भिन्न को दशमलव में बदलने का तरीका भिन्न को दशमलव में बदलने के लिए भिन्न के अंश (Numerator) को हर (Denominator) से भाग देना होता है। इसे निम्नलिखित उदाहरणों से समझा जा सकता है:
उदाहरण 1:
भिन्न: 1/2 भाग करें:
1÷2=0.5
उदाहरण 2:
भिन्न: 3/4 भाग करें:
3÷4=0.75
उदाहरण 3:
भिन्न: 7/8 भाग करें:
7÷8=0.875
उदाहरण 4:
भिन्न: 22/7 भाग करें:
22÷7=3.142857…(अनंत आवर्ती दशमलव) के रूप में लिखा जा सकता है।
विशेष नोट:
यदि भाग पूरा हो जाए, तो यह समाप्त दशमलव (Terminating Decimal) कहलाता है। जैसे: 1/2=0.5, 3/4=0.75
यदि भाग कभी समाप्त न हो और बार-बार दोहराए, तो इसे आवर्ती दशमलव (Repeating Decimal) कहते हैं। जैसे: 1/3=0.3333⋯
यदि कोई वस्तु निश्चित दूरी को x किलोमीटर/घण्टा तथा पुनः उसी दूरी को y किलोमीटर/घण्टा की चाल से तय करती हैं, तो पूरी यात्रा के दौरान उसकी
औसत चाल = (2 × x × y) / (x + y) किलोमीटर/घण्टा होगी।
एक बस A से B तक 30 किलोमीटर/घण्टे की गति से तथा B से A तक 20 किलोमीटर प्रति घण्टे की गति से चलती हैं, यदि A से B और B से C तक कि दूरी 50 किलोमीटर हो तो बस की औसत चाल कितनी हैं?
मोहन A से B तक 10 किलोमीटर/घण्टे की गति से तथा B से C तक 15 किलोमीटर/घण्टे की गति से तथा C से D तक 25 किलोमीटर/घण्टे की गति से चलता हैं तो बताइए उसकी औसत चाल क्या है?
श्यामू 10 किलोमीटर की दूरी 5 किलोमीटर/घण्टे की गति से, 12 किलोमीटर की दूरी 4 किलोमीटर/घण्टे की गति से तथा 15 किलोमीटर की दूरी 3 किलोमीटर/घण्टे की गति से चलता हैं तो पूरी यात्रा में उसकी औसत चाल बताइए?
किसी व्यक्ति/यातायात के साधन द्वारा इकाई समय में चली गई दूरी, चाल कहलाती हैं।
चाल का सूत्र = चाल = दूरी / समय
एक बस 120 किलोमीटर/घण्टा की दूरी 5/3 घण्टे में तय करती हैं बताइए उसकी चाल कितनी है?
दूरी (Distance) :-
किसी व्यक्ति/यातायात के साधन द्वारा स्थान परिवर्तन को तय की गई दूरी कहा जाता हैं।
दूरी का सूत्र :- दूरी = चाल × समय
सोहन 12 किलोमीटर/घण्टा की गति से कोई यात्रा 3 घण्टे में तय करता हैं तो कुल दूरी क्या है ?
समय (Time) :-
किसी व्यक्ति/यातायात के साधन द्वारा इकाई चाल से चली गई दूरी, उसके समय को निर्धारित करती हैं।
समय का सूत्र :- समय = दूरी / चाल
60 किलोमीटर/घण्टे की गति से चलती हुई एक गाड़ी 1440 किलोमीटर की दूरी 16 घण्टे में तय करती हैं, उसी गति से 480 किलोमीटर की दूरी को कितने समय मे तय करेगी?
चाल का मात्रक (Unit of Speed):
चाल का मात्रक मीटर/सेंटीमीटर अथवा किलोमीटर/घण्टा होता हैं।
यदि चाल मीटर/सेंटीमीटर में हैं, तो किलोमीटर/घण्टा = 18/5 × मीटर/सेंटीमीटर यदि चाल किलोमीटर/घण्टा में हैं, तो मीटर/सेंटीमीटर = 5/18 × किलोमीटर/घण्टा
प्रश्न: यदि एक वाहन की चाल 72 किलोमीटर/घंटा है, तो उसकी चाल मीटर/सेंटीमीटर में कितनी होगी?
हल:
समय का अनुपात
A और B की गति का अनुपात 3:2 है। यदि A एक दूरी को 6 घंटे में तय करता है, तो B उसी दूरी को कितने समय में तय करेगा?
यदि A तथा B चाल में अनुपात a : b हो तो एक ही दूरी तय करने में इनके द्वारा लिया गया समय का अनुपात b : a होगा।
A और B के बीच की दूरी
जब एक व्यक्ति A से B तक x किलोमीटर/घण्टे की चाल से जाता हैं तथा t₁ समय देर से पहुँचता हैं तथा जब वह y किलोमीटर/घण्टे की चाल से चलता हैं, तो t₂ समय पहले पहुँच जाता हैं, तो
A तथा B के बीच की दूरी = (चालों का गुणनफल) × (समयान्तर) / (चालों में अंतर)
(X × Y) × (T₁ + T₂) / (Y – X) किलोमीटर
प्रश्न: एक व्यक्ति A से B तक 6 किमी/घंटा की चाल से चलता है और 30 मिनट देर से पहुँचता है। जब वह 10 किमी/घंटा की चाल से चलता है, तो वह 20 मिनटपहले पहुँच जाता है। A और B के बीच की दूरी ज्ञात कीजिए।
जब कोई रेलगाड़ी किसी लम्बी वस्तु/स्थान/प्लेटफार्म/पुल दूसरी रेलगाड़ी को पार करती हैं तो रेलगाड़ी को अपनी लम्बाई के साथ-साथ उस वस्तु की लम्बाई के बराबर अतिरिक्त दूरी भी तय करनी पड़ती हैं।
अर्थात कुल दूरी = रेल की लम्बाई + प्लेटफॉर्म/पुल की लम्बाई
यदि दो वस्तु एक ही दिशा में a किलोमीटर/घण्टा तथा b किलोमीटर/घण्टा की चाल से गति कर रही हैं, जिनका गति प्रारम्भ करने का स्थान तथा समय समान हैं, तो उनकी सापेक्ष चाल (a – b) किलोमीटर/घण्टा होगी।
सापेक्ष चाल = (a – b) किलोमीटर/घण्टा
दोनों विपरीत दिशा में हो, तो
यदि दो वस्तु विपरीत दिशा में a किलोमीटर/घण्टा तथा b किलोमीटर/घण्टा की चाल से गति कर रही हैं, जिनका गति प्रारम्भ करने का स्थान व समय समान हैं, तो उनकी सापेक्षिक चाल (a + b) किलोमीटर/घण्टा होगी।
कार्य, व्यक्ति और समय की अवधारणा (Work, Person, and Time Concept)
कार्य, व्यक्ति, और समय की अवधारणा गणित में एक महत्वपूर्ण विषय है, जिसका उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि एक कार्य को पूरा करने में कितने व्यक्ति या कितना समय लगेगा। यह अनुपात और समानुपात के नियमों पर आधारित है।
मूलभूत नियम:
कार्य और व्यक्ति का संबंध:
अधिक व्यक्ति = कम समय में कार्य पूरा।
कम व्यक्ति = अधिक समय में कार्य पूरा।
यह व्युत्क्रमानुपाती (Inverse Proportion) का उदाहरण है। व्यक्ति×समय=स्थिर कार्य
कार्य और समय का संबंध:
कार्य अधिक = समय अधिक।
कार्य कम = समय कम।
यह सीधा अनुपात (Direct Proportion) का उदाहरण है।
एक दिन का कार्य:
यदि कोई व्यक्ति किसी कार्य को n दिनों में पूरा करता है, तो उसका एक दिन का कार्य होता है: 1/n
समूह का कार्य:
यदि A और B मिलकर किसी कार्य को करते हैं, तो उनका एक दिन का कार्य होता है: A का एक दिन का कार्य+B का एक दिन का कार्य
प्रमुख सूत्र:
कार्य का संबंध: व्यक्ति1×समय1=व्यक्ति2×समय2
समूह कार्य का समय: यदि A और B किसी कार्य को क्रमशः a और b दिनों में पूरा करते हैं, तो दोनों मिलकर कार्य को पूरा करेंगे: समय=a×b/a+b
कार्य का विभाजन: यदि A और B मिलकर कार्य करते हैं और कार्य का विभाजन उनकी दक्षता (efficiency) के अनुपात में होता है, तो: A का कार्य:B का कार्य=A की दक्षता:B की दक्षता
उदाहरण प्रश्न:
1. व्यक्ति और समय का संबंध:
5 व्यक्ति एक कार्य को 10 दिनों में पूरा करते हैं। 8 व्यक्ति वही कार्य कितने दिनों में पूरा करेंगे?
समाधान: 5×10=8×x x=5×10/8=6.25 दिन।
2. समूह कार्य का समय:
A अकेले किसी कार्य को 12 दिनों में और B 18 दिनों में पूरा करता है। दोनों मिलकर कार्य कितने दिनों में पूरा करेंगे?
समाधान: समय=12×18/12+18=216/30=7.2 दिन।
3. कार्य का विभाजन:
A और B मिलकर एक कार्य 5 दिनों में पूरा करते हैं। यदि A अकेले कार्य को 8 दिनों में करता है, तो B अकेले कार्य को कितने दिनों में करेगा?
समाधान: A का एक दिन का कार्य=1/8 दोनों का एक दिन का कार्य=1/5 B का एक दिन का कार्य=1/5−1/8=8−5/40=3/40 B अकेले कार्य को 1/3/40=13.33 दिनों में पूरा करेगा।
महत्वपूर्ण अवधारणाएँ:
कार्य की दक्षता (Efficiency):
यदि एक व्यक्ति 1 दिन में 5 इकाई कार्य करता है और दूसरा 3 इकाई कार्य करता है, तो उनकी कुल दक्षता = 5+3=8 इकाई।
समान कार्य:
यदि A और B मिलकर कार्य करते हैं और A का कार्य B के कार्य का दोगुना है, तो कार्य का विभाजन 2:1 के अनुपात में होगा।
मिश्रित प्रश्न:
A,B और C मिलकर कार्य करते हैं। यदि A और B 5 दिन में, B और C 6 दिन में, और C और A 7 दिन में कार्य करते हैं, तो पूरा कार्य तीनों मिलकर कितने दिनों में करेंगे?
