पूर्ण संख्या : पूर्ण संख्याओं पर संक्रियाएँ (Whole Number)
प्राकृतिक संख्याओं (1, 2, 3, 4, ……) में शून्य (0) को सम्मिलित करने पर जो संख्याएँ प्राप्त होती हैं, पूर्ण संख्याएँ कहलाती हैं। पूर्ण संख्याओं को W से प्रदर्शित करते हैं। या फिर इसे इस तरह से भी परिभाषित किया जा सकता हैं “शून्य ‘0’ से लेकर अनंत तक की संख्याओं को पूर्ण संख्याएँ कहते हैं।” उदाहरण: 0, 1, 2, 3, 4, ……। ∞ आदि
स्मरणीय बिंदु:
शून्य (0) सबसे छोटी एवं पहली पूर्ण संख्या है।
सभी प्राकृतिक संख्याएँ पूर्ण-संख्याएँ हैं।
चूंकि प्रत्येक पूर्ण संख्या से बड़ी पूर्ण संख्याएँ होती हैं अतः कोई भी पूर्ण संख्या सबसे बड़ी पूर्ण संख्या नहीं होती है।
पूर्ण संख्याओं के गुण
प्राकृत संख्या के सभी गुण पूर्ण संख्याओं के लिए भी सही हैं।
सबसे छोटी पूर्ण संख्या 0 है।
संख्या रेखा पर 0 से दाहिने ओर क्रमशः पूर्ण संख्या बढ़ते क्रम में दिखायी गयी है। अर्थात् 0+1 = 1,1+1 =2, … , 101 + 1 = 102, 102 + 1 = 103, 103 + 1 = 104, … , इत्यादि।
संख्या रेखा पर दाहिने ओर से बाँए ओर का क्रम घटते क्रम में है, जैसे ….. 4,3,2,1,0
सबसे बड़ी पूर्ण संख्या नहीं दिखाई जा सकती। क्योंकि यदि आप कोई बड़ी से बड़ी संख्या सोचते हैं तो उसमें एक जोड़ कर उसकी अगली बड़ी संख्या प्राप्त की जा सकती है। जो उस संख्या की परवर्ती संख्या होगी।
योग का संवरक गुण:
जब किसी दो पूर्ण संख्याओं का आपस में जोड़ा जाता हैं तो प्राप्त योगफल सदैव पूर्ण संख्या होता है, यह पूर्ण संख्याओं के योग का संवरक प्रगुण है।
उदाहरणार्थ:-11 + 9 = 20 इन दोनों संख्याओं का योग 20 एक पूर्ण संख्या है।
योग का क्रम-विनिमेय गुण:
जब किसी दो पूर्ण संख्याओं को जोड़ा जाता हैं तो उनके योगफल पर संख्याओं के क्रम का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, इसे ही योग का क्रम-विनिमेय प्रगुण है।
उदाहरणार्थ: 14 + 33 = 47 33 + 14 = 4
योग का तत्समक अवयव:
किसी पूर्ण संख्या में यदि शून्य को जोड़ा जाता है तो योगफल वही संख्या प्राप्त होती है। इसी कारण शून्य को पूर्ण संख्याओं में योग का तत्समक अवयव कहते हैं।
शून्य को पूर्ण संख्याओं के लिए योज्य तत्समक भी कहते हैं। उदाहरणार्थ: 3 + 0 = 0 + 3 = 3
योग का साहचर्य गुण:
तीन पूर्ण संख्याओं को क्रम में जोड़ते समय किन्हीं दो पूर्ण संख्याओं का समूह पहले बना लेने से योगफल में अंतर नहीं पड़ता है, यह योग संक्रिया का साहचर्य प्रगुण है।
गणना करते समय 10 संकेतों 1,2,3,4,5,6,7,8,9,0 का उपयोग किया जाता है तथा गणना का कार्य 1 से प्रारंभ होता है। इन्हीं अंकों को मिलाकर प्राकृत संख्याएँ लिखी जाती हैं। गणना के लिए जिन संख्याओं का उपयोग किया जाता है उन्हें प्राकृत संख्या(Natural Number) कहते हैं। प्राकृत संख्याओं के समूह को N से दर्शाते हैं। अर्थात् प्राकृत संख्या (N) = 1,2,3, …. आदि।
सबसे छोटी प्राकृत संख्या 1 है।
प्राकृतिक संख्याओं का फार्मूला
प्रथम n प्राकृतिक संख्याओं का औसत = (n+1) /2
लगातार n तक विषम प्राकृतिक संख्या का योग = (n/2+1)
प्रथम n प्राकृतिक सम संख्याओं का औसत = n+1
प्रथम n प्राकृतिक विषम संख्याओं का औसत = n
लगातार n तक विषम प्राकृतिक संख्याओं का औसत = (n+1) /2
सबसे बड़ी प्राकृत संख्या कौन-सी है?
