पूर्ण संख्याओं पर संक्रियाएँ एवं गुणधर्म
पूर्ण संख्याओं पर संक्रियाएँ
पूर्ण संख्याओं का योग
पूर्ण संख्याओं का घटाना
पूर्ण संख्याओं का गुणा
पूर्ण संख्याओं का भाग
पूर्ण संख्याओं पर संक्रियाएँ सम्बन्धी गुणधर्म
योग के लिए संवरक नियम
दो पूर्ण संख्याओं का योगफल हमेशा एक पूर्ण संख्या होती है, यह पूर्ण संख्याओं का योग के लिए संवरक नियम है।
यदि पूर्ण संख्याओं का गुणनफल हमेशा पूर्ण संख्या हो तो पूर्ण संख्याएँ गुणा के लिए संवरक नियम का पालन करती हैं। इसी प्रकार यदि दो पूर्ण संख्याओं का भागफल सदैव पूर्ण संख्या हो तो वह भाग के लिए तथा यदि दो पूर्ण संख्याओं का अंतर सदैव पूर्ण संख्या हो तो वह घटाने के लिए संवरक नियम का पालन करेगी।
पूर्ण संख्याओं के लिए साहचर्य नियम
पूर्ण संख्याओं के लिए साहचर्य नियम योग एवं गुणन संक्रिया में लागू होता है जबकि घटाने एवं भाग संक्रिया में लागू नहीं होता।
तीन मित्र अ, ब, और स हैं। पहले अ तथा ब मिलते हैं और फिर मिलकर वे स से मिलते है अथवा ब तथा स पहले मिलकर फिर
अ से मिलें, इन दो प्रकार से मिलने में क्या अन्तर है? क्या दोनों स्थितियां समान हैं ?
दोनों ही स्थितियों में अन्त में अ, ब और स एक साथ मिल रहे हैं। जब दोनों परिस्थितियों में एक ही बात हो तो गणित में इस नियम को साहचर्य नियम कहते हैं।
पूर्ण संख्याओं के लिए क्रमविनिमय का नियम
दो पूर्ण संख्याओं का आपस में योग करने से या गुणा करने से पूर्ण संख्या ही प्राप्त होती पूर्ण संख्याओं के लिए क्रमविनिमय का नियम, योग एवं गुणन संक्रिया में लागू होता है। जबकि घटाने एवं भाग संक्रिया में लागू नहीं होता।
अन्य बिंदु :
- 0 (शून्य) एक पूर्ण संख्या है।
- 0 को योज्य तत्समक अवयव कहते है।
- 1 को गुणन तत्समक अवयव कहते हैं।
- किसी भी पूर्ण संख्या में शून्य को जोड़ने या घटाने पर संख्या का मान नहीं बदलता।
- किसी भी पूर्ण संख्या में 1 का गुणा करें तो संख्या का मान नहीं बदलता है।
- यदि किसी पूर्ण संख्या में 0 का गुणा करें तो उसका मान शून्य हो जाता है।
- किसी पूर्ण संख्या में 0 से भाग देना अपरिभाषित है।
- भाज्य = भाजक x भागफल + शेषफल