समाधान: यह प्रश्न दक्षता और समानुपात के उपयोग से हल किया जाता है।
दशमलव भिन्न वह संख्या होती है जिसमें पूर्णांक और भिन्न (Fraction) का संयोजन होता है और भिन्न को दशमलव बिंदु (.) के बाद प्रदर्शित किया जाता है। यह प्रणाली दशमलव आधार 10 पर आधारित होती है।
दशमलव भिन्न के घटक (Components of a Decimal Fraction):
पूर्णांक भाग (Whole Part): दशमलव बिंदु से पहले का भाग। उदाहरण: 12.34 में 12 पूर्णांक भाग है।
दशमलव भाग (Decimal Part): दशमलव बिंदु के बाद का भाग। उदाहरण: 12.34 में 34 दशमलव भाग है।
दशमलव भिन्न की विशेषताएँ:
दशमलव भिन्न का मान 10 , 100 , 1000 , आदि के आधार पर विभाजित होता है।
0.1=1/10
0.01=1/100
0.001=1/1000
दशमलव भिन्नों का उपयोग सटीक मान प्रदर्शित करने और भिन्नों को सरल रूप में व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
दशमलव भिन्न के प्रकार (Types of Decimal Fractions):
समाप्त दशमलव भिन्न (Terminating Decimal): ऐसे दशमलव भिन्न जो एक निश्चित संख्या के बाद समाप्त हो जाते हैं।
उदाहरण: 0.5,1.25,3.75
असमाप्त दशमलव भिन्न (Non-Terminating Decimal): ऐसे दशमलव भिन्न जो कभी समाप्त नहीं होते।
दो प्रकार:
दोहराव वाले (Repeating): दशमलव भाग में कोई संख्या बार-बार दोहराई जाती है।
उदाहरण: 0.333 , 1.666
अदोहराव वाले (Non-Repeating): दशमलव भाग में कोई संख्या दोहराई नहीं जाती।
दशमलव भिन्न की तुलना (Comparison of Decimal Fractions)
पूर्ण भाग (Whole Number) की तुलना करें:
सबसे पहले दशमलव से पहले के अंकों (पूर्ण भाग) की तुलना करें।जिस संख्या का पूर्ण भाग बड़ा होता है, वह संख्या बड़ी होती है।
उदाहरण: 3.45 और 2.89 में, 3>2, इसलिए 3.45>2.89
दशमलव के बाद के अंकों की तुलना करें:
यदि पूर्ण भाग समान हो, तो दशमलव के बाद के अंकों की तुलना करें।सबसे पहले, दशमलव के ठीक बाद का अंक देखें। यदि वह समान हो, तो उसके बाद के अंक की तुलना करें।
उदाहरण: 4.56 और 4.59 में, पूर्ण भाग समान है। दशमलव के बाद 5=5 , लेकिन 6<9 , इसलिए 4.56<4.59 ।
समान दशमलव स्थान सुनिश्चित करें:
यदि दशमलव स्थान अलग-अलग हो, तो दोनों दशमलव भिन्नों को समान स्थानों तक बढ़ाएँ।ऐसा करने के लिए, दशमलव के बाद शून्य (0) जोड़ें।
उदाहरण: 3.4 और 3.45 में, 3.4 को 3.40 लिखें। अब 3.40<3.45
अंतर को समझें:
यदि दो दशमलव भिन्नों में कोई स्थान भिन्न है, तो उनके अंकों का स्थानिक मान देखें।
सबसे बड़ा स्थानिक मान वाली संख्या बड़ी होगी।
प्रश्न और उत्तर:
प्रश्न 1: 2.345 और 2.35 में कौन-सी संख्या बड़ी है? हल:
2.345 को 2.350 लिखें।
अब तुलना करें: 2.345<2.35 ।
उत्तर: 2.35 बड़ी है।
प्रश्न 2: 5.7 , 5.70 , और 5.67 को बढ़ते क्रम में लिखें। हल:
5.7=5.70 , 5.67<5.70 ।
बढ़ते क्रम में: 5.67<5.7=5.70 ।
उत्तर: 5.67,5.7,5.70 ।
प्रश्न 3: 0.005 , 0.05 और 0.5 में सबसे छोटी संख्या कौन-सी है? हल:
किसी संख्या का उसी संख्या के साथ बार-बार गुणा कर संक्षिप्त रूप लेखन को हम घातीय संकेतन भी कहते हैं। जैसे :- 3 x 3 x 3 x 3 = 34. यहाँ 3 आधार है तथा 4 घात है।
घातांक के नियम: (rules of exponent in hindi)
घातांक के नियम निम्न है :
नियम 1: a0 = 1
शून्य के अलावा अगर कोई भी संख्या के ऊपर अगर 0 घात है तो उसका मान 1 हो जाएगा।
उदाहरण :
80 = 1
किसी संख्या का घात शून्य (0) हो तो मान एक (1) होगा कैसे
नियम 2: a-m = 1/am
अगर किसी संख्या की घात में ऋणात्मक चिन्ह है तो फिर वह संख्या 1 के भाग में चली जायेगी एवं उसकी घात धनात्मक हो जायेगी।
उदाहरण :
3-3
= 1/33
= 1/27
नियम 3: am x an = am+n
अगर किन्हीं ऐसी दो संख्याएं जिनका मूल समान है लेकिन घात अलग है उन्हें गुना किया जाता है अगर उन दो संख्याओं को गुना किया जाता है तो उनकी घात का योग हो जाता है।
उदाहरण:
22 x 23
= 22+3
= 25
= 2x2x2x2x2 = 32
नियम 4 : am/an = am-n
अगर किन्हीं ऐसी दो संख्याओं का भाग दिया जाता हैं जिनका मूल ह्या आधार समान है तो उन दोनों संख्याओं की घात घटा हो जाती हैं एवं हम एक ही आधार लेते हैं।
उदाहरण:
25/23
= 25-3
= 22
= 4
नियम 5 : (am)n : amxn
अगर कोई संख्या घात के साथ कोष्ठक में होती है एवं कोष्ठक के बाहर भी कोई घात होती है तो दोनों घाटों का गुना होता है। गुना होने बाद जो घात आती है वाही घात उस संख्या कि घात होती है। फिर हम उस संख्या को उतनी बार गुना करके उसका हल निकालते हैं।
उदाहरण :
(22)3
= 26
= 64
-1 का सम व विषम घात का मान
-1 का सम और विषम घात का मान इस प्रकार होता है:
सम (Even): (-1)2 = 1
विषम (Odd): (-1)3 = -1
इसलिए, -1 का सम घात का मान 1 होता है और विषम घात का मान -1 होता है।
सन्निकट या निकटतम मान (Approximation or Nearest Value):
सन्निकट मान का अर्थ है किसी संख्या को उसके सबसे पास के मान तक घेरना। यह गणना में आसानी के लिए किया जाता है, ताकि बहुत बड़े या छोटे अंशों से बचा जा सके। सन्निकट मान आमतौर पर दशमलव स्थानों या पूर्णांकों तक सीमित किया जाता है।
1. सन्निकट मान की प्रक्रिया:
जब किसी संख्या का सन्निकट मान निकालते हैं, तो हम उस संख्या को एक निश्चित दशमलव स्थान या पूर्णांक तक घेरते हैं।
सन्निकट पूर्णांक (Nearest Integer):
यदि संख्या दशमलव के बाद किसी अंक के पास होती है, तो उसे निकटतम पूर्णांक में बदल देते हैं।
उदाहरण:
3.4 का सन्निकट पूर्णांक 3 होगा (क्योंकि 3.4 से पास है)।
3.6 का सन्निकट पूर्णांक 4 होगा (क्योंकि 3.6, 4 से पास है)।
सन्निकट दशमलव मान (Nearest Decimal Value):
किसी संख्या को कुछ दशमलव स्थानों तक घेरने की प्रक्रिया होती है।
उदाहरण:
3.14159 को 3.14 तक सन्निकट किया जाता है, यदि हम इसे 2 दशमलव स्थानों तक घेरें।
7.897 को 7.90 तक सन्निकट किया जाता है, यदि हम इसे 2 दशमलव स्थानों तक घेरें।
2. सन्निकट मान निकालने की प्रक्रिया:
सन्निकट मान निकालने के लिए, हम निम्नलिखित नियमों का पालन करते हैं:
दशमलव स्थानों के लिए सन्निकट मान:
यदि दशमलव के बाद की पहली संख्या 5 या उससे अधिक है, तो हम अंतिम दशमलव अंक को 1 बढ़ा देते हैं।
यदि दशमलव के बाद की पहली संख्या 4 या उससे कम है, तो हम अंतिम दशमलव अंक को जस का तस रखते हैं।
उदाहरण:
6.275 को 2 दशमलव स्थानों तक सन्निकट करें: 6.28 (क्योंकि 5 से अधिक है)।
8.742 को 1 दशमलव स्थान तक सन्निकट करें: 8.7 (क्योंकि 4 से कम है)।
पूर्णांक के लिए सन्निकट मान:
यदि दशमलव अंक 5 या उससे अधिक है, तो पूर्णांक को 1 बढ़ा दिया जाता है।
यदि दशमलव अंक 4 या उससे कम है, तो पूर्णांक जस का तस रहता है।
उदाहरण:
12.6 का सन्निकट पूर्णांक 13होगा।
8.2 का सन्निकट पूर्णांक 8 होगा।
दहाई, सैकड़ा और हजार का सन्निकट मान:
जब हम किसी संख्या को दहाई, सैकड़ा या हजार तक सन्निकट करते हैं, तो इसका मतलब है कि हम उस संख्या को निकटतम दहाई, सैकड़ा या हजार तक घेरते हैं। यह प्रक्रिया संख्या को सरल बनाने के लिए की जाती है।
1. दहाई का सन्निकट (Nearest Ten):
दहाई का सन्निकट मान निकालने के लिए हम संख्या को सबसे पास के 10 तक घेरते हैं। यदि अंतिम अंक 5 या उससे अधिक है, तो हम दहाई को 1 बढ़ा देते हैं, और यदि वह 4 या उससे कम है, तो दहाई को जस का तस रखते हैं।
उदाहरण:
34 का दहाई का सन्निकट मान 30 होगा (क्योंकि 4 से कम है)।
3 8 का दहाई का सन्निकट मान 40 होगा (क्योंकि 8 से अधिक है)।
52 का दहाई का सन्निकट मान 50 होगा (क्योंकि 2 से कम है)।
2. सैकड़ा का सन्निकट (Nearest Hundred):
सैकड़ा का सन्निकट मान निकालने के लिए हम संख्या को सबसे पास के 100 तक घेरते हैं। यदि अंतिम दो अंक 50 या उससे अधिक होते हैं, तो हम सैकड़ा को 1 बढ़ा देते हैं, और यदि वे 49 या उससे कम होते हैं, तो सैकड़ा को जस का तस रखते हैं।
उदाहरण:
438 का सैकड़ा का सन्निकट मान 400 होगा (क्योंकि 38 से कम है)।
563 का सैकड़ा का सन्निकट मान 600 होगा (क्योंकि 63 से अधिक है)।
249 का सैकड़ा का सन्निकट मान 200 होगा (क्योंकि 49 से कम है)।
3. हजार का सन्निकट (Nearest Thousand):
हजार का सन्निकट मान निकालने के लिए हम संख्या को सबसे पास के 1000 तक घेरते हैं। यदि अंतिम तीन अंक 500 या उससे अधिक होते हैं, तो हम हजार को 1 बढ़ा देते हैं, और यदि वे 499 या उससे कम होते हैं, तो हजार को जस का तस रखते हैं।
उदाहरण:
2,348 का हजार का सन्निकट मान 2,000 होगा (क्योंकि 348 से कम है)।
3,752 का हजार का सन्निकट मान 4,000 होगा (क्योंकि 752 से अधिक है)।
1,249 का हजार का सन्निकट मान 1,000 होगा (क्योंकि 249 से कम है)।
द्विआधारी संख्या प्रणाली (Binary Number System) वह प्रणाली है जिसमें केवल दो अंक, 0 और 1, का उपयोग होता है। यह संख्या प्रणाली कंप्यूटर और डिजिटल सिस्टम में सबसे अधिक उपयोगी है।
विशेषताएँ:
केवल दो अंक: 0 और 1।
प्रत्येक अंक का मान (Weight) 2 के घात पर आधारित होता है।
यह दशमलव संख्या प्रणाली (Decimal System) का एक विकल्प है।
उदाहरण:
द्विआधारी संख्या: 10102
इसे दशमलव में बदलें: 10102=(1×23)+(0×22)+(1×21)+(0×20)=8+0+2+0=1010
प्रतिलोम संख्या (Reciprocal Number):
प्रतिलोम संख्या किसी संख्या का वह मान है जिसे उस संख्या के साथ गुणा करने पर परिणाम 1 आता है।
परिभाषा:
यदि a एक संख्या है, तो उसका प्रतिलोम 1/a होगा।
उदाहरण:
a=2, प्रतिलोम 1/2
a=3/4 का प्रतिलोम 4/3
महत्वपूर्ण बिंदु:
शून्य (0) का प्रतिलोम परिभाषित नहीं होता क्योंकि 1/0 अनंत होता है।
यदि कोई संख्या ऋणात्मक हो, तो उसका प्रतिलोम भी ऋणात्मक होगा।
मान लीजिए कि x और y दो धनात्मक पूर्णांक हैं जैसे कि उन्हें सह-अभाज्य संख्याएँ कहा जाता है यदि और केवल यदि उनका एकमात्र सामान्य गुणनखंड 1 है और इस प्रकार HCF(x, y) = 1 है।
दो संख्याओं में 1 के अलावा कोई धनात्मक पूर्णांक नहीं है जो दोनों को विभाजित कर सके, तो संख्याओं का जोड़ा सह-अभाज्य है।
दूसरे शब्दों में, सह-अभाज्य संख्याएँ एक समुच्चय हैं ऐसी संख्याएँ या पूर्णांक जिनका सामान्य गुणनखंड केवल 1 है अर्थात उनका उच्चतम सामान्य गुणनखंड (HCF) 1 होगा।
सह-अभाज्य संख्याएँ बनाने के लिए यह आवश्यक है कि दो संख्याएँ हों।
उदाहरण 1: 21 और 22