प्राकृत संख्या 1 से अनंत तक होती है जिसमे सबसे छोटी संख्या ज्ञात करना संभव है किंतु बड़ी संख्या मुस्किल है. यदि कोई संख्या दिया हो, तो बड़ी संख्या ज्ञात किया जा सकता है. अतः सबसे बड़ी प्राकृत संख्या स्व अनंत होता है.
सबसे छोटी प्राकृतिक संख्या कौन सी है?
प्राकृत संख्या 0 से बड़ी और 1 से शुरू होती है. अर्थात, सबसे छोटी प्राकृत संख्या 1 होता है.
0 सबसे छोटी प्राकृत संख्या है?
वास्तव में, 0 से छोटी कोई संख्या नही होती है. क्योंकि, प्राकृत संख्या तो 1 से शुरू ही होती है.
क्या सभी प्राकृत संख्या पूर्ण संख्या है?
0 से अनंत तक की सभी प्राकृत संख्या पूर्ण संख्या होती है. अर्थात, सभी धनात्मक प्राकृत संख्याएँ पूर्ण संख्या होती है.
क्या कोई ऐसी पूर्ण संख्या है जो प्राकृतिक संख्या नहीं है?
हाँ, 0 एक ऐसी पूर्ण संख्या है जो प्राकृतिक संख्या नही है. क्योंकि, प्राकृत संख्या 1 से शुरू होती है.
प्राकृत संख्याओं के गुण (Properties of Natural numbers)
दो प्राकृत संख्याओं का आपस में योग करने से या गुणा करने पर प्राकृत संख्या ही प्राप्त होती है।
दो प्राकृत संख्याओं का आपस में व्यवकलन (घटाना) या भाग करने से सदैव प्राकृत संख्या प्राप्त नही होती है।
दो प्राकृत संख्याओं को किसी भी क्रम में जोड़ सकते हैं। दो प्राकृत संख्याओं को किसी भी क्रम में गुणा कर सकते हैं। अर्थात प्राकृत संख्याओं के लिए क्रमविनिमय का नियम योग व गुणन संक्रिया में लागू होता है जबकि घटाने एवं भाग संक्रिया पर लागू नही होता।
प्राकृत संख्याओं के लिए साहचार्य नियम योग एवं गुणा संक्रिया में लागू होता है जबकि घटाने एवं भाग संक्रिया में लागू नहीं होता।
प्राकृत संख्याओं के लिए गुणा का योग व अन्तर पर बंटन (वितरण) होता है।
किसी प्राकृत संख्या मे एक से गुणा या भाग करने पर संख्या का मान नही बदलता।
इस प्रकार a,b,c तीन प्राकृत संख्याओं के लिए
(a+b) एक प्राकृत संख्या है।
(axb) एक प्राकृत संख्या है।
a-b सदैव एक प्राकृत संख्या हो आवश्यक नही है।
a+b सदैव एक प्राकृत संख्या हो, जरूरी नही है।
Questions
41600 तथा 41006 में कौन सी संख्या बड़ी है?
1 से 100 के बीच की संख्याएँ लिखने के लिए कितने बार 9 का प्रयोग करना पड़ता है?
चार अंकों की सबसे बड़ी प्राकृत संख्या तथा तीन अंकों की सबसे छोटी प्राकृत संख्या के बीच का अंतर निकालिए ?
