर चला जाऊँगा, अर्थात् उड़ जाऊँगा बेनी कवि कहते हैं कि इसी बीच एक और ही घटना घट गयी। इसमें कोई अचरज नहीं कि उस और को काल अर्थात् अपनी मृत्यु का ध्यान ही नहीं रहा। वहाँ एक हाथी आया और उसने उस कमल को चबा डाला, जिसमें वह भौरा बन्द था। इस प्रकार उस और की इच्छा उसके मन में ही धरी रह गयी और वह काल के गाल में समा गया।

सखी हम काह करें कित जायें।

बिनुदेखें वह मोहिनी मूरति नैना नाहि अघायें।

बैठत उठत सयन सोवत निस चलत फिरत सब ठौर ।

नैनन तें वह रूप रसीलो टरत न इक पल और ।

सुमिरन वही ध्यान उनको ही मुख में उनको नाम ।

दूजी और नाहिं गति मेरी बिनु मोहन घनश्याम ।

सब ब्रज बरजो परिजन खीझौ हमरे तो अति प्रान ।

हरीचन्द हम मगन प्रेम-रस सूझत नाहिं न आन ।। 3 ।।

सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ भारती’ के ‘ब्रज-माधुरी’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके कवि भारतेन्दु हरिशचन्द्र है।

प्रसंग– इस पद्यांश में कवि ने सखी के मन की दुविधा तथा कृष्ण के प्रति प्रेमभाव का वर्णन किया है।

व्याख्या – नायिका अपनी सखी से मन की दुविधाओं का उल्लेख करती हुई कहती है कि सखी में क्या करूँ, कहाँ जाउँ, कृष्ण के मोहिनी मूरत को देखे बिना मेरे नैन नहीं भरते हैं। बैठते उठते, सोते-जागते, चलते-फिरते सब जगह उनका रूप देखने को तरसता है। एक पल के लिए भी क्षेत्र उसके ध्यान से हटता नहीं है। हर समय मन में कृष्ण का ही नाम है। कृष्ण के बिना मेरी दूसरी कोई गति नही है। सभी ब्रजवासी तथा परिवार के लोग मना करते हैं, खीझते हैं। कवि कहते हैं कि कृष्ण के प्रेम के अलावा उन्हें और कुछ नही सूझता है।

अभ्यास

प्रश्न 1. चितै चितै चारों ओर इस छंद में कौन बार-बार चौककर इधर-उधर देख रहा है और क्यों ?

उत्तर- चितै चितै चारों ओर इस छंद में बालक कृष्ण बार-बार चौककर इधर उधर देख रहे हैं क्योंकि उसे पत्तों के खड़कने की आवाज सुनाई देती है।

प्रश्न 2. कमल में भौरा कैसे बन्द हो गया ?

उत्तर-भौरा कमल कोश में बैठकर पराग खा रहा था, तभी सूर्यास्त हो गया और कमल के दल सिमट गये। इस प्रकार भौरा कमल में बन्द हो गया।

प्रश्न 3. कमल कोष मे बन्द भरा मन-ही-मन क्या सोच रहा था?

उत्तर-कमल में बन्द भरा मन-ही-मन सोच रहा था-कल प्रातः सूर्योदय होने पर जब कमल पुनः खिलेगा तब मैं बहुत-सा पराग लेकर अपने घर को चला जाऊँगा।

प्रश्न 4. औरे की इच्छाओं का अन्त कैसे हुआ ?

उत्तर-कमल में बन्द और को कमल सहित एक हाथी ने चबा लिया। इस प्रकार भरे के साथ ही उसकी इच्छाओं का अन्त हो गया।

प्रश्न 5. जैन अघाने का क्या आशय है ?

उत्तर-जैन अघाने का अर्थ आँखों की तृप्त होना।

प्रश्न 6. नायिका अपनी सखी से मन की किन दुविधाओं का उल्लेख करती है ?

उत्तर- नायिका अपनी सखी से मन की दुविधाओं का उल्लेख करती हुई कहती है कि सखी मैं क्या करूँ कहा जाऊँ कृष्ण को देखे बिना मेरे नैन नहीं होते बैठते, उठते जागते सब समय चलते-फिरते सब जगह उनका रूप देखने को तरसता है। हर समय मन में उनका मुख्य और नाम रहता है। घनश्याम के बिना मेरी दूसरी कोई गति नहीं।

प्रश्न 7. भाव स्पष्ट कीजिए- सुमिरन वही ध्यान उनको ही मुख में उनको नाम। दूजी और नाहिं गति मेरी बिनु मोहन घनश्याम।

उत्तर-भाव स्पष्ट-मेरे मन में मेरे ध्यान में सिर्फ कृष्ण का ही नाम है। कृष्ण के दिना मेरी दूसरी कोई गति नहीं है।

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