21 और 22 के लिए:
21 के गुणनखंड 1, 3, 7 और 21 हैं।
22 के गुणनखंड 1, 2, 11 और 22 हैं।
यहां 21 और 22 में केवल एक उभयनिष्ठ गुणनखंड है जो कि 1 है। इसलिए, उनका महत्तम समापवर्तक 1 है और सह-अभाज्य हैं।
उदाहरण 2: 21 और 27
21 और 27 के लिए:
21 के गुणनखंड 1, 3, 7 और 21 हैं।
27 के गुणनखंड 1, 3, 9 और 27 हैं।
यहां 21 और 27 में दो सामान्य गुणनखंड हैं; वे 1 और 3 हैं। महत्तम समापवर्तक 3 है और वे सह-अभाज्य नहीं हैं।
जुड़वाँ अभाज्य संख्याएँ (Twin Prime Numbers):
जुड़वाँ अभाज्य संख्याएँ दो ऐसी अभाज्य संख्याओं की जोड़ी होती हैं जिनके बीच का अंतर 2 होता है।
सांख्यिकी गणित की एक शाखा है जो डेटा के संग्रह, विश्लेषण, प्रस्तुति और व्याख्या से संबंधित है। नवोदय प्रवेश परीक्षा में सांख्यिकी के आधारभूत विषयों से जुड़े सरल और तर्कसंगत प्रश्न पूछे जाते हैं।
सांख्यिकी के मुख्य विषय
औसत (Average/Mean):
औसत = (सभी मानों का योग) ÷ (कुल मानों की संख्या)।
मध्यिका (Median):
यह वह मान है जो डेटा को दो बराबर भागों में बाँटता है।
बहुलक (Mode):
यह वह मान है जो डेटा में सबसे अधिक बार आता है।
आवृत्ति (Frequency):
किसी विशेष मान के आने की संख्या।
अन्तराल (Range):
अधिकतम और न्यूनतम मान का अंतर।
सांख्यिकी पर संभावित प्रश्न
1. औसत से संबंधित प्रश्न
Q1: पाँच संख्याओं का औसत 24 है। यदि छठी संख्या 30 जोड़ दी जाए, तो नया औसत क्या होगा? उत्तर:
औसत = (कुल मानों का योग) ÷ (कुल संख्याएँ)
कुल मानों का योग = 24×5=120
छठी संख्या जोड़ने पर = 120+30=150
नया औसत = 150÷6=25
2. मध्यिका से संबंधित प्रश्न
Q2: डेटा: 7, 9, 15, 10, 8। इस डेटा की मध्यिका क्या होगी? उत्तर:
पहले डेटा को क्रम में लगाएँ: 7, 8, 9, 10, 15
मध्यिका = बीच का मान = 9
3. बहुलक से संबंधित प्रश्न
Q3: डेटा: 4, 6, 8, 6, 9, 10, 6, 4। इस डेटा का मोड ज्ञात करें। उत्तर:
डेटा में सबसे अधिक बार आने वाला मान: 6
4. आवृत्ति तालिका (Frequency Table) पर आधारित प्रश्न
Q4: किसी कक्षा में 10 छात्रों के अंक इस प्रकार हैं: 5, 7, 5, 10, 8, 5, 9, 10, 8, 9 आवृत्ति तालिका बनाएँ।
अंक
आवृत्ति (Frequency)
5
3
7
1
8
2
9
2
10
2
5. अंतराल (Range) पर आधारित प्रश्न
Q5: किसी डेटा सेट के अधिकतम मान 50 और न्यूनतम मान 20 हैं। अंतराल ज्ञात करें। उत्तर:
अंतराल = अधिकतम मान – न्यूनतम मान
अंतराल = 50−20=30
महत्वपूर्ण टिप्स
औसत, मध्यिका और मोड के बीच के अंतर को समझें।
आवृत्ति तालिका बनाने का अभ्यास करें।
डेटा का क्रम में व्यवस्थित करना न भूलें।
सरल तर्क के माध्यम से उत्तर निकालने की कोशिश करें।
नवोदय प्रवेश परीक्षा में सांख्यिकी से जुड़े सवाल प्रायः सरल होते हैं, लेकिन डेटा का सही तरीके से विश्लेषण करना अनिवार्य है।
कोई भी निर्णय लेते समय आपको कुछ न कुछ जानकारियों की आवश्यकता होती है। इन आवश्यक संख्यात्मक जानकारियों को ही आँकड़े कहते हैं।
प्रत्येक मान के लिए एक खड़ी लकीर खींचने की प्रक्रिया को टैली (Tally) लगाना कहते हैं तथा इस विधि को टैली विधि (Tally method) द्वारा आंकड़ों का संकलन (Collection of Data) कहते हैं एवं इससे प्राप्त सारणी को बारम्बारता सारणी (Frequency Table) कहते हैं। इससे गिनने में सरलता होती है।
आंकड़ों का चित्र : आरेख
चित्र संकेतों द्वारा सांख्यिकीय आंकड़ों का ग्राफीय निरूपण आंकड़ों का चित्र आरेख कहलाता है।
दण्ड आरेख बराबर दूरी पर लिए गए एक समान चौड़ाई वाले क्षैतिज या उर्ध्वाधर दण्डों (आयतों) द्वारा संख्यात्मक आंकड़ों का चित्रीय निरूपण होता है।
दण्ड आरेख को देखकर बहुत से निष्कर्ष आसानी से निकाले जा सकते हैं।
उर्ध्वाधर दण्ड आारेख (Vertical Bar Graph)
आंकड़ों को प्रदर्शित करने में दण्ड को उर्ध्वाधर बनाया गया है इसे उर्ध्वाधर दण्ड आारेख (Vertical Bar Graph) कहते हैं।
क्षैतिज दण्ड आरेख (Horizontal Bar Graph)
दण्डों को क्षैतिज रूप में प्रदर्शित करें तो उसे क्षैतिज दण्ड आरेख (Horizontal Bar Graph) कहते हैं।
जब सामान्यतः कोई व्यापारी अपने ग्राहक को कोई समान बेचता हैं, तो अंकित मूल्य पर कुछ छूट देता हैं, इसी छूट को बट्टा कहते हैं बट्टे का सामान्य अर्थ छूट से हैं।
Note : बट्टा सदैव अंकित मूल्य पर दिया जाता हैं।
विक्रय मूल्य = अंकित मूल्य – बट्टा
यदि किसी वस्तु को बेचने पर r% का बट्टा दिया जा रहा हो, तो
वस्तु का विक्रय मूल्य = अंकित मूल्य × (100-r)/100
बट्टा के महत्वपूर्ण तथ्य :
यदि किसी वस्तु के अंकित मूल्य पर क्रमशः r% व R% का बट्टा दिया जा रहा हो, तो
वस्तु का विक्रय मूल्य = अंकित मूल्य × (100 – r) / 100 × (100 – R) / 100)
यदि दो बट्टा श्रेणी r% तथा R% हो, तो
इनके समतुल्य बट्टा (r + R – rR/100)% होगा।
यदि किसी वस्तु पर r% छूट देकर भी R% का लाभ प्राप्त करना हो, तो
वस्तु का अंकित मूल्य = क्रय मूल्य × [(100 + R) / (100 – r)
यदि किसी वस्तु पर r% छूट देने के उपरान्त भी R% का लाभ प्राप्त करना हो, तो
वस्तु का अंकित मूल्य [(r + R / 100 – r) × 100] बढ़ाकर अंकित किया जाएगा।
अंकित मूल्य = विक्रय मूल्य × 100 / (100% – %)
विक्रय मूल्य = अंकित मूल्य × (100% – %)/100
ब्याज / बट्टा / जनसंख्या आधारित प्रश्न
बट्टा के सूत्र
बट्टा = लिखित मूल्य – विक्रय मूल्य
लिखित मूल्य = बट्टा + विक्रय मूल्य
विक्रय मूल्य = लिखित मूल्य – बट्टा
बट्टा % = (बट्टा/लिखित मूल्य) × 100
बट्टा = (बट्टा %/लिखित मूल्य) × 100
जनसंख्या आधारित प्रश्न के सूत्र
N वर्ष पश्चात जनसंख्या = वर्तमान जनसंख्या × (1 + दर/100) समय
N वर्ष पूर्व जनसंख्या = वर्तमान जनसंख्या / (1 + दर/100 ) समय
किसी समतल पर कोई वस्तु जितना स्थान घेरती है वह उसका क्षेत्रफल होता है।
क्षेत्रफल का मात्रक वर्ग इकाई होता है।
क्षेत्रफल : त्रिभुज और चतुर्भुज का क्षेत्रफल
त्रिभुज का क्षेत्रफल
आयत का क्षेत्रफल = लम्बाई ग चौड़ाई
वर्ग का क्षेत्रफल = भुजा x भुजा = (भुजा)2
एक आयत की लम्बाई 7 सेमी व चौड़ाई 3 सेमी है, इसका क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
समान्तर चतुर्भुज का आधार =क्षेत्रफल/ऊँचाई समान्तर चतुर्भुज का ऊँचाई =क्षेत्रफल/आधार समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल = आधार x ऊँचाई
उस समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए, जिसका आधार 26.5 सेमी तथा शीर्ष लंब 7 सेमी है।
उस समान्तर चतुर्भुज का आधार ज्ञात कीजिए, जिसका क्षेत्रफल 390 वर्ग सेमी तथा शीर्ष लंब 26 सेमी हो।
उस समान्तर चतुर्भुज का शीर्ष लंब ज्ञात कीजिए, जिसका क्षेत्रफल 1200 वर्ग मीटर और आधार 60 मीटर है।
चतुर्भुज का क्षेत्रफल
समलंब चतुर्भुज का क्षेत्रफल (Area of a Trapezium)
एक ऐसा चतुर्भुज जिसकी दो सम्मुख भुजाएँ एक-दूसरे के समान्तर होती हैं। ABCD एक समलंब चतुर्भुज दिखाया गया है। भुजा AB भुजा DC के समान्तर है। दो समान्तर भुजाओं की लम्बवत दूरी को AM तथा CL से दर्शाया गया है। यदि हम इस त्रिभुज का विकर्ण AC खींचे इससे समलंब चतुर्भुज दो त्रिभुज ABC तथा ACD प्राप्त होते हैं। अतः समलंब चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = त्रिभुज ABC का क्षेत्रफल + त्रिभुज ACD का क्षेत्रफल समलंब चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = 1/2 AB XCL+ 1/2 DCXAM चूंकि CL तथा AM समलंब चतुर्भुज की ऊंचाई है अतः यह बराबर होगी। माना कि यह h के बराबर है। समलंब चतुर्भुज का क्षेत्रफल = 1/2 AB x h + 1/2 DC x h
यदि AB =b1 एवं DC=b2 है तो समलंब चतुर्भुज का क्षेत्रफल = 1/2 b1 xh+1/2 b2x h = 1/2(b1+b2)xh = 1/2 X (समांतर भुजाओं का योग) उनके बीच की दूरी समलंब चतुर्भुज का क्षेत्रफल = 1/2 X (समांतर भुजाओं का योग) ऊँचाई समलंब चतुर्भुज का क्षेत्रफल = 1/2 x (b1 + b2) x h
अभ्यास
एक समचतुर्भुज का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए जिसके विकर्ण 24 सेमी व 10 सेमी हैं।
एक समचतुर्भुज की एक भुजा 7.5 सेमी और शीर्ष लंब 4 सेमी है तो उसका क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
एक समलंब चतुर्भुज की समांतर भुजाएं 20 मी व 8 मी है। इन भुजाओं के बीच की दूरी 12 सेमी है, इसका क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
आधार 30 सेमी और 24.4 सेमी वाले समलंब चतुर्भुज का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए यदि शीर्ष लंब 1.5 सेमी है।
एक समलंब चतुर्भुज का क्षेत्रफल 105 वर्ग सेमी तथा ऊंचाई 7 सेमी है, समान्तर भुजाओं में से यदि एक दूसरी से 6 सेमी अधिक है तो दोनों समान्तर भुजाएं ज्ञात करो।
आयताकार पथ का क्षेत्रफल
एक 25 सेमी लंबी तथा 10 सेमी चौड़े चित्र के बाहर चारों ओर 2 सेमी चौड़ाई की पट्टी बनी है। पट्टी का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
एक आयताकार खेल का मैदान 35 मी X 25 मी माप का है। इसके बीचों-बीच लम्बाई के समान्तर 3 मीटर चौड़ा तथा चौड़ाई के समान्तर 2 मीटर चौड़ा रास्ता है। रास्ते का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
एक बास्केटबॉल का मैदान 28 मीटर लम्बा तथा 15 मीटर चौड़ा है। इसके बाहर चारों ओर 5 मीटर चौड़ी समतल दर्शक दीर्घा बनानी है। दीर्घा का क्षेत्रफल तथा दर्शक दीर्घा को बनाने का खर्च 5.25 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से ज्ञात कीजिए।
वृताकार मार्ग का क्षेत्रफल
यदि एक वृत जिसकी त्रिज्या r है तो परिधि C= 2nr तथा क्षेत्रफल = nr2 होता है। जहां n एक नियतांक है जिसका मान लगभग या 3.14 होता है।
दो सकेन्द्री वृत्तों की त्रिज्याएं क्रमशः 9 सेमी व 12 सेमी हैं दोनों वृत्तों के बीच बनने वाले वृत्ताकार मार्ग का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
एक वृत्त का क्षेत्रफल 616 वर्ग सेमी है। इस वृत्त के बाहर 2 मीटर चौड़ाई का मार्ग है। उस मार्ग का क्षेत्रफल कितना होगा।
वर्ग ग्रिड द्वारा बहुभुज का अनुमानित क्षेत्रफल-
बहुभुज ABCDEFA में, पूरे तथा आधे से बड़े वर्गों की संख्या=29 ठीक आधे वर्गों की संख्या=2 ठीक पूरे वर्गों की संख्या=29+1/2 x2 अतः बहुभुज ABCDEFA का क्षेत्रफल=29+1=30 वर्ग सेमी.