ये सभी संख्याएँ ऋणात्मक पूर्णांक के अंतर्गत आती हैं।
3. उदासीन पूर्णांक
ऐसा पूर्णांक जो न तो कोई धनात्मक पूर्णांक है और न ही ऋणात्मक पूर्णांक है। उदासीन पूर्णांक कहलाता हैं यह शून्य पूर्णांकों के अंतर्गत आता हैं।
उदाहरण :- 0
पूर्णांक संख्या के महत्वपूर्ण तथ्य
संख्या 0, 1, -1, 2, -2, 3, -3, ……….…….∞ पूर्णांक संख्या कहलाती हैं।
संख्या +1, +2, +3, +4, ……………∞ धनात्मक पूर्णांक कहलाती हैं।
संख्या -1, -2, – 3, – 4, ……………….∞ पूर्णांक कहलाती हैं।
संख्या 0, + 1, + 2, + 3, + 4, ऋणेत्तर पूर्णांक कहलाते हैं।
सभी धनात्मक पूर्णांक संख्या रेखा पर 0 के दायीं ओर तथा सभी ऋणात्मक पूर्णांक संख्या रेखा पर 0 के बायीं ओर स्थित होते हैं।
ऋणेत्तर पूर्णांक पूर्ण संख्या ही कहलाती हैं।
दो पूर्णांक जिनका योग शून्य हो एक-दूसरे के योज्य प्रतिलोम कहलाते हैं। ये एक दूसरे के ऋणात्मक भी कहलाते हैं।
पूर्णांकों का जोड़ना, घटाना, गुणा एवं भाग
दो पूर्णांकों के योग का नियम
(-) + (-) = (+)
(+) + (+) = (+)
(-) + (+) = (-)
(+) + (-) = (-)
समान चिन्ह वाले पूर्णांक का जोड़ :-
विभिन्न चिन्ह वाले पूर्णांकों का जोड़ :-
दो पूर्णांकों को घटाने के नियम
(-) – (-) = (-)
(+) – (+) = (-)
(-) – (+) = (+)
(+) – (-) = (+)
समान चिन्ह वाले पूर्णांकों को घटाना :-
विभिन्न चिन्ह वाले पूर्णांकों को घटाना :-
दो पूर्णांकों के गुणनफल का नियम
(-) × (-) = (+)
(+) × (+) = (+)
(-) × (+) = (-)
(+) × (-) = (-)
दो पूर्णांकों के विभाजन के नियम
(-) ÷ (-) = (+)
(+) ÷ (+) = (+)
(-) ÷ (+) = (-)
(+) ÷ (-) = (-)
शून्य के दाँईं ओर प्राकृत संख्याएँ हैं और बाँयी ओर ऋणात्मक संख्याएँ। धनात्मक संख्याएँ, ऋणात्मक संख्याएँ तथा शून्य को मिलाकर पूर्णांक बनते हैं। (I) = { … …………..- 3,-2,1,0,1,2,3,4,5 ………… } आदि।
जिस प्रकार सबसे बड़ी पूर्ण संख्या नहीं है उसी प्रकार सबसे बड़ी पूर्णांक भी नहीं है। क्या आप सबसे छोटी पूर्णांक सोच सकते हैं ?
धनात्मक पूर्णांकों का योगफल सदैव धनात्मक पूर्णांक तथा दो ऋणात्मक पूर्णांकों का योगफल सदैव ऋणात्मक पूर्णांक होता है।
एक धनात्मक एवं एक ऋणात्मक पूर्णांक का योगफल धनात्मक पूर्णांक होगा यदि धनात्मक पूर्णांक का आंकिक मान अधिक हो तथा योगफल ऋणात्मक होगा यदि ऋणात्मक पूर्णांक का आंकिक मान अधिक हो।
पूर्णांकों को जोड़ने में उन सभी गुणों का पालन होता है। जिनका पूर्ण संख्याएँ पालन करती है। दो पूर्णांकों का योग एक पूर्णांक ही होगा।
सभी पूर्णांकों के योग में क्रम विनिमय नियम लागू होता है।
दो पूर्णांकों का योग हमेशा एक पूर्णांक संख्या होती है, यही पूर्णांकों के योग के लिए संवरक नियम है।
पूर्णांकों में शून्य जोड़ने पर उनके मान में कोई परिवर्तन नहीं आता है।
योज्य प्रतिलोम / योज्य तत्समक
5 में क्या जोड़े कि शून्य प्राप्त हो? अर्थात् 5+ (-5) = 0 (योज्य तत्समक) इसी प्रकार (-7) में क्या जोड़े कि शून्य प्राप्त हो? अर्थात् (-7) + (+7) =0 (योज्य तत्समक) यहाँ (-5) योज्य प्रतिलोम है 5 का तथा + 7 योज्य प्रतिलोम है (-7) का। अतः किसी संख्या का योज्य प्रतिलोम वह संख्या है जिसे उस संख्या के साथ जोड़ने पर योज्य तत्समक (शून्य) प्राप्त होता है। संख्या + संख्या का योज्य प्रतिलोम = योज्य तत्समक
पूर्णांक संख्या से संबंधित प्रश्न उत्तर
Q.1 पूर्णांकों के युग्मों के योग ज्ञात कीजिए?
