बाबा अंबेडकर (जीवन-चरित) कक्षा 5 हिन्दी

बाबा अंबेडकर (जीवन-चरित) कक्षा 5 हिन्दी

संध्या हो रही है। पश्चिम दिशा में लाली फैल रही है। पक्षी चहचहाते हुए अपने घांसलों की ओर लौट रहे हैं। बड़ौदा के राजमार्ग पर पेड़ के नीचे एक युवक बैठा है। वह फूट-फूटकर रो रहा है। आँसुओं का झरना लगातार झर रहा है। कोई धीरज नहीं देता उसे, कोई राह नहीं दिखाता उसे ।

प्रश्नवाचक तथा आदेशात्मक वाक्य, सरल एवं संयुक्त वाक्य, प्रवाहपूर्वक पढ़ना । अचानक वह उठ खड़ा हो जाता है। आँसू पांछकर सोचता है, “किसने बनाई है छुआछूत की व्यवस्था? किसने बनाया है किसी को नीच, किसी को ऊँच? भगवान ने? हर्गिज नहीं। वह ऐसा नहीं करता। वह सबको समान रूप से जन्म देता है। यह बुराई मनुष्य ने पैदा की है। मैं इसे मिटाकर रहूँगा।”

मन में बार-बार अपना निश्चय दुहराता हुआ वह युवक मुंबई लौट आता है। फिर वह जो कुछ करता है, उसके कारण आज सारा देश उसे बाबा साहब के नाम से स्मरण करता है।

मध्यप्रदेश के महू नगर में रामजी नाम के एक सूबेदार मेजर थे। वे महार जाति के थे। 14 अप्रैल सन् 1891 ई. को उनके घर चौदहवीं संतान ने जन्म लिया। माता भीमाबाई 5 वर्ष तक उस बालक को पालकर स्वर्ग सिधार गई। फिर चाची मीराबाई ने उसका पालन-पोषण किया।

वे बालक को प्यार से ‘भीवा’ कहकर बुलाया करती थीं। बाद में यही बालक ‘भीमराव रामजी अंबेडकर’ कहलाया ।

जिस वर्ष भीमराव का जन्म हुआ, उसी वर्ष रामजी नौकरी से छुट्टी पाकर रत्नागिरि के दपोली स्थान पर आ गए थे। यहीं भीमराव को पहली बार एक मराठी स्कूल में भर्ती कराया गया। चार वर्ष बाद वे पिता के साथ सतारा आ गए और सरकारी स्कूल में भर्ती हुए। यहाँ उन्हें सब लड़कों से दूर रखा जाता था । अध्यापक उनकी अभ्यास-पुस्तिका और कलम तक नहीं छूते थे। वे संस्कृत पढ़ना चाहते थे, किन्तु संस्कृत के अध्यापक ने उन्हें पढ़ाना स्वीकार नहीं किया। विवश होकर वे फारसी पढ़ने लगे। विद्यालय में उन्हें दिनभर प्यासा रहना पड़ता था, क्योंकि उन्हें पानी के बर्तनों में हाथ लगाने की अनुमति नहीं थी।

सन् 1905 में रामाबाई नाम की कन्या से भीमराव की शादी हो गई। उस समय वह नौ वर्ष की थी। शादी के बाद भीमराव अपने पिता के साथ मुंबई चले गए। वहाँ वे एलफिंस्टन स्कूल भर्ती हुए। इस स्कूल में छुआछूत की कुप्रथा नहीं थी ।

दो वर्ष बाद भीमराव ने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। महार जाति के लिए यह बहुत गौरव की बात थी। घर में खूब खुशियाँ मनाई गई। भीमराव एलफिंस्टन कॉलेज में पढ़ने लगे। बड़ौदा के महाराज सयाजीराव गायकवाड़ ने प्रसन्न होकर उन्हें 25 रुपये मासिक छात्रवृत्ति देना आरंभ कर दिया। बी. ए. उत्तीर्ण होने पर महाराज ने उन्हें बड़ौदा में अपने दरबार में नौकरी दे दी । दुर्भाग्य से इसी वर्ष उनके पिता का स्वर्गवास हो गया।

महाराज के दरबार में भीमराव से कट्टर हिन्दू घृणा करते थे। चपरासी तक उनको फाइलें फेंककर देते थे। तंग आकर भीमराव ने नौकरी छोड़ दी। वे फिर महाराज से छात्रवृत्ति पाने में सफल हुए और उच्च शिक्षा के लिए कोलंबिया (अमेरिका) चले गए। अपनी जाति के वे पहले विद्यार्थी थे, जिन्हें विदेश जाने का अवसर मिला।

कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ते समय भीमराव को अनेक नए अनुभव हुए। वहाँ उन्हें सबका प्यार और समानता का व्यवहार मिला। सन् 1916 में वे कोलंबिया से लंदन पहुँचे। वहाँ एक वर्ष रहकर वे मुंबई लौट आए। महाराज गायकवाड़ ने उनको बड़ौदा बुला लिया और सेना में सचिव के पद पर नियुक्त कर दिया, किन्तु वहाँ फिर उनको घृणा का शिकार होना पड़ा। होटलों तक में उन्हें रहने का स्थान न मिला। इस व्यवहार से उनका हृदय टूट गया। उन्होंने नौकरी छोड़ दी और मुंबई जा पहुँचे।

विदेश में रहकर डॉ. अंबेडकर ने दो पुस्तकें लिखी थीं। धीरे-धीरे उनकी विद्वता की धाक जमने लगी। मुंबई के एक कॉलेज में उन्हें प्रोफेसर के पद पर नियुक्त कर लिया गया किन्तु यहाँ भी झंझट थी। धर्म के कट्टर लोग उनसे घृणा करते थे। किसी प्रकार भीमराव ने दो वर्ष निकाले । अन्त में यहाँ भी उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। अब उन्होंने छुआछूत की बुराई से लड़ने के लिए ‘मूकनायक’ नामक साप्ताहिक पत्र निकालना आरंभ किया। धन की कमी के कारण कुछ समय बाद ही उसे बंद करना पड़ा। भीमराव पढ़ने के लिए फिर लंदन चले गए। वहाँ तीन वर्ष रहकर उन्होंने अर्थशास्त्र में डाक्टर की उपाधि प्राप्त की। सन् 1923 में वे मुंबई लौट आए और उन्होंने वकालत आरंभ कर दी। एक वर्ष बाद कुछ मित्रों की सहायता से उन्होंने ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ की स्थापना की। तथाकथित अछूतों की समस्याएँ हल करना इस सभा का मुख्य उद्देश्य था। उन्होंने ‘बहिष्कृत भारत’ नामक समाचार पत्र भी निकाला। इसी वर्ष वे मुंबई विधानसभा के सदस्य बनाए

गए। 27 मई, 1935 को बाबा साहब की पत्नी रामाबाई का देहांत हो गया जिससे वे बहुत दुखी हुए।

डॉ. अंबेडकर समाज में तथाकथित अछूतों को समानता का अधिकार दिलाना चाहते थे। वे उनकी आर्थिक हालत सुधारने के लिए संकल्प ले चुके थे। इतिहास की सच्ची जानकारी देने के लिए उन्होंने ‘शूद्र कौन थे’ नामक पुस्तक लिखी, जो बहुत लोकप्रिय हुई। भारत के वाइसराय ने उनकी योग्यता से प्रभावित होकर उन्हें अपने सचिव मंडल का सदस्य बनाया।

सन् 1947 में भारत के स्वतंत्र होने पर वे संविधान सभा के सदस्य चुने गए। संविधान का प्रारूप उन्हीं की अध्यक्षता में तैयार हुआ। उन्होंने उसमें तथाकथित अछूतों को समानता का अधिकार दिलाया। राष्ट्र की एकता के लिए भी उन्होंने कई बातें संविधान में सम्मिलित कराई। संविधान निर्माण में बाबा साहब ने अभूतपूर्व परिश्रम किया ।

15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र भारत की प्रथम सरकार बनी। डॉ. अंबेडकर को इस सरकार में कानून मंत्री का पद दिया गया। वे भारत के पुराने कानूनों में कई सुधार करना चाहते थे किन्तु प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू से उनका मतभेद हो गया। इसलिए सन् 1951 में उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।

सरकार से अलग होकर वे पूरी शक्ति से समाजसेवा में जुट गए। लोग उन्हें देवता की तरह पूजने लगे। वे जहाँ जाते थे, ‘जय भीम’ के नारों से आकाश गूँज उठता था। वे कट्टर हिन्दुओं के आगे झुकना नहीं जानते थे। उन्होंने सन् 1955 में भारतीय बौद्ध महासभा की स्थापना भी कर डाली और बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। इस घटना से हिन्दू समाज में बड़ी खलबली मच गई।

दुर्भाग्य से 6 दिसम्बर, सन् 1956 को अचानक लाखों पीड़ितों को छोड़कर डॉ. अंबेडकर स्वर्गवासी बन गए।