सूत्र द्वारा बहुभुज के क्षेत्रफल की गणना-
बहुभुज ABCDEFA का क्षेत्रफल = त्रिभुज AGB का क्षेत्रफल + समलम्ब चतुर्भुज BGIC का क्षेत्रफल + त्रिभुज CID का क्षेत्रफल + त्रिभुज DHE का क्षेत्रफल + आयत HEFG का क्षेत्रफल + त्रिभुज GFA का क्षेत्रफल
समबाहु त्रिभुज का क्षेत्रफल = √3/4 × (भुजा)² समबाहु त्रिभुज को परिमिति = 3 × भुजा समबाहु त्रिभुज के शीर्ष बिंदु से डाले गए लम्ब की लम्बाई = √3/4 × भुजा समद्विबाहु त्रिभुज का क्षेत्रफल = 1/4a√4b² – a² समद्विबाहु त्रिभुज की परिमिति = a + 2b या a + 2c समद्विबाहु त्रिभुज के शीर्ष बिंदु A से डाले गए लम्ब की लंबाई = √(4b² – a²) विषमबाहु त्रिभुज की परिमिति = तीनों भुजाओं का योग = a + b + c त्रिभुज का अर्ध परिमाप S = ½ × (a + b + c) विषमबाहु त्रिभुज का क्षेत्रफल = √s(s – a)(s – b)(s – c) समकोण त्रिभुज का क्षेत्रफल = ½ × आधार × लम्ब समकोण त्रिभुज की परिमिति = लंब + आधार + कर्ण = a + b + c समकोण त्रिभुज का कर्ण = √(लम्ब)² + (आधार)² = √(c² + a²) समकोण त्रिभुज का लम्ब = √(कर्ण)² – (आधार)² = √(b² – a²) समकोण त्रिभुज का आधार = √(कर्ण)² – (लम्ब)² = √b² – c² समद्विबाहु समकोण त्रिभुज का क्षेत्रफल = ¼ (कर्ण)² किसी त्रिभुज की प्रत्येक भुजा को x गुणित करने पर परिमिति x गुणित तथा क्षेत्रफल x^2 गुणित हो जाती हैं। समबाहु त्रिभुज का प्रत्येक कोण 60° होता हैं। समकोण त्रिभुज के तीनों कोणों का योग 180° अर्थात दो समकोण होता हैं।
आयत (Rectangle):
आयत का क्षेत्रफल = लंबाई ×चौड़ाई आयत का विकर्ण =√(लंबाई² + चौड़ाई²) आयत का परिमाप = 2(लम्बाई + चौड़ाई) किसी आयताकार मैदान के अंदर से चारों ओर रास्ता बना हो, तो रास्ते का क्षेत्रफल = 2 × रास्ते की चौड़ाई × [(मैदान की लंबाई + मैदान की चौड़ाई) – (2 × रास्ते की चौड़ाई)] यदि आयताकार मैदान के बाहर चारों ओर रास्ता बना हों, तो रास्ते का क्षेत्रफल = 2 × रास्ते की चौड़ाई × [(मैदान की लम्बाई + मैदान की चौड़ाई) + (2 × रास्ते की चौड़ाई)
वर्ग (Square):
वर्ग का क्षेत्रफल = (एक भुजा)² = a² वर्ग का क्षेत्रफल = (परिमिति)²/16 वर्ग का क्षेत्रफल = ½ × (विकर्णो का गुणनफल) = ½ × AC × BD वर्ग की परिमिति = 4 × a वर्ग का विकर्ण = एक भुजा × √2 = a × √2 वर्ग का विकर्ण = √2 × वर्ग का क्षेत्रफल वर्ग की परिमिति = विकर्ण × 2√2 वर्गाकार क्षेत्र के बाहर चारों ओर रास्ता बना हो तो रास्ते का क्षेत्रफल = 4 × रास्ते की चौड़ाई (वर्गाकार क्षेत्र की एक भुजा + रास्ते की चौड़ाई) वर्गाकार क्षेत्र के अंदर चारों ओर रास्ता बना हो तो रास्ते का क्षेत्रफल = 4 × रास्ते की चौड़ाई (वर्गाकार क्षेत्र की एक भुजा – रास्ते की चौड़ाई)
घन (Cube):
घन का आयतन = a × a × a घन का आयतन = (एक भुजा)³ घन की एक भुजा 3√आयतन घन का विकर्ण = √3a सेंटीमीटर। घन का विकर्ण = √3 × एक भुजा घन की एक भुजा = विकर्ण/√3 घन का परिमाप = 4 × a × a घन के सम्पूर्ण पृष्ठ का क्षेत्रफल = 6 a² वर्ग सेंटीमीटर।
बेलन (Cylinder):
बेलन का आयतन = πr²h बेलन के वक्र पृष्ठ का क्षेत्रफल = 2πrh बेलन के सम्पूर्ण पृष्ठ का क्षेत्रफल = (2πrh + 2πr²h) वर्ग सेंटीमीटर। दोनों सतहों का क्षेत्रफल = 2πr² खोखले बेलन का आयतन = πh(r²1 – r²2) खोखले बेलन का वक्रप्रष्ठ = 2πh(r1 + r2) खोखले बेलन का सम्पूर्ण पृष्ठ = 2πh(r1 + r2) + 2π (r²1 – r²1)
शंकु (Cone):
शंकु का वक्र पृष्ठ का क्षेत्रफल = πrl शंकु के पृष्ठों का क्षेत्रफल = πr(r + l) शंकु का आयतन = (πr²h)/3 घन सेंटीमीटर। शंकु की तिर्यक ऊँचाई (l) = √(r² + h²) शंकु की ऊँचाई (h) = √(l² – r²) शंकु की त्रिज्या (r) = √(l² – h²) शंकु का सम्पूर्ण पृष्ठ का क्षेत्रफल = (πrl + πr²) वर्ग सेंटीमीटर। शंकु का छिन्नक (Frastrum):
शंकु के छिन्नक का आयतन = (πh)/3 (R² + r² + Rr) तिर्यक भाग का क्षेत्रफल = π (R + r)³, l² = h² + (R – r)² छिन्नक के सम्पूर्ण पृष्ठ का क्षेत्रफल = π[R² + r² + l(R + r)] तिर्यक ऊँचाई = √(R – r)² + h²
समलम्ब चतुर्भुज (Trapezium Quadrilateral):
समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल = ½ × समान्तर भुजाओं का योग × समांतर भुजाओं के बीच की दूरी समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल = ½ × ऊँचाई × समान्तर भुजाओं का योग समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल = ½ × h × (AD + BC) समान्तर चतुर्भुज की परिमिति = 2 × (आसन्न भुजाओं का योगफल) समचतुर्भुज का क्षेत्रफल = ½ × विकर्णो का गुणनफल समचतुर्भुज की परिमिति = 4 × एक भुजा किसी चतुर्भुज का क्षेत्रफल = ½ × एक विकर्ण समचतुर्भुज की एक भुजा = √(विकर्ण)² + (विकर्ण)² समचतुर्भुज का एक विकर्ण = √भुजा² – (दूसरा विकर्ण/2)²
बहुभुज (Polygon):
n भुजा वाले चतुर्भुज का अन्तः कोणों का योग = 2(n -2) × 90° n भुजा वाले बहुभुज के बहिष्कोणों का योग = 360° n भुजा वाले समबहुभुज का प्रत्येक अन्तः कोण = [2(n – 2) × 90°] / n n भुजा वाले समबहुभुज का प्रत्येक भहिष्यकोण = 360°/n बहुभुज की परिमिति = n × एक भुजा नियमित षट्भुज का क्षेत्रफल = 6 × ¼√3 (भुजा)² नियमित षट्भुज का क्षेत्रफल = 3√3×½ (भुजा)² नियमित षट्भुज की परिमति = 6 × भुजा समषट्भुज की भुजा = परिवृत की त्रिज्या n भुजा वाले नियमित बहुभुज के विकर्णो की संख्या = n(n – 3)/2
घनाभ (Cuboid):
घनाभ के फलक का आकार = आयताकार घनाभ में 6 सतह या फलक होते हैं। घनाभ में 12 किनारे होते हैं। घनाभ में 8 शीर्ष होते हैं। घनाभ का आयतन = लम्बाई × चौड़ाई × ऊँचाई घनाभ की लंबाई = आयतन/(चौड़ाई × ऊँचाई) घनाभ की चौड़ाई = आयतन/(लम्बाई × ऊँचाई) घनाभ की ऊँचाई = आयतन/(लंबाई × चौड़ाई) घनाभ का आयतन = l × b × h घनाभ का परिमाप = 2(l + b) × h घनाभ के समस्त पृष्ठों का क्षेत्रफल = 2(लम्बाई × चौड़ाई + चौड़ाई × ऊँचाई + ऊँचाई × लम्बाई) घनाभ के सम्पूर्ण पृष्ठ का क्षेत्रफल = 2(lb + bh + hl) घनाभ के विकर्ण = √(लम्बाई)² + (चौड़ाई)² + (ऊँचाई)² घनाभ का विकर्ण = √l² + b² + h² खुले बक्से के सम्पूर्ण पृष्ठों का क्षेत्रफल = लम्बाई × चौडाई + 2(चौडाई × ऊँचाई + ऊँचाई × लम्बाई) कमरे के चारों दीवारों का क्षेत्रफल = 2 × ऊँचाई × (लम्बाई + चौड़ाई) किसी कमरे में लगने वाली अधिकतम लम्बाई वाली छड़ = √(लम्बाई)² + (चौड़ाई)² + (ऊँचाई)²
गोला (Sphere):
गोला का आयतन = (4πr³)/3 घन सेंटीमीटर गोले का वक्र पृष्ठ = 4πr² वर्ग सेंटीमीटर गोले की त्रिज्या = ∛3/4π × गोले का आयतन गोले का व्यास = ∛ (6 × गोले का आयतन)/π गोलाकार छिलके का आयतन = 4/3π(R³ – r³) गोले का सम्पूर्ण पृष्ठ = 4πr गोले की त्रिज्या = √सम्पूर्ण पृष्ठ/4π गोले का व्यास = √सम्पूर्ण पृष्ठ/π गोलाकार छिलके का आयतन = 4/3π(R³ – r³)
अर्द्धगोला (Semipsphere):
अर्द्ध गोले का वक्र पृष्ठ = 2πr² अर्द्धगोले का आयतन = 2/3πr³ घन सेंटीमीटर अर्द्धगोले का सम्पूर्ण पृष्ठ = 3πr² वर्ग सेंटीमीटर अर्द्वगोले की त्रिज्या r हो, तो अर्द्वगोले का आयतन = 2/3 πr³ अर्द्वगोले का सम्पूर्ण पृष्ठ = 3πr²
वृत्त (CIRCLE):
वृत्त का व्यास = 2 × त्रिज्या = 2r वृत्त की परिधि = 2π त्रिज्या = 2πr वृत्त की परिधि = π × व्यास = πd वृत्त का क्षेत्रफल = π × त्रिज्या² = πr² वृत्त की त्रिज्या = √वृत्त का क्षेत्रफल/π अर्द्ववृत्त की परिमिति = (n + 2)r = (π + 2)d/2 अर्द्ववृत्त का क्षेत्रफल = 1/2πr² = 1/8 πd² त्रिज्याखण्ड का क्षेत्रफल = θ/360° × वृत्त क्षेत्रफल = θ/360° × πr² त्रिज्याखण्ड की परिमिति = (2 + πθ/180°)r वृतखण्ड का क्षेत्रफल = (πθ/360° – 1/2 sinθ)r² वृतखण्ड की परिमिति = (L + πrθ)/180° , जहाँ L = जीवा की लम्बाई चाप की लम्बाई = θ/360° × वृत्त की परिधि चाप की लम्बाई = θ/360° × 2πr दो संकेन्द्रीय वृत्तों जिनकी त्रिज्याए R1, R2, (R1 ≥ R2) हो तो इन वृत्तों के बीच का क्षेत्रफल = π(r²1 – r²2)
आयतन के सूत्र:
घन का आयतन = भुजा³ घनाभ का आयतन = लम्बाई × चौड़ाई ×ऊंचाई बेलन का आयतन = πr²h खोखले बेलन का आयतन = π(r1² – r2²)h शंकु का आयतन = ⅓ πr2h शंकु के छिन्नक का आयतन = ⅓ πh[r1² + r2²+r1r2] गोले का आयतन = 4/3 πr3 अर्द्धगोले का आयतन = ⅔ πr3 गोलीय कोश का आयतन = 4/3 π(r13 – r23)
लंबाई के मात्रक: क्षेत्रफल और आयतन की माप (Units of length)
लंबाई मापने के लिए उपयोग की जाने वाली सबसे आम इकाइयाँ इस प्रकार हैं:
लंबाई के SI मात्रक :
10 मिलीमीटर= 1 सेंटीमीटर 10 डेसीमीटर= 1 मीटर 10 डेकामीटर= 1 हेक्टोमीटर 10 सेंटीमीटर= 1 डेसीमीटर 10 मीटर =1 डेकामीटर 10 हेक्टोमीटर =1 किलोमीटर
किलोमीटर (km)
हेक्टोमीटर (hm)
डेसीमीटर (dam)
मीटर (m)
डेसीमीटर (dm)
सेंटीमीटर(cm)
मिलीमीटर (mm)
1000
100
10
1
1/10
1/100
1/1000
क्षेत्रफल की माप :
100 वर्ग मिलीमीटर= 1 वर्ग सेंटीमीटर 100 वर्ग डेसीमीटर =1 वर्ग मीटर 100 वर्ग डेकामीटर= 1 वर्ग हेक्टोमीटर 100 वर्ग किलोमीटर =1 मिरिया मीटर 100 वर्ग सेंटीमीटर= 1 वर्ग डेसीमीटर 100 वर्ग मीटर =1 वर्ग डेकामीटर 100 वर्ग हेक्टोमीटर =1 वर्ग किलोमीटर
= 1 मीटर + 1 मीटर + 1 मीटर + 1 मीटर = 100 सेंटीमीटर + 100 सेंटीमीटर + 100 सेंटीमीटर + 100 सेंटीमीटर = 100 x 4 सेंटीमीटर या 4 x 100 सेंटीमीटर = 400 सेंटीमीटर
एक थान में 25 मीटर 45 सेन्टीमीटर कपड़ा आता है, तो ऐसे 8 थान में कितने मीटर कपड़ा आएगा?