(1). -6, – 2 (a). 10 (b). -10 (c). 4 (d). -4
हल:- -6 और – 4 दोनों के चिन्ह ऋण हैं। अतः -6 + (-4) = -(6 + 4) Ans. -10
(2). +8, – 2 (a). 10 (b). -10 (c). 6 (d). -6
हल:- +8 और -2 के चिन्ह विपरीत हैं। अतः +8 + (-2) = 8 – 2 Ans. 6
सम संख्या: वे संख्याएँ जो 2 से पूर्णतः विभाजित होती हैं सम संख्या कहलाती है। जैसे: 2, 4, 6, 8, 10, 12 विषम संख्या: वे संख्याएँ जो 2 से पूर्णतः विभाजित नहीं होती हैं विषम संख्या कहलाती है। जैसे: 1, 3, 5, 7, 9, 11 … इत्यादि।
सम और विषम संख्या का योगफल
सम संख्या (Even Number) और विषम संख्या (Odd Number) के योगफल से संबंधित नियम सरल हैं। इसे समझने के लिए निम्नलिखित फार्मूले उपयोग किए जा सकते हैं:
1. सम + सम = सम
दो सम संख्याओं का योगफल हमेशा एक सम संख्या होती है।
उदाहरण: 4+6=10 (सम संख्या)
2. विषम + विषम = सम
दो विषम संख्याओं का योगफल हमेशा एक सम संख्या होती है।
उदाहरण: 3+5=8 (सम संख्या)
3. सम + विषम = विषम
एक सम और एक विषम संख्या का योगफल हमेशा एक विषम संख्या होती है।
उदाहरण: 4+5=9 (विषम संख्या)
लगातार सम और विषम संख्याओं के योग
लगातार सम संख्याओं और लगातार विषम संख्याओं के योग के लिए निम्नलिखित सूत्र उपयोग किए जाते हैं:
1. लगातार दो सम संख्याओं का योगफल:
लगातार दो सम संख्याओं के बीच अंतर 2 होता है।
यदि पहली सम संख्या x है, तो दूसरी सम संख्या x+2 होगी।
योगफल = x+(x+2)=2x+2
उदाहरण: 6 और 8 के लिए: 6+8=2(6)+2=12+2=14
2. लगातार दो विषम संख्याओं का योगफल:
लगातार दो विषम संख्याओं के बीच भी अंतर 2 होता है।
यदि पहली विषम संख्या y है, तो दूसरी विषम संख्या y+2 होगी।
योगफल = y+(y+2)=2y+2
उदाहरण: 7 और 9के लिए: 7+9=2(7)+2=14+2=16
3. लगातारn सम संख्याओं का योगफल:
यदि लगातार n सम संख्याओं का योग निकालना है, तो इसका फार्मूला होगा:
योगफल = n(n+1)
उदाहरण: पहली 3 सम संख्याओं (2, 4, 6) का योग: 3(3+1)=3×4=12
4. लगातारn विषम संख्याओं का योगफल:
यदि लगातार n विषम संख्याओं का योग निकालना है, तो इसका फार्मूला होगा:
योगफल = n2
उदाहरण: पहली 3 विषम संख्याओं (1, 3, 5) का योग: 32=9
सारांश:
लगातार दो सम या विषम संख्याओं का योग 2x+2 के रूप में होता है।
लगातार n सम संख्याओं का योग n(n+1) होता है।
लगातार n विषम संख्याओं का योग n2 होता है।
5. लगातार n प्राकृत संख्याओं का योगफल:
लगातार प्राकृत संख्याओं (Natural Numbers) का योग निकालने के लिए एक सामान्य सूत्र होता है, जिसे समीकरण के रूप में लिखा जा सकता है:
योगफल = n(n+1)/2
जहाँ n वह संख्या है, जहाँ तक योग निकालना है।