हिन्दू समाज डॉ. अम्बेडकर को ‘बाबा साहब’ कहकर सम्मान देता है। वे देश के पिछड़े और दलित समाज के प्राण थे। बचपन से ही उनमें कठिन परिश्रम करने की आदत थी। नित्य 18 घंटे पढ़ना उनके लिए सहज बात थी। सिनेमा और गपशप से वे दूर रहते थे। कठिनाइयाँ उनका मार्ग नहीं रोक पाती थीं। वे जो सोचते, वही करते थे। उनका भाषण बहुत प्रभावशाली होता था । तर्क करने की उनमें अनोखी शक्ति थी। वे किसी भी धर्म के विरोधी नहीं थे। उनकी लड़ाई तो उन बुराइयों से थी, जिन्हें मनुष्यों ने धर्म में उत्पन्न कर दिया है।

डॉ. अंबेडकर इसलिए महान हैं क्योंकि उन्होंने छुआछूत के पाप को नष्ट करने का प्रयत्न किया। उनके प्रयत्नों से सभी को कानून में समानता का अधिकार मिला। आज सभी बालक बालिकाएं साथ-साथ बैठकर पढ़ते हैं, खाते-पीते और खेलते-कूदते हैं। गाड़ियों, होटलों , तीर्थों, मंदिरों आदि सभी जगह वे समान रूप से आते-जाते हैं। हजारों वर्षों के भारतीय इतिहास की यह बहुत बड़ी घटना है। डॉ. अंबेडकर ने देश को छुआछूत के पाप से छुटकारा दिलाया। आनेवाली पीढ़ियाँ बाबा साहब अंबेडकर के महान कार्यों को स्मरण कर गौरव का अनुभव करती रहेंगी।

प्रश्न और अभ्यास

प्रश्न 1. बाबा अम्बेडकर को किस नाम से जाना जाता है?

उत्तर- बाबा अम्बेडकर को डॉ. भीमराव अम्बेडकर के नाम जाना जाता है।

प्रश्न 2. बड़ौदा के महाराज ने डॉ. अंबेडकर को क्या सहायता दी ?

उत्तर- बड़ौदा के महाराज ने प्रसन्न होकर 25 रुपये मासिक छात्रवृत्ति दी और उन्हें पढ़ाई के लिए विदेश भेजा। उसके बाद अपने यहाँ नौकरी दी।

प्रश्न 3. डॉ. अंबेडकर को बड़ौदा के महाराज की नौकरी क्यों छोड़नी पड़ी ?

उत्तर – डॉ. अंबेडकर को बड़ौदा के महाराज के दरबार के कट्टर हिन्दू उनसे घृणा करते थे। चपरासी तक उनको फाइलें फेंककर देते थे। तंग आकर भीमराव ने वहाँ की नौकरी छोड़ दी।

प्रश्न 4. नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने क्या संकल्प लिया ?

उत्तर- नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने संकल्प लिया कि वे अछूतों को समानता का अधिकार दिलायेंगे तथा उनकी आर्थिक हालत को सुधारेंगे।

प्रश्न भारतीय संविधान से तथाकथित अछूतों को क्या लाभ हुआ?

उत्तर- भारतीय संविधान से तथाकथित अछूतों को समानता का अधिकार मिला। आज आहूत बालक भी सवर्ण बालको साथ बैठते खेलते, खाते पड़ते हैं। उनके लिए आज मंदिर और होटलों के दरवाजे बंद नहीं है।

प्रश्न डॉ. अंबेडकर महान क्यों माने जाते हैं ?

उत्तर -डॉ. अंबेडकर ने अछूतों को समानता का अधिकार दिलाया भारती संविधान की नई रूपरेखा तैयार की। छुआ- छूत के पाप को नष्ट किया। अछूतों की आर्थिक हालत को सुधारा इसलिए वे महान माने जाते हैं।

प्रश्न देश को डॉ. अंबेडकर की सबसे बड़ी देन क्या है ?

उत्तर – देश को डॉ. अंबेडकर की सबसे बड़ी देन यह है कि उनके प्रयत्नों से अछूतों को कानून में समानता का अधिकार मिला।

प्रश्न 8. अपने गाँव या शहर में प्रचलित किसी कुरीति पर दो वाक्य लिखिए।

उत्तर- हमारे आस-पास छुआ-छूत एवं जातिवाद जैसी कुरीतियाँ व्याप्त है।

प्रश्न 9. अपने गाँव या शहर में प्रचलित कुरीति को दूर करने के लिए क्या उपाय करना चाहिए।

उत्तर- प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित कर सर्वधर्म समभाव की भावना जागृत करनी चाहिए।