झण्डी बनाने के लिए प्राची के पास 42 मीटर 70 सेन्टीमीटर रस्सी है। निशा के पास 38 मीटर 85 सेन्टीमीटर रस्सी है। बताओ दोनों के पास कुल कितनी लम्बी रस्सी है?
रेखा को अपने कमरे में 8 रस्सियाँ बांधनी है। यदि कमरे की लम्बाई 4 मीटर 16 से.मीटर है तो उसे कम से कम कितनी लम्बी रस्सी की आश्यकता होगी?
एक दुकानदार ने 32 मीटर 46 सेन्टीमीटर कपड़े के थान से 18 मीटर 50 सेन्टीमीटर कपड़ा बेच दिया। बताओ उसके पास अब कितना कपड़ा शेष रहा?
1 दिन = 23 घण्टा, 56 मिनट और 4.09 सेकण्ड = 24 घण्टा (लगभग)
1 वर्ष = 365 दिन, 5 घण्टे, 48 मिनट और 45.51 सेकण्ड
1 साधारण वर्ष = 365 दिन = 52 सप्ताह + 1 दिन = 1 विषम दिन
1 अधिवर्ष = 366 दिन= 52 सप्ताह +2 दिन= 2 विषम दिन
1 सप्ताह = 7 दिन
1 महीना = 28/29/30/31 दिन
100 वर्ष = 76 साधारण वर्ष + 24 अधिवर्ष = 76 x1+24 x 2 =76+48 = 124 विषम दिन = 17 सप्ताह + 5 दिन = 5 विषम दिन
फरवरी (साधारण वर्ष) = 28 दिन =0 विषम दिन
फरवरी (अधिवर्ष) = 29 दिन = । विषम दिन
जनवरी/मार्च/मई/जुलाई/अगस्त/अक्टूबर/दिसम्बर = 31 दिन
= 3 विषम दिन
अप्रैल/जून/सितम्बर/नवम्बर = 30 दिन= 2 विषम दिन
शताब्दी वर्षों को छोड़कर प्रत्येक चौथा वर्ष अधिवर्ष होता है. प्रत्येक चौथा शताब्दी वर्ष अधिवर्ष होता है.
शताब्दी वर्ष को छोड़कर प्रत्येक सामान्य वर्ष अंक 4 से पूर्णतः विभाजित नहीं होते हैं.
ऐसा शताब्दी वर्ष, जो 400 से पूर्णतः विभाजित हो जाता है, वह अधिवर्ष होता है.
किसी भी दिन में 7 दिन जोड़ने या घटाने से वही दिन प्राप्त होता है.
साधारण वर्ष का पहला और अन्तिम दिन समान होता है.
लीप वर्ष का पहला और अन्तिम दिन समान होता है अर्थात्अन्तिम दिन एक दिन बढ़ जाता है.
साधारण क्रमागत वर्षों में किसी निश्चित तिथि के दिन कीतुलना में उसके ठीक अगले वर्ष में उस तिथि को एक दिन बढ़ जाता है.
क्रमागत लीप वर्ष अर्थात् अगला वर्ष लीप वर्ष हो, तो किसी निश्चित तिथि का दिन पहले वर्ष के दिन की तुलना में दो दिन बढ़ जाता है.
किसी शताब्दी का प्रथम दिन सोमवार, मंगलवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार या शनिवार हो सकता है.
किसी शताब्दी का अन्तिम दिन मंगलवार, बृहस्पतिवार या शनिवार नहीं हो सकता है, परन्तु बुधवार, शुक्रवार तथा रविवार हो सकता है.
किसी अधिवर्ष में मार्च तथा नवम्बर की पहली तारीख को एक ही दिन होता है.
किसी अधिवर्ष में फरवरी तथा अगस्त की पहली तारीख को एक ही दिन होता है.
जुलाई एवं अगस्त महीने ही लगातार 31 दिन के होते है.
किसी साधारण वर्ष में निम्नलिखित माह के प्रथम दिन समान होते हैं-जनवरी-अक्टूबर, फरवरी-मार्च, नवम्बर, अप्रैल-जुलाई तथा सितम्बर-दिसम्बर.
किसी लीप वर्ष में निम्नलिखित माह के प्रथम दिन समान होते हैं-जनवरी-अप्रैल, जुलाई, फरवरी-अगस्त, मार्च-नवम्बर तथा सितम्बर-दिसम्बर. (यह नियम मार्च से दिसम्बर तक लागू होता है.)
भारत का वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से प्रारम्भ होकर 31 मार्च को समाप्त होता है.
उदाहरण 1. किसी वर्ष 20 नवम्बर को शुक्रवार हो, तो उसी वर्ष 30 नवम्बर को कौनसा दिन होगा ? हल : हर सात दिन बाद वही दिन होता है. 20+7 = 27. अतः 27 नवम्बर को भी शुक्रवार होगा. अतः 30 नवम्बर को 3 दिन बढ़ने पर सोमवार होगा.
दिन के 12 बजे का समय
दोपहर या मध्याह्न
दोपहर 12 बजे से मध्यरात्रि 12 बजे तक का समय
अपराह्न (p.m.)
रात्रि के 12 बजे का समय
मध्यरात्रि
मध्यरात्रि 12 बजे से दोपहर 12 बजे तक का समय
पूर्वाह्न (a.m.)
अभ्यास
नेहा का विद्यालय 7:00 बजे पूर्वाह्न में लगता है और 11:00 बजे पूर्वाह्न में बंद होता है। बताओ विद्यालय कुल कितने घण्टे लगता है?
एक बस अंबिकापुर से 4:00 बजे पूर्वाह्न में चलती है और 7 घण्टे में जशपुर पहुँचती है। बताओ बस किस समय जशपुर पहुँचती है?
एक नाटक अपराह्न 8:00 बजे शुरू हुआ और अपराह्न 11:00 बजे समाप्त हुआ। नाटक कितने समय तक चला?
सुनीति अपना गृह कार्य 6:20 बजे अपराहन में शुरू करके 8:20 बजे अपराह्न में समाप्त किया। बताओ उसे गृह कार्य करने में कितना समय लगा?
पूर्ण संख्या : पूर्ण संख्याओं पर संक्रियाएँ (Whole Number)
प्राकृतिक संख्याओं (1, 2, 3, 4, ……) में शून्य (0) को सम्मिलित करने पर जो संख्याएँ प्राप्त होती हैं, पूर्ण संख्याएँ कहलाती हैं। पूर्ण संख्याओं को W से प्रदर्शित करते हैं। या फिर इसे इस तरह से भी परिभाषित किया जा सकता हैं “शून्य ‘0’ से लेकर अनंत तक की संख्याओं को पूर्ण संख्याएँ कहते हैं।” उदाहरण: 0, 1, 2, 3, 4, ……। ∞ आदि
स्मरणीय बिंदु:
शून्य (0) सबसे छोटी एवं पहली पूर्ण संख्या है।
सभी प्राकृतिक संख्याएँ पूर्ण-संख्याएँ हैं।
चूंकि प्रत्येक पूर्ण संख्या से बड़ी पूर्ण संख्याएँ होती हैं अतः कोई भी पूर्ण संख्या सबसे बड़ी पूर्ण संख्या नहीं होती है।
पूर्ण संख्याओं के गुण
प्राकृत संख्या के सभी गुण पूर्ण संख्याओं के लिए भी सही हैं।
सबसे छोटी पूर्ण संख्या 0 है।
संख्या रेखा पर 0 से दाहिने ओर क्रमशः पूर्ण संख्या बढ़ते क्रम में दिखायी गयी है। अर्थात् 0+1 = 1,1+1 =2, … , 101 + 1 = 102, 102 + 1 = 103, 103 + 1 = 104, … , इत्यादि।
संख्या रेखा पर दाहिने ओर से बाँए ओर का क्रम घटते क्रम में है, जैसे ….. 4,3,2,1,0
सबसे बड़ी पूर्ण संख्या नहीं दिखाई जा सकती। क्योंकि यदि आप कोई बड़ी से बड़ी संख्या सोचते हैं तो उसमें एक जोड़ कर उसकी अगली बड़ी संख्या प्राप्त की जा सकती है। जो उस संख्या की परवर्ती संख्या होगी।
योग का संवरक गुण:
जब किसी दो पूर्ण संख्याओं का आपस में जोड़ा जाता हैं तो प्राप्त योगफल सदैव पूर्ण संख्या होता है, यह पूर्ण संख्याओं के योग का संवरक प्रगुण है।
उदाहरणार्थ:-11 + 9 = 20 इन दोनों संख्याओं का योग 20 एक पूर्ण संख्या है।
योग का क्रम-विनिमेय गुण:
जब किसी दो पूर्ण संख्याओं को जोड़ा जाता हैं तो उनके योगफल पर संख्याओं के क्रम का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, इसे ही योग का क्रम-विनिमेय प्रगुण है।
उदाहरणार्थ: 14 + 33 = 47 33 + 14 = 4
योग का तत्समक अवयव:
किसी पूर्ण संख्या में यदि शून्य को जोड़ा जाता है तो योगफल वही संख्या प्राप्त होती है। इसी कारण शून्य को पूर्ण संख्याओं में योग का तत्समक अवयव कहते हैं।
शून्य को पूर्ण संख्याओं के लिए योज्य तत्समक भी कहते हैं। उदाहरणार्थ: 3 + 0 = 0 + 3 = 3
योग का साहचर्य गुण:
तीन पूर्ण संख्याओं को क्रम में जोड़ते समय किन्हीं दो पूर्ण संख्याओं का समूह पहले बना लेने से योगफल में अंतर नहीं पड़ता है, यह योग संक्रिया का साहचर्य प्रगुण है।
गणना करते समय 10 संकेतों 1,2,3,4,5,6,7,8,9,0 का उपयोग किया जाता है तथा गणना का कार्य 1 से प्रारंभ होता है। इन्हीं अंकों को मिलाकर प्राकृत संख्याएँ लिखी जाती हैं। गणना के लिए जिन संख्याओं का उपयोग किया जाता है उन्हें प्राकृत संख्या(Natural Number) कहते हैं। प्राकृत संख्याओं के समूह को N से दर्शाते हैं। अर्थात् प्राकृत संख्या (N) = 1,2,3, …. आदि।
सबसे छोटी प्राकृत संख्या 1 है।
प्राकृतिक संख्याओं का फार्मूला
प्रथम n प्राकृतिक संख्याओं का औसत = (n+1) /2
लगातार n तक विषम प्राकृतिक संख्या का योग = (n/2+1)
प्रथम n प्राकृतिक सम संख्याओं का औसत = n+1
प्रथम n प्राकृतिक विषम संख्याओं का औसत = n
लगातार n तक विषम प्राकृतिक संख्याओं का औसत = (n+1) /2
सबसे बड़ी प्राकृत संख्या कौन-सी है?
प्राकृत संख्या 1 से अनंत तक होती है जिसमे सबसे छोटी संख्या ज्ञात करना संभव है किंतु बड़ी संख्या मुस्किल है. यदि कोई संख्या दिया हो, तो बड़ी संख्या ज्ञात किया जा सकता है. अतः सबसे बड़ी प्राकृत संख्या स्व अनंत होता है.
सबसे छोटी प्राकृतिक संख्या कौन सी है?
प्राकृत संख्या 0 से बड़ी और 1 से शुरू होती है. अर्थात, सबसे छोटी प्राकृत संख्या 1 होता है.
0 सबसे छोटी प्राकृत संख्या है?
वास्तव में, 0 से छोटी कोई संख्या नही होती है. क्योंकि, प्राकृत संख्या तो 1 से शुरू ही होती है.
क्या सभी प्राकृत संख्या पूर्ण संख्या है?
0 से अनंत तक की सभी प्राकृत संख्या पूर्ण संख्या होती है. अर्थात, सभी धनात्मक प्राकृत संख्याएँ पूर्ण संख्या होती है.
क्या कोई ऐसी पूर्ण संख्या है जो प्राकृतिक संख्या नहीं है?
हाँ, 0 एक ऐसी पूर्ण संख्या है जो प्राकृतिक संख्या नही है. क्योंकि, प्राकृत संख्या 1 से शुरू होती है.