उदाहरण:
1. यदि आपको 1 से 10 तक की प्राकृत संख्याओं का योग निकालना है, तो n = 10 होगा:
योगफल = 10(10+1)/2
10 x 11/2 = 110/2 = 55
2. यदि आपको 1 से 20 तक की प्राकृत संख्याओं का योग निकालना है, तो n = 20 होगा:
योगफल = 20(20+1)/2 = 20 x 21/2 = 420/2 = 210
सारांश:
पहली n प्राकृत संख्याओं का योग निकालने के लिए फार्मूला है:
योगफल = n(n+1)/2
इस फार्मूले का उपयोग किसी भी संख्या तक की प्राकृत संख्याओं का योग निकालने के लिए किया जा सकता है।
यहाँ सम और विषम संख्याओं, उनके अंतर, लगातार योगफल, और प्राकृत संख्याओं के लगातार योगफल से संबंधित MCQs दिए गए हैं:
MCQ:
1. सम और विषम संख्या का अंतर:
यदि 12 और 7 का अंतर निकाला जाए, तो परिणाम क्या होगा?
a) 5 (सम संख्या)
b) 6 (सम संख्या)
c) 5 (विषम संख्या)
d) 4 (सम संख्या)
उत्तर: c) 5 (विषम संख्या)
किसी विषम संख्या से सम संख्या घटाने पर परिणाम कैसा होगा?
a) हमेशा विषम संख्या
b) हमेशा सम संख्या
c) कभी विषम कभी सम
d) हमेशा शून्य
उत्तर: a) हमेशा विषम संख्या
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
a) दो सम संख्याओं का अंतर विषम होता है।
b) दो विषम संख्याओं का अंतर विषम होता है।
c) विषम संख्या और सम संख्या का अंतर विषम होता है।
d) सम संख्या और विषम संख्या का अंतर सम होता है।
उत्तर: c) विषम संख्या और सम संख्या का अंतर विषम होता है।
2. लगातार सम और विषम संख्याओं का योगफल:
लगातार दो सम संख्याओं का योग निकालने का फार्मूला क्या है?
a) 2x
b) 2x+1
c) 2x+2
d) x+2
उत्तर: c) 2x+2
यदि x=8 हो, तो लगातार दो सम संख्याओं का योगफल क्या होगा?
a) 16
b) 18
c) 20
d) 22
उत्तर: b) 18
लगातार दो विषम संख्याओं का योगफल क्या होगा?
a) 2x+2
b) 2x+1
c) 2x
d) x+1
उत्तर: a) 2x+2
लगातार विषम संख्याओं 11 और 13 का योग क्या होगा?
a) 22
b) 24
c) 26
d) 28
उत्तर: b) 24
3. लगातार प्राकृत संख्याओं का योगफल:
पहली n प्राकृत संख्याओं का योगफल निकालने का फार्मूला क्या है?
a) n(n+1)/2
b) n(n+2)/2
c) n(n+1)
d) n(n+2)
उत्तर: a) n(n+1)/2
पहली 10 प्राकृत संख्याओं का योगफल क्या होगा?
a) 50
b) 55
c) 60
d) 65
उत्तर: b) 55
लगातार n विषम संख्याओं का योगफल क्या होता है?
a) n(n+1)
b) n2
c) 2n
d) 2n+1
उत्तर: b) n2
पहली 5 विषम संख्याओं का योगफल क्या होगा?
a) 25
b) 15
c) 9
d) 36
उत्तर: a) 25
4. प्राकृत संख्याओं का लगातार योगफल:
यदि पहली 7 प्राकृत संख्याओं का योग निकाला जाए, तो परिणाम क्या होगा?
a) 21
b) 28
c) 15
d) 35
उत्तर: b) 28
1 से 100 तक की प्राकृत संख्याओं का योगफल क्या होगा?
गणित में, दो या दो से अधिक संख्याओं या पदों को जोड़ने के बाद योग को परिणाम या उत्तर के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यहां, 5 और 7 जोड़ हैं और 12, 5 और 7 का योग है।
योग संकेतन
जब हम संख्याओं को जोड़ते हैं तो प्लस चिह्न (+) का उपयोग किया जाता है। योग जोड़ से प्राप्त परिणाम का नाम है। हम योग को प्रतीक ∑ (सिग्मा) द्वारा निरूपित कर सकते हैं।
अंकों का योग
एक अंक वाली संख्याओं का योग
दो अंकीय संख्याओं का योग
चरण 1: आसानी से समझने के लिए अंकों के बीच पर्याप्त स्थान देकर कॉलम में दिए गए नंबर लिखें।
चरण 2: इकाई अंक को एक साथ जोड़ें, और कैरी (यदि कोई हो) को स्थानांतरित करें। अंततः, यह इकाई स्थान पर मौजूद संख्याओं का योग देता है।
चरण 3: दहाई अंक जोड़ें और पिछले चरण से कैरी करें (यदि कोई हो) और कैरी को स्थानांतरित करें। यह दहाई के स्थान पर संख्याओं का योग देता है।
चरण 4: इस प्रकार, अंतिम पंक्ति के अंक दी गई संख्याओं का योग दर्शाते हैं।
तीन अंकों की संख्याओं का योग
चरण 1: आसानी से समझने के लिए अंकों के बीच पर्याप्त स्थान देकर कॉलम में दिए गए नंबर लिखें।
चरण 2: इकाई अंक को एक साथ जोड़ें, और कैरी (यदि कोई हो) को स्थानांतरित करें। अंततः, यह इकाई स्थान पर मौजूद संख्याओं का योग देता है।
चरण 3: दहाई अंक जोड़ें और पिछले चरण से कैरी करें (यदि कोई हो) और कैरी को स्थानांतरित करें। यह दहाई के स्थान पर संख्याओं का योग देता है।
चरण 4: सैकड़ों स्थानों के अंकों को जोड़ें, और पिछले चरण से संख्या (यदि कोई हो) ले लें। इस प्रकार, यह परिणाम के सैकड़ों या हजारों या दोनों (योग के आधार पर) प्रदान करता है।
चरण 5: इस प्रकार, अंतिम पंक्ति के अंक दी गई संख्याओं का योग दर्शाते हैं।
संख्या के योगफल संबंधित सूत्र-
प्रथम n प्राकृतिक संख्याओं का योग
योग संख्याओं के अनुक्रम के योग या योग का परिणाम है। इस प्रकार, हम प्रथम n प्राकृतिक संख्याओं के अनुक्रम का योग ज्ञात कर सकते हैं।
पहली n प्राकृतिक संख्याएँ हैं:
1, 2, 3, 4,…., n
यह एक AP है जिसका पहला पद a = 1 और अंतिम पद l = n है।
हम जानते हैं कि, AP के n पदों का योग, जब पहला और अंतिम पद ज्ञात हो, इस प्रकार दिया जाता है:
पहले n प्राकृतिक संख्याओं का योग n(n + 1)/2 द्वारा दिया जाता है।
विषम संख्याओं का योग सूत्र
विषम संख्याओं का क्रम है:
1, 3, 5, 7, 9, 11,…..
यह एक AP है जिसका पहला पद a = 1 और दूसरा पद a + d = 3 है।
सार्व अंतर = d = 3 – 1 = 2
प्रथम n विषम संख्याओं का योग है:
विषम संख्या सूत्र का योग n 2 है ।
सम संख्याओं का योग सूत्र
सम संख्याओं का क्रम है:
2, 4, 6, 8, 10,…..