प्राकृत संख्याओं के गुण (Properties of Natural numbers)
दो प्राकृत संख्याओं का आपस में योग करने से या गुणा करने पर प्राकृत संख्या ही प्राप्त होती है।
दो प्राकृत संख्याओं का आपस में व्यवकलन (घटाना) या भाग करने से सदैव प्राकृत संख्या प्राप्त नही होती है।
दो प्राकृत संख्याओं को किसी भी क्रम में जोड़ सकते हैं। दो प्राकृत संख्याओं को किसी भी क्रम में गुणा कर सकते हैं। अर्थात प्राकृत संख्याओं के लिए क्रमविनिमय का नियम योग व गुणन संक्रिया में लागू होता है जबकि घटाने एवं भाग संक्रिया पर लागू नही होता।
प्राकृत संख्याओं के लिए साहचार्य नियम योग एवं गुणा संक्रिया में लागू होता है जबकि घटाने एवं भाग संक्रिया में लागू नहीं होता।
प्राकृत संख्याओं के लिए गुणा का योग व अन्तर पर बंटन (वितरण) होता है।
किसी प्राकृत संख्या मे एक से गुणा या भाग करने पर संख्या का मान नही बदलता।
इस प्रकार a,b,c तीन प्राकृत संख्याओं के लिए
(a+b) एक प्राकृत संख्या है।
(axb) एक प्राकृत संख्या है।
a-b सदैव एक प्राकृत संख्या हो आवश्यक नही है।
a+b सदैव एक प्राकृत संख्या हो, जरूरी नही है।
Questions
41600 तथा 41006 में कौन सी संख्या बड़ी है?
1 से 100 के बीच की संख्याएँ लिखने के लिए कितने बार 9 का प्रयोग करना पड़ता है?
चार अंकों की सबसे बड़ी प्राकृत संख्या तथा तीन अंकों की सबसे छोटी प्राकृत संख्या के बीच का अंतर निकालिए ?
ये सभी संख्याएँ ऋणात्मक पूर्णांक के अंतर्गत आती हैं।
3. उदासीन पूर्णांक
ऐसा पूर्णांक जो न तो कोई धनात्मक पूर्णांक है और न ही ऋणात्मक पूर्णांक है। उदासीन पूर्णांक कहलाता हैं यह शून्य पूर्णांकों के अंतर्गत आता हैं।
उदाहरण :- 0
पूर्णांक संख्या के महत्वपूर्ण तथ्य
संख्या 0, 1, -1, 2, -2, 3, -3, ……….…….∞ पूर्णांक संख्या कहलाती हैं।
संख्या +1, +2, +3, +4, ……………∞ धनात्मक पूर्णांक कहलाती हैं।
संख्या -1, -2, – 3, – 4, ……………….∞ पूर्णांक कहलाती हैं।
संख्या 0, + 1, + 2, + 3, + 4, ऋणेत्तर पूर्णांक कहलाते हैं।
सभी धनात्मक पूर्णांक संख्या रेखा पर 0 के दायीं ओर तथा सभी ऋणात्मक पूर्णांक संख्या रेखा पर 0 के बायीं ओर स्थित होते हैं।
ऋणेत्तर पूर्णांक पूर्ण संख्या ही कहलाती हैं।
दो पूर्णांक जिनका योग शून्य हो एक-दूसरे के योज्य प्रतिलोम कहलाते हैं। ये एक दूसरे के ऋणात्मक भी कहलाते हैं।
पूर्णांकों का जोड़ना, घटाना, गुणा एवं भाग
दो पूर्णांकों के योग का नियम
(-) + (-) = (+)
(+) + (+) = (+)
(-) + (+) = (-)
(+) + (-) = (-)
समान चिन्ह वाले पूर्णांक का जोड़ :-
विभिन्न चिन्ह वाले पूर्णांकों का जोड़ :-
दो पूर्णांकों को घटाने के नियम
(-) – (-) = (-)
(+) – (+) = (-)
(-) – (+) = (+)
(+) – (-) = (+)
समान चिन्ह वाले पूर्णांकों को घटाना :-
विभिन्न चिन्ह वाले पूर्णांकों को घटाना :-
दो पूर्णांकों के गुणनफल का नियम
(-) × (-) = (+)
(+) × (+) = (+)
(-) × (+) = (-)
(+) × (-) = (-)
दो पूर्णांकों के विभाजन के नियम
(-) ÷ (-) = (+)
(+) ÷ (+) = (+)
(-) ÷ (+) = (-)
(+) ÷ (-) = (-)
शून्य के दाँईं ओर प्राकृत संख्याएँ हैं और बाँयी ओर ऋणात्मक संख्याएँ। धनात्मक संख्याएँ, ऋणात्मक संख्याएँ तथा शून्य को मिलाकर पूर्णांक बनते हैं। (I) = { … …………..- 3,-2,1,0,1,2,3,4,5 ………… } आदि।
जिस प्रकार सबसे बड़ी पूर्ण संख्या नहीं है उसी प्रकार सबसे बड़ी पूर्णांक भी नहीं है। क्या आप सबसे छोटी पूर्णांक सोच सकते हैं ?
धनात्मक पूर्णांकों का योगफल सदैव धनात्मक पूर्णांक तथा दो ऋणात्मक पूर्णांकों का योगफल सदैव ऋणात्मक पूर्णांक होता है।
एक धनात्मक एवं एक ऋणात्मक पूर्णांक का योगफल धनात्मक पूर्णांक होगा यदि धनात्मक पूर्णांक का आंकिक मान अधिक हो तथा योगफल ऋणात्मक होगा यदि ऋणात्मक पूर्णांक का आंकिक मान अधिक हो।
पूर्णांकों को जोड़ने में उन सभी गुणों का पालन होता है। जिनका पूर्ण संख्याएँ पालन करती है। दो पूर्णांकों का योग एक पूर्णांक ही होगा।
सभी पूर्णांकों के योग में क्रम विनिमय नियम लागू होता है।
दो पूर्णांकों का योग हमेशा एक पूर्णांक संख्या होती है, यही पूर्णांकों के योग के लिए संवरक नियम है।
पूर्णांकों में शून्य जोड़ने पर उनके मान में कोई परिवर्तन नहीं आता है।
योज्य प्रतिलोम / योज्य तत्समक
5 में क्या जोड़े कि शून्य प्राप्त हो? अर्थात् 5+ (-5) = 0 (योज्य तत्समक) इसी प्रकार (-7) में क्या जोड़े कि शून्य प्राप्त हो? अर्थात् (-7) + (+7) =0 (योज्य तत्समक) यहाँ (-5) योज्य प्रतिलोम है 5 का तथा + 7 योज्य प्रतिलोम है (-7) का। अतः किसी संख्या का योज्य प्रतिलोम वह संख्या है जिसे उस संख्या के साथ जोड़ने पर योज्य तत्समक (शून्य) प्राप्त होता है। संख्या + संख्या का योज्य प्रतिलोम = योज्य तत्समक
पूर्णांक संख्या से संबंधित प्रश्न उत्तर
Q.1 पूर्णांकों के युग्मों के योग ज्ञात कीजिए?
(1). -6, – 2 (a). 10 (b). -10 (c). 4 (d). -4
हल:- -6 और – 4 दोनों के चिन्ह ऋण हैं। अतः -6 + (-4) = -(6 + 4) Ans. -10
(2). +8, – 2 (a). 10 (b). -10 (c). 6 (d). -6
हल:- +8 और -2 के चिन्ह विपरीत हैं। अतः +8 + (-2) = 8 – 2 Ans. 6
सम संख्या: वे संख्याएँ जो 2 से पूर्णतः विभाजित होती हैं सम संख्या कहलाती है। जैसे: 2, 4, 6, 8, 10, 12 विषम संख्या: वे संख्याएँ जो 2 से पूर्णतः विभाजित नहीं होती हैं विषम संख्या कहलाती है। जैसे: 1, 3, 5, 7, 9, 11 … इत्यादि।
सम और विषम संख्या का योगफल
सम संख्या (Even Number) और विषम संख्या (Odd Number) के योगफल से संबंधित नियम सरल हैं। इसे समझने के लिए निम्नलिखित फार्मूले उपयोग किए जा सकते हैं:
1. सम + सम = सम
दो सम संख्याओं का योगफल हमेशा एक सम संख्या होती है।
उदाहरण: 4+6=10 (सम संख्या)
2. विषम + विषम = सम
दो विषम संख्याओं का योगफल हमेशा एक सम संख्या होती है।
उदाहरण: 3+5=8 (सम संख्या)
3. सम + विषम = विषम
एक सम और एक विषम संख्या का योगफल हमेशा एक विषम संख्या होती है।
उदाहरण: 4+5=9 (विषम संख्या)
लगातार सम और विषम संख्याओं के योग
लगातार सम संख्याओं और लगातार विषम संख्याओं के योग के लिए निम्नलिखित सूत्र उपयोग किए जाते हैं:
1. लगातार दो सम संख्याओं का योगफल:
लगातार दो सम संख्याओं के बीच अंतर 2 होता है।
यदि पहली सम संख्या x है, तो दूसरी सम संख्या x+2 होगी।
योगफल = x+(x+2)=2x+2
उदाहरण: 6 और 8 के लिए: 6+8=2(6)+2=12+2=14
2. लगातार दो विषम संख्याओं का योगफल:
लगातार दो विषम संख्याओं के बीच भी अंतर 2 होता है।
यदि पहली विषम संख्या y है, तो दूसरी विषम संख्या y+2 होगी।
योगफल = y+(y+2)=2y+2
उदाहरण: 7 और 9के लिए: 7+9=2(7)+2=14+2=16
3. लगातारn सम संख्याओं का योगफल:
यदि लगातार n सम संख्याओं का योग निकालना है, तो इसका फार्मूला होगा:
योगफल = n(n+1)
उदाहरण: पहली 3 सम संख्याओं (2, 4, 6) का योग: 3(3+1)=3×4=12
4. लगातारn विषम संख्याओं का योगफल:
यदि लगातार n विषम संख्याओं का योग निकालना है, तो इसका फार्मूला होगा:
योगफल = n2
उदाहरण: पहली 3 विषम संख्याओं (1, 3, 5) का योग: 32=9
सारांश:
लगातार दो सम या विषम संख्याओं का योग 2x+2 के रूप में होता है।
लगातार n सम संख्याओं का योग n(n+1) होता है।
लगातार n विषम संख्याओं का योग n2 होता है।
5. लगातार n प्राकृत संख्याओं का योगफल:
लगातार प्राकृत संख्याओं (Natural Numbers) का योग निकालने के लिए एक सामान्य सूत्र होता है, जिसे समीकरण के रूप में लिखा जा सकता है:
योगफल = n(n+1)/2
जहाँ n वह संख्या है, जहाँ तक योग निकालना है।
उदाहरण:
1. यदि आपको 1 से 10 तक की प्राकृत संख्याओं का योग निकालना है, तो n = 10 होगा:
योगफल = 10(10+1)/2
10 x 11/2 = 110/2 = 55
2. यदि आपको 1 से 20 तक की प्राकृत संख्याओं का योग निकालना है, तो n = 20 होगा:
योगफल = 20(20+1)/2 = 20 x 21/2 = 420/2 = 210
सारांश:
पहली n प्राकृत संख्याओं का योग निकालने के लिए फार्मूला है:
योगफल = n(n+1)/2
इस फार्मूले का उपयोग किसी भी संख्या तक की प्राकृत संख्याओं का योग निकालने के लिए किया जा सकता है।
यहाँ सम और विषम संख्याओं, उनके अंतर, लगातार योगफल, और प्राकृत संख्याओं के लगातार योगफल से संबंधित MCQs दिए गए हैं:
MCQ:
1. सम और विषम संख्या का अंतर:
यदि 12 और 7 का अंतर निकाला जाए, तो परिणाम क्या होगा?
a) 5 (सम संख्या)
b) 6 (सम संख्या)
c) 5 (विषम संख्या)
d) 4 (सम संख्या)
उत्तर: c) 5 (विषम संख्या)
किसी विषम संख्या से सम संख्या घटाने पर परिणाम कैसा होगा?
a) हमेशा विषम संख्या
b) हमेशा सम संख्या
c) कभी विषम कभी सम
d) हमेशा शून्य
उत्तर: a) हमेशा विषम संख्या
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
a) दो सम संख्याओं का अंतर विषम होता है।
b) दो विषम संख्याओं का अंतर विषम होता है।
c) विषम संख्या और सम संख्या का अंतर विषम होता है।
d) सम संख्या और विषम संख्या का अंतर सम होता है।
उत्तर: c) विषम संख्या और सम संख्या का अंतर विषम होता है।
2. लगातार सम और विषम संख्याओं का योगफल:
लगातार दो सम संख्याओं का योग निकालने का फार्मूला क्या है?
a) 2x
b) 2x+1
c) 2x+2
d) x+2
उत्तर: c) 2x+2
यदि x=8 हो, तो लगातार दो सम संख्याओं का योगफल क्या होगा?
a) 16
b) 18
c) 20
d) 22
उत्तर: b) 18
लगातार दो विषम संख्याओं का योगफल क्या होगा?
a) 2x+2
b) 2x+1
c) 2x
d) x+1
उत्तर: a) 2x+2
लगातार विषम संख्याओं 11 और 13 का योग क्या होगा?
a) 22
b) 24
c) 26
d) 28
उत्तर: b) 24
3. लगातार प्राकृत संख्याओं का योगफल:
पहली n प्राकृत संख्याओं का योगफल निकालने का फार्मूला क्या है?
a) n(n+1)/2
b) n(n+2)/2
c) n(n+1)
d) n(n+2)
उत्तर: a) n(n+1)/2
पहली 10 प्राकृत संख्याओं का योगफल क्या होगा?
a) 50
b) 55
c) 60
d) 65
उत्तर: b) 55
लगातार n विषम संख्याओं का योगफल क्या होता है?
a) n(n+1)
b) n2
c) 2n
d) 2n+1
उत्तर: b) n2
पहली 5 विषम संख्याओं का योगफल क्या होगा?
a) 25
b) 15
c) 9
d) 36
उत्तर: a) 25
4. प्राकृत संख्याओं का लगातार योगफल:
यदि पहली 7 प्राकृत संख्याओं का योग निकाला जाए, तो परिणाम क्या होगा?
a) 21
b) 28
c) 15
d) 35
उत्तर: b) 28
1 से 100 तक की प्राकृत संख्याओं का योगफल क्या होगा?
गणित में, दो या दो से अधिक संख्याओं या पदों को जोड़ने के बाद योग को परिणाम या उत्तर के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यहां, 5 और 7 जोड़ हैं और 12, 5 और 7 का योग है।
योग संकेतन
जब हम संख्याओं को जोड़ते हैं तो प्लस चिह्न (+) का उपयोग किया जाता है। योग जोड़ से प्राप्त परिणाम का नाम है। हम योग को प्रतीक ∑ (सिग्मा) द्वारा निरूपित कर सकते हैं।
अंकों का योग
एक अंक वाली संख्याओं का योग
दो अंकीय संख्याओं का योग
चरण 1: आसानी से समझने के लिए अंकों के बीच पर्याप्त स्थान देकर कॉलम में दिए गए नंबर लिखें।
चरण 2: इकाई अंक को एक साथ जोड़ें, और कैरी (यदि कोई हो) को स्थानांतरित करें। अंततः, यह इकाई स्थान पर मौजूद संख्याओं का योग देता है।
चरण 3: दहाई अंक जोड़ें और पिछले चरण से कैरी करें (यदि कोई हो) और कैरी को स्थानांतरित करें। यह दहाई के स्थान पर संख्याओं का योग देता है।
चरण 4: इस प्रकार, अंतिम पंक्ति के अंक दी गई संख्याओं का योग दर्शाते हैं।
तीन अंकों की संख्याओं का योग
चरण 1: आसानी से समझने के लिए अंकों के बीच पर्याप्त स्थान देकर कॉलम में दिए गए नंबर लिखें।
चरण 2: इकाई अंक को एक साथ जोड़ें, और कैरी (यदि कोई हो) को स्थानांतरित करें। अंततः, यह इकाई स्थान पर मौजूद संख्याओं का योग देता है।
चरण 3: दहाई अंक जोड़ें और पिछले चरण से कैरी करें (यदि कोई हो) और कैरी को स्थानांतरित करें। यह दहाई के स्थान पर संख्याओं का योग देता है।
चरण 4: सैकड़ों स्थानों के अंकों को जोड़ें, और पिछले चरण से संख्या (यदि कोई हो) ले लें। इस प्रकार, यह परिणाम के सैकड़ों या हजारों या दोनों (योग के आधार पर) प्रदान करता है।
चरण 5: इस प्रकार, अंतिम पंक्ति के अंक दी गई संख्याओं का योग दर्शाते हैं।
संख्या के योगफल संबंधित सूत्र-
प्रथम n प्राकृतिक संख्याओं का योग
योग संख्याओं के अनुक्रम के योग या योग का परिणाम है। इस प्रकार, हम प्रथम n प्राकृतिक संख्याओं के अनुक्रम का योग ज्ञात कर सकते हैं।
पहली n प्राकृतिक संख्याएँ हैं:
1, 2, 3, 4,…., n
यह एक AP है जिसका पहला पद a = 1 और अंतिम पद l = n है।
हम जानते हैं कि, AP के n पदों का योग, जब पहला और अंतिम पद ज्ञात हो, इस प्रकार दिया जाता है:
पहले n प्राकृतिक संख्याओं का योग n(n + 1)/2 द्वारा दिया जाता है।
विषम संख्याओं का योग सूत्र
विषम संख्याओं का क्रम है:
1, 3, 5, 7, 9, 11,…..
यह एक AP है जिसका पहला पद a = 1 और दूसरा पद a + d = 3 है।
सार्व अंतर = d = 3 – 1 = 2
प्रथम n विषम संख्याओं का योग है:
विषम संख्या सूत्र का योग n 2 है ।
सम संख्याओं का योग सूत्र
सम संख्याओं का क्रम है:
2, 4, 6, 8, 10,…..
यह एक AP है जिसका पहला पद a = 2 और दूसरा पद a + d = 4 है।
सार्व अंतर = d = 4 – 2 = 2
प्रथम n विषम संख्याओं का योग है:
सम संख्याओं के योग का सूत्र n(n + 1) है।
n प्राकृतिक संख्याओं के वर्गों का योग
n प्राकृतिक संख्याओं के वर्गों के योग का सूत्र इस प्रकार दिया गया है:
Σn 2 = [n(n+1)(2n+1)]/6
इस सूत्र का उपयोग पहले n धनात्मक पूर्णांकों के वर्गों का योग ज्ञात करने के लिए किया जाता है।
n प्राकृतिक संख्याओं के घनों का योग
n प्राकृतिक संख्याओं के घनों के योग का सूत्र है:
∑n 3 = [n(n + 1)/2] 2
योग पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 1: बैग A में 10 गेंदें हैं और बैग B में 17 गेंदें हैं। गेंदों की कुल संख्या ज्ञात कीजिए।
समाधान:
बैग A में गेंदों की संख्या = 10
बैग B में गेंदों की संख्या = 17
गेंदों की कुल संख्या = 10 + 17 = 27
प्रश्न 2: गौतम के पास 2 रुपये के पांच सिक्के हैं, और कमल के पास 10 एक रुपये के सिक्के हैं, जबकि वीना के पास 5 रुपये के सात सिक्के हैं। तो गौतम, कमल और वीना के पास कुल कितनी धनराशि है?
समाधान:
दी गई जानकारी के मुताबिक,
व्यक्ति
मात्रा
गौतम
5 × रु. 2 = रु. 10
कमल
10 × रु. 1 = रु. 10
वीना
7 × रु. 5 = रु. 35
धनराशि का योग = रु. 10 + रु. 10 + रु. 35 = रु. 55
प्रश्न 3: 1 से 100 तक की संख्याओं का योग कितना होता है?
1 से 100 तक की संख्याओं के योग की गणना इस प्रकार की जा सकती है: n = 100 100 प्राकृतिक संख्याओं का योग = [100(100 + 1)/2] = 50 × 101 = 5050
भाज्य अभाज्य और सहभाज्य संख्या / Divisible, Prime and Composite numbers
भाज्य संख्या (Composite Number)
परिभाषा: वह संख्या जो 1 और स्वयं के अलावा अन्य संख्याओं से भी विभाजित हो सकती है, उसे भाज्य संख्या कहा जाता है। अर्थात, जिसके एक से अधिक गुणनखण्ड (factors) होते हैं।
उदाहरण:
4 (गुणनखण्ड: 1, 2, 4)
6 (गुणनखण्ड: 1, 2, 3, 6)
9 (गुणनखण्ड: 1, 3, 9)
इन सभी संख्याओं के 1 और स्वयं के अलावा अन्य गुणनखण्ड हैं, इसलिए ये भाज्य संख्याएँ हैं।
अभाज्य संख्या (Prime Number)
परिभाषा: वह संख्या जो केवल 1 और स्वयं से विभाजित हो सके, उसे अभाज्य संख्या कहते हैं। अर्थात, जिसके केवल दो ही गुणनखण्ड होते हैं – 1 और वह स्वयं।
उदाहरण:
2 (गुणनखण्ड: 1, 2)
3 (गुणनखण्ड: 1, 3)
5 (गुणनखण्ड: 1, 5)
7 (गुणनखण्ड: 1, 7)
ये संख्याएँ केवल 1 और स्वयं से विभाजित होती हैं, इसलिए ये अभाज्य संख्याएँ हैं।
मुख्य अंतर:
अभाज्य संख्याएँ: जिनके केवल दो ही गुणनखण्ड होते हैं (1 और स्वयं), जैसे 2, 3, 5, 7, 11 आदि।
भाज्य संख्याएँ: जिनके एक से अधिक गुणनखण्ड होते हैं, जैसे 4, 6, 8, 9, 12 आदि।
एक महत्वपूर्ण बिंदु:
1 न तो अभाज्य है और न ही भाज्य, इसे विशेष संख्या माना जाता है।
भाज्य संख्या
1 to 100 के बीच कूल 74 संख्याएँ ऐसी है जो की भाज्य संख्याएँ है। भाज्य संख्या 1 से 100 तक की पूरी लिस्ट निचे दी गई है-
4
6
8
9
10
12
14
15
16
18
20
21
22
24
25
26
27
28
30
32
33
34
35
36
38
39
40
42
44
45
46
48
49
50
51
52
54
55
56
57
58
60
62
63
64
65
66
68
69
70
72
74
75
76
77
78
80
81
82
84
85
86
87
88
90
91
92
93
94
95
96
98
99
100
अभाज्य संख्या ( रूढ़ संख्या )
वे 1 से बड़ी प्राकृतिक संख्याएँ, जो स्वयं और 1 के अतिरिक्त और किसी प्राकृतिक संख्या से विभाजित नहीं होतीं, उन्हें ‘अभाज्य संख्या’ कहते हैं।
अभाज्य संख्या के गुण
0 और 1 अभाज्य संख्याएँ नही है।
2 को छोड़कर सभी अभाज्य संख्याएँ विषम होती हैं।
1 बड़ी पूर्ण संख्याएँ अभाज्य संख्याएँ कहलाती है।
अभाज्य संख्याएँ में केवल और केवल दो गुणनखंड होते है।
अभाज्य संख्याएँ ज्ञात करने की विधि को गुणनखंड विधि कहते है।
अभाज्य संख्याएँ हमेशा 0 और 1 से बड़ी होती है।
1 से बड़ी सभी अभाज्य संख्या 1 से विभाजित हो सकती है।
अभाज्य संख्या 1 और स्वयं के अतिरिक्त किसी अन्य संख्या से विभाजित नही हो सकती है।
1 से 200 तक अभाज्य संख्या
2
31
73
127
179
3
37
79
131
181
5
41
83
137
191
7
43
89
139
193
11
47
97
149
197
13
53
101
151
199
17
59
103
157
211
19
61
107
163
223
23
67
109
167
227
29
71
113
173
229
अभाज्य संख्याओं के प्रश्न एवं हल
सबसे छोटी अभाज्य संख्या कौनसी हैं?
A. 1 B. 0 C. 2 D. 4
उत्तर:- सबसे छोटी अभाज्य संख्या 2 हैं।
सबसे छोटी अभाज्य संख्या लिखिए जो 9 से बड़ी हो।
A. 11 B. 13 C. 17 D. 23
उत्तर:- 9 से बड़ी अभाज्य संख्याएँ 11, 13, 17, 19, 23 हैं। इनमें सबसे छोटी संख्या 11 हैं।
सबसे बड़ी अभाज्य संख्या लिखिए जो 18 से छोटी हो।
A. 17 B. 15 C. 13 D. 9
उत्तर:- 18 से छोटी अभाज्य संख्याएँ 2, 3, 5, 7, 11, 13, 17 हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या 17 हैं।
20 से छोटी उन अभाज्य संख्याओं के जोड़े लिखिए जिनका अंतर 2 हो?
A. (3, 5), (5, 7), (11, 13), (17, 19) B. (2, 3), (5, 9), (7, 9) (9, 11) C. (1, 3), (5, 7), (7, 9) (19, 19) D. (3, 5), (5, 7), (7, 9) (17, 19)
हल:- प्रश्ननानुसार, 20 से छोटी अभाज्य संख्याएँ – 2, 3, 5, 7, 11, 13, 17, 19 20 से छोटी अभाज्य संख्याओं के बीच 2 का अंतर उत्तर:- (3, 5), (5, 7), (11, 13), (17, 19)
ऐसी 50 से छोटी अभाज्य संख्याओं के जोड़े लिखिए जिनका अंतर 1 हो?
A. (2, 3) B. (3, 5) C. (11, 13) D. (17, 19)
50 से छोटी अभाज्य संख्याएँ उत्तर:- 2, 3, 5, 7, 11, 13, 17, 19, 23, 29, 31, 37, 41, 43, 47 50 से छोटी अभाज्य संख्याओं के बीच 1 का अंतर (3 – 2 ) = 1
30 और 40 के बीच की अभाज्य संख्याएँ लिखिए?