यह एक AP है जिसका पहला पद a = 2 और दूसरा पद a + d = 4 है।
सार्व अंतर = d = 4 – 2 = 2
प्रथम n विषम संख्याओं का योग है:
सम संख्याओं के योग का सूत्र n(n + 1) है।
n प्राकृतिक संख्याओं के वर्गों का योग
n प्राकृतिक संख्याओं के वर्गों के योग का सूत्र इस प्रकार दिया गया है:
Σn 2 = [n(n+1)(2n+1)]/6
इस सूत्र का उपयोग पहले n धनात्मक पूर्णांकों के वर्गों का योग ज्ञात करने के लिए किया जाता है।
n प्राकृतिक संख्याओं के घनों का योग
n प्राकृतिक संख्याओं के घनों के योग का सूत्र है:
∑n 3 = [n(n + 1)/2] 2
योग पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 1: बैग A में 10 गेंदें हैं और बैग B में 17 गेंदें हैं। गेंदों की कुल संख्या ज्ञात कीजिए।
समाधान:
बैग A में गेंदों की संख्या = 10
बैग B में गेंदों की संख्या = 17
गेंदों की कुल संख्या = 10 + 17 = 27
प्रश्न 2: गौतम के पास 2 रुपये के पांच सिक्के हैं, और कमल के पास 10 एक रुपये के सिक्के हैं, जबकि वीना के पास 5 रुपये के सात सिक्के हैं। तो गौतम, कमल और वीना के पास कुल कितनी धनराशि है?
समाधान:
दी गई जानकारी के मुताबिक,
व्यक्ति
मात्रा
गौतम
5 × रु. 2 = रु. 10
कमल
10 × रु. 1 = रु. 10
वीना
7 × रु. 5 = रु. 35
धनराशि का योग = रु. 10 + रु. 10 + रु. 35 = रु. 55
प्रश्न 3: 1 से 100 तक की संख्याओं का योग कितना होता है?
1 से 100 तक की संख्याओं के योग की गणना इस प्रकार की जा सकती है: n = 100 100 प्राकृतिक संख्याओं का योग = [100(100 + 1)/2] = 50 × 101 = 5050
भाज्य अभाज्य और सहभाज्य संख्या / Divisible, Prime and Composite numbers
भाज्य संख्या (Composite Number)
परिभाषा: वह संख्या जो 1 और स्वयं के अलावा अन्य संख्याओं से भी विभाजित हो सकती है, उसे भाज्य संख्या कहा जाता है। अर्थात, जिसके एक से अधिक गुणनखण्ड (factors) होते हैं।
उदाहरण:
4 (गुणनखण्ड: 1, 2, 4)
6 (गुणनखण्ड: 1, 2, 3, 6)
9 (गुणनखण्ड: 1, 3, 9)
इन सभी संख्याओं के 1 और स्वयं के अलावा अन्य गुणनखण्ड हैं, इसलिए ये भाज्य संख्याएँ हैं।
अभाज्य संख्या (Prime Number)
परिभाषा: वह संख्या जो केवल 1 और स्वयं से विभाजित हो सके, उसे अभाज्य संख्या कहते हैं। अर्थात, जिसके केवल दो ही गुणनखण्ड होते हैं – 1 और वह स्वयं।
उदाहरण:
2 (गुणनखण्ड: 1, 2)
3 (गुणनखण्ड: 1, 3)
5 (गुणनखण्ड: 1, 5)
7 (गुणनखण्ड: 1, 7)
ये संख्याएँ केवल 1 और स्वयं से विभाजित होती हैं, इसलिए ये अभाज्य संख्याएँ हैं।
मुख्य अंतर:
अभाज्य संख्याएँ: जिनके केवल दो ही गुणनखण्ड होते हैं (1 और स्वयं), जैसे 2, 3, 5, 7, 11 आदि।
भाज्य संख्याएँ: जिनके एक से अधिक गुणनखण्ड होते हैं, जैसे 4, 6, 8, 9, 12 आदि।
एक महत्वपूर्ण बिंदु:
1 न तो अभाज्य है और न ही भाज्य, इसे विशेष संख्या माना जाता है।
भाज्य संख्या