A. 1 B. 2 C. 3 D. 4
उत्तर:- 30 और 40 के बीच की अभाज्य संख्याएँ – 31, 37 हैं।
संख्याओं को लिखने के लिए जिसकी आवश्यकता होती है उसे अंक कहते हैं। गणित में कुल 10 अंक (0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9) का प्रयोग किया जाता है। सबसे बड़ा अंक 9 तो सबसे छोटा अंक 0 होता है।
संख्या :-
अंको के मिलने से बनता है वह संख्या होता है। संख्या में एक से अधिक अंक होते है। संख्या विभिन्न अंको का बनता है। जैसे 1 और 0 अंक के प्रयोग 10 संख्या बना सकते हैं।
देवनागरी अंक
अंको से संख्या बनाना
1. किसी भी अंक के बड़े-छोटे अंक बनाने के लिए हम ट्रिक जानते है। बड़े अंक बनाने के लिए, जितने भी अंक का पूछा गया उतना 9 लिख देते है तो उस अंक का सबसे बड़ा अंक बन जाता है जैसे चार अंक सबसे बड़ा अंक 9999।
इसी प्रकार , किसी भी अंक के सबसे छोटे अंक बनाने के लिए 1 के बाद 0 लगाते जाते है तो छोटा अंक बन जाता है। जैसे हम चार अंको का छोटा अंक बनाते है तो 1000।
2. किसी भी अंक के प्रयोग करके बड़ा अंक बनाते है तो अंको को अवरोही क्रम (घटते क्रम) में लिख देने से उस अंक के बड़ी संख्या बन जाती है।
जैसे :-1, 9 , 0, 4 के प्रयोग से बड़ी संख्या बनाते है तो अवरोही क्रम में लिखते है 9410 अतः इस अंक के प्रयोग करके नौ हजार चार सौ दस ही सबसे बड़ी संख्या बनेगी।
3. किसी भी अंक के प्रयोग करके छोटे अंक बनाने के लिए हम अंको को आरोही क्रम में लिखते हैं। ध्यान रहे 0 को पहली नही लिख सकते है उसे दूसरे स्थान में लिखा जाता है।
जैसे:- हम 4, 0, 3, 8 के प्रयोग से सबसे छोटी संख्या बनाते हैं तो हम 3048 लिखते है। हम 0 को पहले नही लिख सकते क्योंकि किसी भी संख्या के पहले 0 का महत्व नही होता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
संख्या को हमेशा बाएँ से दाएँ पढ़ना चाहिए ।
शून्य का स्थानीय मान सभी स्थानों पर शून्य ही होता है।
किसी भी संख्या को लिखते समय उसे खण्डों में बाँटते हैं। अलग खण्डों के लिए अल्प-विराम लगाते हैं।
संख्याओं में अल्प विराम बाएँ से दाएँ लगाते हैं।
किसी संख्या के ठीक पहले की संख्या पूर्ववर्ती संख्या कहलाती है ।
किसी संख्या के ठीक बाद की संख्या परवर्ती संख्या कहलाती है।
दो अंकों की सबसे बड़ी संख्या के ठीक बाद तीन अंकों वाली सबसे छोटी संख्या आती है।
तीन अंकों वाली सबसे छोटी संख्या के ठीक पहले दो अंकों वाली सबसे बड़ी संख्या आती है।
आरोही क्रम-छोटी संख्या से शुरू करके क्रम से बड़ी संख्या लिखते हैं।
अवरोही क्रम-बड़ी संख्या से शुरू करके क्रम से छोटी संख्या को लिखते हैं।
भारतीय गणना प्रणाली (Indian Numbering System) एक परंपरागत गणना प्रणाली है जो भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक रूप से उपयोग की जाती है। यह प्रणाली विशेष रूप से बड़ी संख्याओं को समूहित करने के तरीके में अद्वितीय है। यहाँ पर संख्या को अलग-अलग समूहों में विभाजित किया जाता है, जैसे लाख, करोड़, अरब, आदि।
भारतीय गणना प्रणाली (Indian Number System)
भारतीय गणना प्रणाली में स्थानिक मूल्य (Place Value) निम्नलिखित है:
एकक (Units): 1
दहाई (Tens): 10
सैकड़ा (Hundreds): 100
हजार (Thousands): 1,000
दस हजार (Ten Thousands): 10,000
लाख (Lakhs): 1,00,000
दस लाख (Ten Lakhs): 10,00,000
करोड़ (Crores): 1,00,00,000
दस करोड़ (Ten Crores): 10,00,00,000
भारतीय गणना प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ:
स्थानिक मूल्य (Place Value): प्रत्येक अंक का मान उसकी स्थिति के अनुसार बदलता है, जैसे संख्या 52,43,876 में:
6 एकक (Units)
7 दहाई (Tens)
8 सैकड़ा (Hundreds)
3 हजार (Thousands)
4 दस हजार (Ten Thousands)
2 लाख (Lakhs)
5 दस लाख (Ten Lakhs)
संख्या विभाजन (Number Grouping):
बड़ी संख्याओं को पढ़ने और समझने में आसानी के लिए इन्हें लाख, करोड़, आदि में विभाजित किया जाता है। उदाहरण के लिए, 1,23,45,678 को “एक करोड़ तेईस लाख पैंतालीस हजार छह सौ अठहत्तर” पढ़ा जाता है।
अद्वितीय नामकरण (Unique Naming):
भारतीय प्रणाली में बड़ी संख्याओं के लिए विशेष नाम होते हैं, जैसे लाख (Lakh) और करोड़ (Crore), जो अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में नहीं पाए जाते।
उदाहरण:
1,00,000 को “एक लाख” कहा जाता है।
10,00,000 को “दस लाख” कहा जाता है।
1,00,00,000 को “एक करोड़” कहा जाता है।
10,00,00,000 को “दस करोड़” कहा जाता है।
भारतीय गणना प्रणाली की यह संरचना इसे बड़ी संख्याओं को सरलता से पढ़ने और समझने में सहायक बनाती है।
भारतीय गणना प्रणाली (Indian Number System) से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण MCQ निम्नलिखित हैं:
1. भारतीय गणना प्रणाली में एक लाख (1,00,000) को क्या कहा जाता है?
(A) Ten Thousand
(B) Lakh
(C) Million
(D) Crore उत्तर: (B) Lakh
2. भारतीय गणना प्रणाली में 10 करोड़ (10,00,00,000) को क्या कहा जाता है?
(A) Million
(B) Billion
(C) Crore
(D) Trillion उत्तर: (C) Crore
3. भारतीय गणना प्रणाली में हजार का स्थान किसके बाद आता है?
(A) इकाई
(B) दहाई
(C) सैकड़ा
(D) लाख उत्तर: (C) सैकड़ा
4. निम्नलिखित में से कौन-सा सही संख्या है जो भारतीय गणना प्रणाली के अनुसार लिखी गई है?
(A) 123,456,789
(B) 1,23,45,678
(C) 12,345,678
(D) 1,234,567 उत्तर: (B) 1,23,45,678
5. भारतीय गणना प्रणाली में “अरब” के बाद कौन-सा स्थान आता है?
(A) खरब
(B) लाख
(C) करोड़
(D) नील उत्तर: (A) खरब
6. भारतीय गणना प्रणाली में 1 लाख की तुलना में 10 करोड़ कितनी बड़ी संख्या है?
(A) 10 गुना
(B) 100 गुना
(C) 1,000 गुना
(D) 10,000 गुना उत्तर: (D) 10,000 गुना
7. 7 अंकों की सबसे छोटी संख्या भारतीय गणना प्रणाली के अनुसार क्या है?
(A) 1,00,000
(B) 1,00,00,000
(C) 10,00,000
(D) 10,000 उत्तर: (C) 10,00,000
8. भारतीय गणना प्रणाली में ‘दस लाख’ को अंग्रेजी में क्या कहा जाता है?
(A) Hundred Thousand
(B) One Million
(C) Ten Million
(D) One Billion उत्तर: (B) One Million
9. भारतीय गणना प्रणाली में एक अरब (1,00,00,00,000) कितने करोड़ होते हैं?
(A) 10 करोड़
(B) 100 करोड़
(C) 1,000 करोड़
(D) 10,000 करोड़ उत्तर: (B) 100 करोड़
10. भारतीय गणना प्रणाली में 10 के स्थान पर क्या अंक होता है?
अंतर्राष्ट्रीय गणना प्रणाली, जिसे आमतौर पर अरबी अंक प्रणाली (Arabic Numerals System) के नाम से जाना जाता है, वर्तमान में विश्वभर में सबसे व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली गणना प्रणाली है। इस प्रणाली में निम्नलिखित अंक शामिल होते हैं: 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, और 9।
अंतर्राष्ट्रीय गणना प्रणाली (Arabic Numerals System)
यह प्रणाली दशमलव (Decimal) प्रणाली पर आधारित है, जिसका आधार 10 है। इसमें संख्याओं को एक निश्चित स्थान पर रखकर उनकी मान्यता की जाती है। उदाहरण के लिए:
एकांक स्थान (Units place)
दहाई स्थान (Tens place)
सैकड़ा स्थान (Hundreds place)
हजार स्थान (Thousands place)
मिलियन स्थान (Million place) आदि।
यहाँ अंतरराष्ट्रीय गणना प्रणाली पर आधारित कुछ MCQ (Multiple Choice Questions) दिए गए हैं, जो छात्रों के लिए सहायक हो सकते हैं:
1. निम्नलिखित में से कौन-सा संख्या सही रूप से अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में लिखा गया है?
A. 1,000,000 B. 10,00,000 C. 1,00,00,000 D. 1000000
उत्तर: A. 1,000,000
2. अंतरराष्ट्रीय गणना प्रणाली में 1,000,000 को किस रूप में पढ़ा जाता है?
A. दस लाख B. एक मिलियन C. दस मिलियन D. एक अरब
उत्तर: B. एक मिलियन
3. निम्नलिखित में से कौन-सा अंतरराष्ट्रीय अंकन प्रणाली का सही स्वरूप है?
A. Ones, Tens, Hundreds, Thousands, Lakhs B. Ones, Tens, Hundreds, Thousands, Millions, Billions C. Ones, Tens, Hundreds, Thousands, Lakhs, Crores D. Ones, Tens, Hundreds, Thousands, Millions, Crores
उत्तर: B. Ones, Tens, Hundreds, Thousands, Millions, Billions
4. 52,763,841 को अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में कैसे पढ़ा जाएगा?
A. पचास दो लाख, सत्ताईस हजार, छः सौ इक्यासी B. पचपन मिलियन, सात लाख, छियासठ हजार, आठ सौ इक्यासी C. पचास मिलियन, सात लाख, छिहत्तर हजार, आठ सौ इक्यासी D. पचास दो मिलियन, सत्तर हजार, छियासी हजार, आठ सौ इक्यासी
उत्तर: C. पचास मिलियन, सात लाख, छिहत्तर हजार, आठ सौ इक्यासी
5. अंतरराष्ट्रीय अंक प्रणाली में “Billions” के बाद कौन-सा स्थान आता है?
A. Trillions B. Millions C. Thousands D. Quadrillions
उत्तर: A. Trillions
6. 7,654,321 को अंतरराष्ट्रीय अंक प्रणाली में क्या कहा जाएगा?
A. सात मिलियन, छः लाख, पचास चार हजार, तीन सौ इक्यासी B. सात मिलियन, छः लाख, पचपन हजार, तीन सौ इक्यासी C. सात मिलियन, छः लाख, पचास चार हजार, तीन सौ इक्कीस D. सात मिलियन, छः लाख, पचास चार हजार, तीन सौ इक्यावन
उत्तर: C. सात मिलियन, छः लाख, पचास चार हजार, तीन सौ इक्कीस
7. 1 Billion में कितने Millions होते हैं?
A. 100 B. 1,000 C. 10 D. 1
उत्तर: C. 1,000
8. 123,456,789 को अंतरराष्ट्रीय अंकन प्रणाली में कैसे पढ़ेंगे?
A. एक सौ तेईस मिलियन, चार लाख, पचास छः हजार, सात सौ इक्यासी B. एक सौ तेईस मिलियन, चार लाख, छप्पन हजार, सात सौ इक्यासी C. एक सौ तेईस मिलियन, चालीस छः लाख, छप्पन हजार, सात सौ इक्यासी D. एक सौ बीस तीन मिलियन, चालीस पांच हजार, छप्पन हजार, सात सौ इक्यासी
उत्तर: B. एक सौ तेईस मिलियन, चार लाख, छप्पन हजार, सात सौ इक्यासी
9. निम्नलिखित में से कौन-सा संख्या अंतरराष्ट्रीय अंकन प्रणाली का हिस्सा नहीं है?
A. Millions B. Billions C. Lakhs D. Trillions
उत्तर: C. Lakhs
10. अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में 12,345,678 को कैसे विभाजित किया जाएगा?
A. 12 Million, 345 Thousand, 678 B. 12 Billion, 345 Million, 678 Thousand C. 12 Thousand, 345 Hundred, 678 D. 12 Crores, 345 Lakhs, 678 Thousands