1 to 100 के बीच कूल 74 संख्याएँ ऐसी है जो की भाज्य संख्याएँ है। भाज्य संख्या 1 से 100 तक की पूरी लिस्ट निचे दी गई है-
4
6
8
9
10
12
14
15
16
18
20
21
22
24
25
26
27
28
30
32
33
34
35
36
38
39
40
42
44
45
46
48
49
50
51
52
54
55
56
57
58
60
62
63
64
65
66
68
69
70
72
74
75
76
77
78
80
81
82
84
85
86
87
88
90
91
92
93
94
95
96
98
99
100
अभाज्य संख्या ( रूढ़ संख्या )
वे 1 से बड़ी प्राकृतिक संख्याएँ, जो स्वयं और 1 के अतिरिक्त और किसी प्राकृतिक संख्या से विभाजित नहीं होतीं, उन्हें ‘अभाज्य संख्या’ कहते हैं।
अभाज्य संख्या के गुण
0 और 1 अभाज्य संख्याएँ नही है।
2 को छोड़कर सभी अभाज्य संख्याएँ विषम होती हैं।
1 बड़ी पूर्ण संख्याएँ अभाज्य संख्याएँ कहलाती है।
अभाज्य संख्याएँ में केवल और केवल दो गुणनखंड होते है।
अभाज्य संख्याएँ ज्ञात करने की विधि को गुणनखंड विधि कहते है।
अभाज्य संख्याएँ हमेशा 0 और 1 से बड़ी होती है।
1 से बड़ी सभी अभाज्य संख्या 1 से विभाजित हो सकती है।
अभाज्य संख्या 1 और स्वयं के अतिरिक्त किसी अन्य संख्या से विभाजित नही हो सकती है।
1 से 200 तक अभाज्य संख्या
2
31
73
127
179
3
37
79
131
181
5
41
83
137
191
7
43
89
139
193
11
47
97
149
197
13
53
101
151
199
17
59
103
157
211
19
61
107
163
223
23
67
109
167
227
29
71
113
173
229
अभाज्य संख्याओं के प्रश्न एवं हल
सबसे छोटी अभाज्य संख्या कौनसी हैं?
A. 1 B. 0 C. 2 D. 4
उत्तर:- सबसे छोटी अभाज्य संख्या 2 हैं।
सबसे छोटी अभाज्य संख्या लिखिए जो 9 से बड़ी हो।
A. 11 B. 13 C. 17 D. 23
उत्तर:- 9 से बड़ी अभाज्य संख्याएँ 11, 13, 17, 19, 23 हैं। इनमें सबसे छोटी संख्या 11 हैं।
सबसे बड़ी अभाज्य संख्या लिखिए जो 18 से छोटी हो।
A. 17 B. 15 C. 13 D. 9
उत्तर:- 18 से छोटी अभाज्य संख्याएँ 2, 3, 5, 7, 11, 13, 17 हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या 17 हैं।
20 से छोटी उन अभाज्य संख्याओं के जोड़े लिखिए जिनका अंतर 2 हो?
A. (3, 5), (5, 7), (11, 13), (17, 19) B. (2, 3), (5, 9), (7, 9) (9, 11) C. (1, 3), (5, 7), (7, 9) (19, 19) D. (3, 5), (5, 7), (7, 9) (17, 19)
हल:- प्रश्ननानुसार, 20 से छोटी अभाज्य संख्याएँ – 2, 3, 5, 7, 11, 13, 17, 19 20 से छोटी अभाज्य संख्याओं के बीच 2 का अंतर उत्तर:- (3, 5), (5, 7), (11, 13), (17, 19)
ऐसी 50 से छोटी अभाज्य संख्याओं के जोड़े लिखिए जिनका अंतर 1 हो?
A. (2, 3) B. (3, 5) C. (11, 13) D. (17, 19)
50 से छोटी अभाज्य संख्याएँ उत्तर:- 2, 3, 5, 7, 11, 13, 17, 19, 23, 29, 31, 37, 41, 43, 47 50 से छोटी अभाज्य संख्याओं के बीच 1 का अंतर (3 – 2 ) = 1
30 और 40 के बीच की अभाज्य संख्याएँ लिखिए?
A. 1 B. 2 C. 3 D. 4
उत्तर:- 30 और 40 के बीच की अभाज्य संख्याएँ – 31, 37 हैं।